हिमाचल में 2,724 व्यावसायिक शिक्षक 12 वर्षों से सेवा में, अब स्थायीत्व की मांग निर्णायक मोड़ पर

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नई शिक्षा नीति में अनिवार्य घोषित विषय पढ़ाने वाले शिक्षक आज भी अस्थायी, नियोजन की मांग को लेकर बढ़ी बेचैनी

शिमला – नितिश पठानियां

हिमाचल प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में वर्ष 2013 से कार्यरत 2,724 व्यावसायिक शिक्षक अब अपने नियमितीकरण की मांग को लेकर निर्णायक मोड़ पर पहुँच गए हैं। प्रदेश के 1,690 स्कूलों में कक्षा 9वीं से 12वीं तक छात्रों को आईटी, ऑटोमोबाइल, रिटेल, हेल्थकेयर, टूरिज़्म, इलेक्ट्रॉनिक्स, ब्यूटी-वेलनेस सहित 12 से अधिक ट्रेड्स में रोजगारपरक शिक्षा देने वाले ये शिक्षक पिछले 12 वर्षों से अस्थायी अनुबंध पर कार्यरत हैं, जिन्हें आज तक न सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिला, न ही कोई सामाजिक सुरक्षा।

यह शिक्षण सेवा भारत सरकार की NSQF योजना के अंतर्गत संचालित हो रही है, लेकिन इनकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा आउटसोर्स एजेंसियों के माध्यम से होती है। हाल ही में सामने आए एक RTI जवाब में यह साफ हुआ कि राज्य सरकार ने अभी तक इनके नियमितीकरण को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं बनाई है।

विरोध और भूख हड़ताल के बाद भी सरकार चुप, शिक्षकों में असंतोष

अप्रैल 2025 में शिक्षकों ने शिमला के चौड़ा मैदान में भूख हड़ताल और प्रदर्शन कर न्याय की मांग की थी। इसके बाद सरकार ने एक कैबिनेट सब-कमेटी के गठन की घोषणा तो की, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई। शिक्षकों का कहना है कि हरियाणा जैसे राज्यों में व्यावसायिक शिक्षकों को प्रत्यक्ष अनुबंध पर रखा गया है, जबकि हिमाचल में आज भी ये आउटसोर्सिंग की कड़ी में बंधे हुए हैं।

नई शिक्षा नीति में व्यवसायिक शिक्षा अनिवार्य, फिर भी शिक्षकों का भविष्य असुरक्षित?

भारत सरकार की नई शिक्षा नीति (NEP 2020) में कक्षा 6वीं से 12वीं तक व्यवसायिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया गया है। ऐसे में ये शिक्षक देश की युवा पीढ़ी को आत्मनिर्भर बनाने की रीढ़ हैं। अगर इन “भविष्य के निर्माताओं” का खुद का भविष्य असुरक्षित रहेगा, तो हम गुणवत्ता युक्त शिक्षा की कल्पना कैसे कर सकते हैं?

कौशल विकास नीति का उद्देश्य, और शिक्षकों की अनदेखी एक विडंबना

सरकार की Skill Development Policy (2015) और NPSD-2009 का उद्देश्य युवाओं को आत्मनिर्भर बनाना है। भारत जैसे विशाल देश में, जहाँ 130 करोड़ से अधिक जनसंख्या है, वहाँ स्वरोजगार और स्किल आधारित रोजगार ही आर्थिक आत्मनिर्भरता का आधार बन सकते हैं। लेकिन स्कूल स्तर पर स्किल ट्रेनिंग देने वाले यही शिक्षक आज खुद वेतन कटौती, अनुबंध की अनिश्चितता और भविष्य के अंधकार से जूझ रहे हैं।

सरकार के पास अधिकार और अवसर दोनों हैं

विशेषज्ञों का मानना है कि यह पूरा कार्यक्रम राज्य सरकार के पूर्ण नियंत्रण में है। मानव संसाधन विकास, युवाओं को प्रशिक्षित करने की नीति, और स्किल इंडिया मिशन को मजबूती देने के लिए सरकार को चाहिए कि वह इन शिक्षकों को स्थायीत्व और सम्मान दे।

राजनीतिक वादों की याद और ऐतिहासिक तथ्य

यह वही प्रोजेक्ट है, जिसे पूर्व मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह ने हिमाचल में शुरू किया था। उन्होंने पीटर हॉफ में शिक्षकों से कहा था कि कोई शिक्षक अपना पूरा जीवन आउटसोर्स पर नहीं बिता सकता, यह अन्याय है। उन्होंने यह योजना चलाई, पर आज उन “लगे हुए पौधों” को सींचने वाला कोई नहीं।
वर्तमान उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने 2022 के विधानसभा चुनावों में कहा था, “हमने लगाए हैं, हम ही पक्के करेंगे”, लेकिन अब वह वादा अधूरा है।

मुख्य मांगें स्पष्ट और तर्कसंगत

1. व्यावसायिक शिक्षकों का सरकारी कर्मचारियों के रूप में नियमितीकरण

2. आउटसोर्स प्रणाली को समाप्त कर प्रत्यक्ष अनुबंध या विभागीय समायोजन

यदि अब भी नहीं जागी सरकार, तो होगा सामाजिक और शैक्षिक संकट

आज जहां नौकरियों की भारी कमी है, वहाँ ये शिक्षक हजारों छात्रों को स्वरोजगार और स्किल ओरिएंटेड ट्रेनिंग दे रहे हैं। यदि उन्हें स्थायीत्व नहीं मिला, तो ये पूरा कार्यक्रम ही संकट में पड़ सकता है। यह न केवल शिक्षा व्यवस्था के लिए, बल्कि केंद्र की योजनाओं की साख के लिए भी चुनौती होगा।

अब बदलाव आवश्यक है

अब समय आ गया है कि सरकार कथनी से करनी की ओर बढ़े। इन शिक्षकों को उनका सम्मान और भविष्य वापस दिया जाए। यदि हम अपने शिक्षकों के सपनों को अधूरा छोड़ देंगे, तो छात्र भी अधूरे ही रह जाएंगे।

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