विश्वविद्यालय ने एसएफआई को जारी किया था नोटिस जिला प्रशासन और पुलिस के सामने जोरदार नारेबाजी छात्र संगठनों में तनावपूर्ण हुआ माहौल
शिमला – नितिश पठानियां
एचपीयू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री शुरू होते ही पुलिस ने स्क्रीनिंग रोक दी। पुलिस ने सुरक्षा नियमों का हवाला देते हुए छात्र संगठनों के पदाधिकारियों से बातचीत करने के बाद इसे रुकवाया।
एसएफआई की ओर से बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री शुरू करने के करीब दस से 15 मिनट बाद ही पुलिस ने स्क्रीनिंग रुकवा दी। इस दौरान एसएफआई के कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी भी की।
इससे विश्वविद्यालय परिसर में माहौल तनावपूर्ण हो गया है। इसके बाद एसएफआई के कार्यकर्ताओं ने बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री के लिंक और क्यूआर कोड छात्रों को भेजे।
वहीं, विश्वविद्यालय प्रशासन ने एसएफआई के छात्र नेताओं को स्क्रीनिंग की परमिशन देने से पहले ही इनकार कर दिया था। ऐसे में कैंपस में इसको लेकर तनाव का माहौल बन हुआ था।
इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्र संगठन को नोटिस भी जारी किया था कि इस तरह की कोई स्क्रीनिंग कैंपस के भीतर न की जाए, जिससे कानून व्यवस्था बिगडऩे का खतरा हो। सुबह से ही छात्र संगठन एबीवीपी इसका विरोध कर रही थी। एसएफआई के छात्र नेता डॉक्यूमेंट्री दिखाने पर अड़े रहे।
एचपीयू में पिंक पैटल पर यह डॉक्यूमेंट्री दिखाने के लिए एसएफआई कार्यकर्ता अड़े हुए थे, लेकिन बाद में पुलिस ने स्क्रीन को हटा दिया। गौर हो कि शनिवार सुबह से ही इसके लिए बाकायदा एसएफआई की ओर से शेड्यूल बनाया गया था। हालांकि, यहां पर पुलिस की क्यूआरटी की टीम पहले से मौजूद है।
एचपीयू में पुलिस की एक रिजर्व, क्यूआरटी और पुलिस लाइन से भी फोर्स लगाई गई है। उधर, एसपी शिमला संजीव गांधी का कहना है कि एचपीयू में सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। पुलिस की ओर से हर गतिविधि पर निगाह रखी जा रही है।
नियमों की अवहेलना करने वालों पर होगी कार्रवाई
एचपीयू के प्रो. वीसी ज्योति प्रकाश शर्मा का कहना है कि एसएफआई के कार्यकर्ताओं ने डॉक्यूमेंट्री दिखाने के लिए कोई परमिशन अभी तक नहीं ली है। इस बारे में जिला प्रशासन को सूचित किया गया है। अगर कोई विद्यार्थी नियमों की अवहेलना करता है, तो उसके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
पीएम मोदी को बचा रही दुनिया भर की दक्षिणपंथी सरकारें
बीबीसी की दो हिस्सों में बनी डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया द मोदी क्वेश्चन 2002’ के गुजरात दंगों और उनके दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर केंद्रित है। इन दंगों में हजारों लोग मारे गए और लाखों बेघर हो गए।
स्क्रीनिंग से पहले विश्वविद्यालय की एसएफआई इकाई के सहसचिव संतोष ने कहा कि वर्तमान असहिष्णु और फांसीवादी मोदी सरकार अब इस डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाना चाहती है। और तो और पूरे दुनियाभर की दक्षिणपंथी सरकारें मोदी को बचाने के लिए मैदान में कूद पड़ी हैं।
साथ ही उन्होंने कहा कि भारत में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने यूट्यूब से इस डॉक्यूमेंट्री को ब्लॉक करने और ट्विटर से इसके लिंक साझा किए हुए ट्वीट्स को हटाने के आदेश दिए हैं। एसएफआई केंद्र सरकार के इस तानाशाही रवैये की निंदा करती है।
एसएफआई केंद्रीय कमेटी के सह सचिव दिनित देंटा ने कहा कि केंद्र की सरकार द्वारा आईटी एक्ट में संशोधन इसी तरह की गतिविधियों को अंजाम देने के लिए किया गया है, परंतु भारत एक लोकतांत्रिक मूल्यों वाला देश है सरकार यह तय नहीं कर सकती कि हमें क्या देखना चाहिए अथवा क्या नहीं देखना चाहिए।
एबीवीपी-एसएफआई आमने-सामने
एबीवीपी के प्रांत मंत्री आकाश नेगी ने यूनिवर्सिटी प्रशासन को चेतावनी दी है कि अगर इस विवादित डॉक्यूमेंट्री को दिखाया गया, तो इसका विरोध करेंगे। प्रशासन को पूरी तरह से इस पर रोक लगानी चाहिए। इस डॉक्यूमेंट्री को दिखाने पर बैन लगा है।
दूसरी ओर एसएफआई के एचपीयू कैंपस अध्यक्ष सुरजीत कुमार का कहना है कि सोशल मीडिया पर दिखाने पर बैन लगा है, हम इसे हर हाल में दिखाएंगे। प्रशासन की ओर इस बारे में परमिशन लेने की जरूरत नहीं है। हम इसे ओपन कैंपस में दिखा रहे थे।
भाजपा ने की थी शिकायत
भाजपा के सह मीडिया प्रभारी करण नंदा ने एसपी शिमला को दी शिकायत में बताया है कि एसएफआई जो वामपंथियों का विद्यार्थी संगठन है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर पानी बीबीसी द्वारा डॉक्यूमेंट्री का प्रकाशन प्रदेश विश्वविद्यालय में करने जा रहा है। इस डॉक्यूमेंट्री पर राष्ट्र स्तर पर बैन लग चुका है। उन्होंने पुलिस प्रशासन से मांग की है कि इस प्रकाशन को रोकने का प्रयास करें और अगर यह डॉक्यूमेंट्री प्रकाशित होती है, तो कार्रवाई करें।