शिमला, 30 जून – नितिश पठानियां
पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा के नीचे खाने-पीने के स्टॉल सजा दिए गए हैं। वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने वाली जगह पर बैठकर लोग खाने का लुत्फ उठा रहे हैं।
चौंकाने वाली बात यह है कि यह सब स्थानीय प्रशासन के नाक तले हो रहा है। मामला हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान का हैं।
दरअसल रिज मैदान पर पिछले करीब एक माह से समर शापिंग कार्निवाल चल रहा है। पर्यटन सीजन के चलते इस कार्निवाल का आयोजन किया गया है।
कार्निवाल के दौरान रिज मैदान के एक तरफ पदम् देव काम्प्लेक्स के परिसर में कई अस्थायी स्टॉल खोले गए हैं। इनमें हैंडलूम, कारपेटस, गारर्मेंटस, हैंडीक्राफट और खाने-पीने के स्टॉल शामिल हैं।
समर सीजन के दौरान पर्यटकों को लुभाने के लिए कार्निवाल में विभिन्न राज्यों के कारोबारी एवं संस्थाएं इन स्टॉलों के जरिए बिक्री कर रहे हैं। रोजाना यहां भारी संख्या में सैलानी उमड़ते हैं।
कार्निवाल की एवज में नगर निगम प्रशासन को मोटी कमाई भी हो रही है। चिंता करने वाली बात यह है कि प्रशासन ने कार्निवाल की आड़ में उस जगह भी स्टॉल लगाने की अनुमति दे रखी है, जहां दिवंगत पीएम वाजपेयी की 18 फुट लंबी प्रतिमा है।
इस जगह खाने-पीने के स्टॉल लगाए गए हैं। प्रतिमा के ठीक नीचे बैठकर पर्यटक व लोग व्यंजनों को खाते देखे जा रहे हैं। बकायदा बाहरी राज्यों से स्टॉल लगाने वाले कारोबारियों ने प्रतिमा के नीचे टेबल भी लगा दिए हैं, जहां बैठने वालों को वे अपने व्यंजन परोस रहे हैं।
पदमदेव कांपलेक्स के इसी परिसर से कुछ फासले पर ही इंदिरा गांधी की भी प्रतिमा है। लेकिन इसके नीचे खाने-पीने का कोई भी स्टॉल नहीं है। पूर्व पीएम स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा अढ़ाई साल पहले रिज मैदान पर स्थापित हुई थी।
25 दिसंबर 2020 को वाजपेयी की 96वीं जयंती पर तत्कालीन भाजपा शासित सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने वाजपेयी की प्रतिमा का अनावरण किया था। रिज के पदमदेव परिसर पर स्थापित 18 फीट ऊंची यह प्रतिमा 1.08 करोड़ रुपये की लागत से तैयार की गई थी।
बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी हिमाचल को अपना दूसरा घर भी कहते थे। व्यस्त दिनचर्या के बावजूद अटल कभी भी हिमाचल आकर यहां कुछ दिन व्यतीत करने का अवसर नहीं छोड़ते थे।
वह जिला कूल्लु की पर्यटन नगरी मनाली के प्रीणी स्थित अपने घर में समय बिताकर यहां गांवों के लोगों से मिलकर उनकी मांगों को सुनते और कविता पाठन करते थे।