लोक सभा अध्यक्ष ने संसाधनों के प्रबंधन और एआई जैसे नवाचारों को अपनाकर विधानमंडलों को अधिक कुशल बनाने का आह्वान किया, लोक सभा अध्यक्ष ने जनप्रतिनिधियों से विधायी कार्य में दक्षता और पारदर्शिता बढ़ाने का आग्रह किया, निर्वाचित प्रतिनिधियों को विधानमंडलों को संवाद, नवाचार और उत्कृष्टता का केंद्र बनाना चाहिए: लोक सभा अध्यक्ष, भारत की संसद संसदीय कामकाज में दक्षता बढ़ाने के लिए एआई का व्यापक रूप से उपयोग कर रही है: लोक सभा अध्यक्ष, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत पर लोकतांत्रिक संस्थाओं को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और नवोन्मेषी बनाने की जिम्मेदारी है: लोक सभा अध्यक्ष
धर्मशाला – हिमखबर डेस्क
लोक सभा अध्यक्ष, ओम बिरला ने आज संसाधनों के प्रबंधन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसे नवाचारों को अपनाकर विधानमंडलों को अधिक कुशल बनाने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि विधानमंडलों के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं, नवाचारों और प्रौद्योगिकी को साझा करने से लोकतांत्रिक संस्थाएं सशक्त होती हैं।
इस बात का उल्लेख करते हुए कि एआई के प्रयोग से विधायी निकाय जनता के और करीब आएंगे तथा लोगों की अपेक्षाओं को बेहतर ढंग से पूरा कर पाएंगे, बिरला ने कहा कि यदि प्रत्येक जनप्रतिनिधि सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाए तथा प्रौद्योगिकी का प्रभावी ढंग से उपयोग करे, तो वह अपने निर्वाचन क्षेत्र की चुनौतियों का बेहतर ढंग से समाधान कर सकता है और जनाकांक्षाओं को पूरा कर सकता है।
उन्होंने जनप्रतिनिधियों से विधायी कार्यों में दक्षता तथा पारदर्शिता बढ़ाने का आग्रह किया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सकारात्मक चर्चा तथा सुविचारित तर्क प्रस्तुत करने से व्यक्ति और संस्था – दोनों की प्रतिष्ठा बढ़ती है ।
लोक सभा अध्यक्ष ने आज तपोवन, धर्मशाला में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत क्षेत्र, जोन-II के वार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की “एक राष्ट्र एक विधायी मंच” पहल का उल्लेख करते हुए बिरला ने विश्वास व्यक्त किया कि भारत की संसद निकट भविष्य में सभी राज्य विधानमंडलों के लिए एक साझा मंच तैयार करेगी, जिससे विधायी चर्चा, बजट तथा अन्य विधायी पहलों संबंधी जानकारी का आदान-प्रदान सुचारु रूप से हो पाएगा।
उन्होंने कहा कि इस पहल से राज्य विधानमंडलों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होगी तथा संघवाद और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा, जिसका लाभ अंततः लोगों को होगा। उन्होंने भारत की संसद में की जा रही डिजिटल पहलों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की संसद संसदीय कार्य में दक्षता बढ़ाने के लिए एआई का व्यापक रूप से उपयोग कर रही है।
उन्होंने यह भी कहा कि केंद्रीय विधानमंडल के रूप में संसद की यह जिम्मेदारी है कि वह पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन को बढ़ावा देने के लिए इन आधुनिक तकनीकी साधनों को राज्य विधानसभाओं के साथ साझा करे।
बिरला ने आग्रह किया कि सरकार को सभी नागरिकों, विशेष रूप से उपेक्षित वर्गों के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए सुशासन और सामाजिक कल्याण सुनिश्चित करना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि विधायकों और विधायी निकायों का भी यह कर्तव्य है कि वे जनता द्वारा सौंपी गई जिम्मेदारियों को पूरा करके लोगों के जीवन में सकारात्मक सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाएं।
अध्यक्ष महोदय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जनता अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों से जो अपेक्षाएँ रखती है, उन्हें शिष्ट आचरण और प्रभावी शासन के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिए।
इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि विधायी निकायों को प्रगति के लिए आधुनिक तौर-तरीकों को अपनाते हुए विकास योजनाओं, बुनियादी ढाँचे, पर्यावरण संरक्षण जैसे प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए।
बिरला ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ग्राम पंचायतों से लेकर नगर पालिकाओं और राज्य विधानसभाओं तक, निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपनी संस्थाओं को संवाद, नवाचार और उत्कृष्टता का केंद्र बनाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि रचनात्मक चर्चा-संवाद जितना अधिक होगा, संस्थाएं भी उतनी ही सशक्त होंगी तथा आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन के लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम होंगी।
बिरला ने यह भी कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जिसमें अपार विविधता है, इसलिए लोकतांत्रिक संस्थाओं को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और इनोवेटिव बनाने की जिम्मेदारी भी भारत पर है।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर को उद्धृत करते हुए श्री बिरला ने कहा कि किसी भी संविधान या संस्था की सफलता उसके सदस्यों और अनुयायियों के आचरण पर निर्भर करती है।
उन्होंने इस बात का उल्लेख भी किया कि विधायी संस्थाओं को सशक्त बनाना तथा चर्चा-संवाद को बढ़ावा देकर उनकी गरिमा बनाए रखना आवश्यक है जिससे संस्थाओं और प्रतिनिधियों दोनों की विश्वसनीयता बढ़ेगी।
हिमाचल प्रदेश की गौरवशाली लोकतांत्रिक विरासत के बारे में बात करते हुए उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि 1921 में पीठासीन अधिकारियों का पहला सम्मेलन शिमला में आयोजित किया गया था, जो लोकतांत्रिक सुधार की दिशा में एक ऐतिहासिक क्षण था।
उन्होंने यह भी कहा कि विट्ठलभाई पटेल भी हिमाचल प्रदेश से केंद्रीय विधान परिषद के सभापति चुने गए थे। उन्होंने इस बात पर गर्व व्यक्त किया कि हिमाचल विधान सभा देश की पहली पेपरलेस विधानसभा है।
उन्होंने यह भी कहा कि हिमाचल के लोग अपनी देशभक्ति और राष्ट्र के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते हैं। बिरला ने आशा व्यक्त की कि इस सम्मेलन से नए विचार और दृष्टिकोण सामने आएंगे जिससे विधानमंडलों को सशक्त करने में मदद मिलेगी और निर्वाचित प्रतिनिधि लोगों की सेवा बेहतर ढंग से करने में सक्षम होंगे।
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री, सुखविंदर सिंह सुक्खू, राज्य सभा के उपसभापति, हरिवंश, हिमाचल प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष, कुलदीप सिंह पठानिया; हिमाचल प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री, श्री हर्षवर्धन चौहान और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया।
जोन-II से पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के पीठासीन अधिकारी तथा उत्तर प्रदेश विधान सभा, कर्नाटक विधान सभा, तेलंगाना विधान सभा और विधान परिषद के पीठासीन अधिकारी तथा हिमाचल प्रदेश विधानमंडल के सदस्यों ने उद्घाटन सत्र की शोभा बढ़ाई।