चम्बा – अनिल संबियाल
आजकल अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेले की धूम मची हुई है. 935 ई से इस मेले को मनाया जाता है. त्रिगर्त ( जिसे अब कांगड़ा के नाम से जाना जाता है) के राजा पर चंबा के राजा की जीत के उपलक्ष्य में चंबा घाटी में ये मेला मनाया जाता है.
ऐसा कहा जाता है कि अपने विजयी राजा की वापसी पर, लोगों ने उसे धान और मक्का की मालाओं से अभिवादन किया था, जो कि समृद्धि और खुशी का प्रतीक है. यह मेला श्रावण मास में आयोजित किया जाता है.
सप्ताह भर चलने वाला मेला तब शुरू होता है जब ऐतिहासिक चौगान में मिंजर ध्वज फहराया जाता है. मिजर शब्द का अर्थ है मक्की व् धान की खेती में फसल लगने से पहले फूलों को मिंजर कहते है.
चम्बा शहर की स्थापना 920 ई. में राजा साहिल बर्मन ने ही की थी. इस मेले की शुरुआत मिर्जा शबीबेग के परिवार द्वारा रघुनाथ और लक्ष्मी नारायण मंदिर को मिंजर भेंट कर के साथ होता है.
मेले की शोभा यात्रा राजमहल अखंड चंडी से शुरू होती है. जिसमें वहाँ के स्थानीय देवी देवता भी शामिल होते है. मेले का शुभारंभ राज्यपाल ने किया था जबकि समापन बीती शाम मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह ने किया.