नूरपुर – स्वर्ण राणा
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम बौड़, नूरपुर में साप्ताहिक सत्संग आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए स्वामी रमन ने उपस्थित भक्तजनों के समक्ष गुरु महिमा में ओतप्रोत सुमधुर भजन “प्रभु प्यार तेरा सच्चा, यह जग तो छलावा है” का गुणगान किया।
इसी अवसर पर गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी हरीशानंद ने उपस्थित भक्तजनों को संबोधन करते हुए कहा ईश्वर हमारा शाश्वत सखा है। उसका शाश्वत सहयोग उन जख्मों पर मरहम का काम करता है, जो एकाकीपन हतोत्साह और अवसाद की चोटों से उत्पन्न हुए हैं।
समय-समय पर वह सद्गुरू के रूप में अवतरित होता है एवं इस रहस्य को उद्घाटित करता है कि ईश्वर ही हमारा अनन्त सहयोगी है। उससे हम अपने माता-पिता का प्रेम, बहन का सौहार्द, भाई का संरक्षण तथा खरे मित्र का सहयोग पा सकते हैं। हमारे सहारे एवं बचाव के लिए उसका मददगार हाथ सदा हमारे साथ है।
‘मेरी क्यूरी’ जिसने रेडियम का आविष्कार किया, उसके जीवन में एक चमत्कार पूर्ण घटना घटी। हुआ यह कि जब उसका शोध इतना जटिल हो गया कि सभी तथ्यों के बावजूद उसे हल नहीं मिला, तो वह हताश हो गई। कोई राह न पाते हुए, पूर्णतः निराश होकर अपने शोध-पत्रों को टेबल पर छोड़कर सो गई।
सुबह जब सोकर उठी और अपनी टेबल पर गई, तो यह देखकर आश्चर्य में पड़ गई कि उसकी अपनी ही हस्त लिखित लिपि में समस्या का हल वहाँ मौजूद था। वस्तुतः इतिहास ऐसी चमत्कार पूर्ण घटनाओं से भरा पड़ा है। सच्चे कर्मठ कर्मयोगियों व सुदामा, सैन नाई, अर्जुन जैसे भक्तों की मदद करने के लिए वह ईश्वर मजबूर हो जाता है।
अतः हमें भी चाहिए कि अपने जीवन की राह को ईश्वर के नजदीक ले जाने का भरसक प्रयास करें। ईश्वर को आत्मसात करने में ही हमारा सर्वोच्च लाभ है। मानव होने के नाते अपनी आत्मा का उद्धार करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए। हमें चाहिए कि हम अपनी अर्जनशील आत्मा को क्षणभंगुर स्वामित्व एवं क्षणस्थाई सुखों के बदले वास्तविक एवं स्थाई सुख-समृद्धि के लिए प्रयासरत करें। अपने जीवन को उसी दिशा में ढालने का प्रयास करें।
कार्यक्रम के अंत में स्वामी जी ने संबोधन करते हुए कहा कि ऐसे आत्मज्ञान को प्राप्त करके हमें निरंतर ध्यान साधना में संलग्न होना पड़ेगा तभी हम अपने मानव जीवन के उद्देश्यों को प्राप्त कर जीवन को सफल कर सकते हैं कार्यक्रम के अंत में सभी ब्रह्मज्ञानी साधकों ने विश्व शांति के मंगल कामना से उत्पन्न ध्यान साधना की एवं स्वामी रमन के सुमधुर भजनों से संगत झूम उठी।