सफलता की कहानी: प्राकृतिक खेती से बदली रजिंदर की तकदीर, 75 की आयु में समाज के लिये बने मिसाल

--Advertisement--

पालमपुर – नवीन शर्मा

“कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों” इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है विकास खण्ड सुलाह की ग्राम पंचायत बारी के चंजेहड़ निवासी रजिंदर कंवर ने। अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत बलबूते युवा पीढ़ी के लिये प्रेरणा का केंद्र बन गए हैं।

एक ओर लोग खेती योग्य जमीन में बढ़ती लागत और मौसमी बदलावों से आ रही जटिलताओं की वजह से बंजर छोड़ रहे हैं।वहीं कांगड़ा जिला के चन्जेहड़ निवासी 75 वर्षीय राजिंदर कंवर ने प्राकृतिक खेती को अपनाकर समाज के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाया और कृषि लागत को लगभग शून्य किया जबकि मुनाफा दोगुणा से अधिक प्राप्त कर रहे हैं।

रजिंदर, 22 कनाल (11 बीघा) जमीन पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। इसमें गेहूं, भिंडी, चना, मटर, टमाटर, सरसों, घीया, तोरी, खीरा इत्यादि फसलों की प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसमें उनका व्यय 3 हजार और आय अढ़ाई लाख से अधिक है।

उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती से उत्पन्न उत्पादों की औसतन आयु अन्य उत्पादों से अधिक है। बाजार में मूल्य अच्छा होने के साथ-साथ मांग भी अधिक होने से किसानों को दोगुणा लाभ हो रहा है।

राजिंदर कंवर बताते हैं कि बंजर भूमि को खेती योग्य बनाने का काम सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती ने आसान किया है। उन्होंने बताया कि प्रदेश कृषि विभाग के सहयोग से मध्य प्रदेश के झांसी में सुभाष पालेकर से प्राकृतिक खेती के विभिन्न आदानों के निर्माण, प्रयोग, कीट रोग प्रबंधन का प्रशिक्षण प्राप्त किया।

उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपना कर सफलता प्राप्त की तो इससे उनका हौसला बढ़ गया। उन्होंने बंजर भूमि को खेती लायक बनाने की चुनौती स्वीकार किया और कड़ी मेहनत से प्राकृतिक खेती में सफलता हासिल की।

राजिंदर बताते है कि प्रशिक्षित होने के उपरांत आने के बाद उन्होंने साहीवाल नस्ल की गाय खरीदी। गाय के गोबर – मूत्र और स्थानीय वनस्पतियों से आदान बनाकर उन्होंने खेतों में इस्तेमाल शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि रसायनों का प्रयोग खेतों नहीं करने से उन्हें जल्दी ही अच्छे नतीजे मिले और इसके बाद उत्साह से खेतों में जुट गए।

उन्होंने प्राकृतिक खेती से 3 तरह की गेहूं उगाई है। जिसमें स्थानीय किस्म के साथ, बंसी और काली गेहूं भी सम्मिलित है। मिश्रित खेती के तौर पर गेहूं के साथ सरसों और मटर की फसल ली है। उन्होंने बताया कि ” प्राकृतिक खेती में स्थानीय बीजों का बड़ा महत्व है। वह अपनी खेती में स्थानीय बीजों का ही इस्तेमाल करते हैं। इससे पैदावार और फसल गुणवत्ता बाकि किसानों के मुकाबले बेहतर रहती है।

राजिंदर गांव के अन्य किसानों और युवाओं को प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब हमारा खानपान शुद्ध और रसायनरहित होगा तभी हम एक स्वस्थ जीवन यापन कर सकते हैं।

आज के भागदौड़ भरे जमाने में अच्छे, पोषणयुक्त खाने का महत्व और बढ़ गया है। जब किसान रसायनरहित उगाएगा तो उसका परिवार और आस पड़ोस ही नहीं देश भी रोहतमंद होगा।

--Advertisement--
--Advertisement--

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

--Advertisement--

Popular

More like this
Related

मोहब्बत का खौफनाक अंजाम, प्रेमिका से मिलने गए युवक की गोली मार कर हत्या

हिमखबर डेस्क मोहब्बत हमेशा अधूरी रह जाती है और कभी-कभार...

गांवों में पौधरोपण के लिए मिलेंगे इतने लाख, हरी-भरी होगी धरा, युवाओं को मिलेगा रोजगार

शिमला - नितिश पठानियां हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य को...