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सिरमौर, 20 फरवरी – नरेश कुमार राधे

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हिमाचल प्रदेश के शिलाई उपमंडल के अति दुर्गम गांव ‘कनाड़ी’। टूटा-फूटा घर। यहां एक परिवार के 6 सदस्य रहते हैं। एक राजगढ़ में नौकरी कर परिवार के भरण-पोषण की जद्दोजहद कर रहा है। आलम यह है, दो वक्त की रोटी सपने से कम नहीं है।

विडंबना, परिवार के तीन सदस्य नाहन मेडिकल काॅलेज में टीबी से ग्रसित होने के चलते उपचाराधीन हैं। अन्यों के भी संक्रमण के चपेट में आने की आशंका। एक ही सदस्य अमित भी निजी नौकरी छोड़, नाहन में दादा-दादी व पिता की तिमारदारी में जुटा हुआ है।

ये गुरबत की दास्तां सरकारी योजनाओं व सामाजिक सरोकार पर कुठाराघात है। निश्चित तौर पर आपके जेहन में सवाल उठेगा, हम ऐसा क्यों कह रहे हैं। आप जानकर दंग रह जाएंगे, ओबीसी से ताल्लुक रखने वाले इस परिवार को बीपीएल का लाभ नहीं मिलता।

सरकारी व्यवस्था में ये परिवार गरीब नहीं है। परिवार छोटे से कमरे में रह रहा है। बेशक ही प्रदेश को खुले में शौचमुक्त घोषित कर दिया गया हो, धरातल की सच्चाई ये है कि परिवार आज भी खुले में ही शौच जाता है। सिर पर छत नहीं, खाने को अन्न नहीं, फिर भी परिवार को गरीबी रेखा से ऊपर दर्शाया गया है।

सरकारी योजनाओं का लाभ देने वाले मठाधीश व अस्पताल वाले ये भी ताने मार रहे हैं, मीडिया वालों के पास क्यों गए। हाल ही में परिवार के दो सदस्यों के टीबी ग्रस्त होने के मामले ने तूल पकड़ा तो इस दौरान ये भी खुलासा हुआ कि परिवार के सदस्य अवसाद के साथ-साथ मानसिक तनाव का भी सामना कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग ने संक्रमित सदस्यों की जांच मनोचिकित्सक से करवाने का भी निर्णय लिया हुआ है।

23 वर्षीय अमित तो रोजी-रोटी की तलाश में घर से निकल गया है, लेकिन पीछे घर पर 18 वर्षीय भाई व 14 वर्षीय बहन की चिंता सताती रहती है। टीबी से ग्रसित सदस्यों की आयु 78, 70 व 48 साल है। समाजसेवी नाथू राम की मानें तो दवाइयां खाने से पहले अनाज नसीब नहीं है। टीबी से संक्रमित रोगियों के लिए डाइट सबसे अधिक मायने रखती है। यहां तो भूखे पेट ही जिंदगी चल रही है।

बहरहाल, ये इलाका हिमाचल के तेजतर्रार उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान के गृह निर्वाचन क्षेत्र का है। उम्मीद की जानी चाहिए कि वो तत्काल ही समाचार का संज्ञान लेकर एक टीम को मौके का जायजा लेने भेजेंगे, ताकि परिवार को न केवल सरकारी योजनाओं का लाभ मिले, बल्कि 14 साल की बेटी का भविष्य भी उज्जवल बन सके।

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