महादेव के त्रिपुंड की रेखाओं का क्या है अर्थ, जानें शिवलिंग पर त्रिपुंड लगाने का सही तरीका
धर्म कर्म: आचार्य अमित शर्मा
हिंदू धर्म में पूजा पाठ के समय तिलक धारण किया जाता है, सभी देवी देवताओं की पूजा अर्चना के साथ उनके तिलका की रचना में बदलाव होता है. आपने अक्सर देखा होगा कि भगवान शिव के भक्त या उनकी किसी भी पूजा के दौरान लगाए जाने वाले तिलक को त्रिपुंड कहते हैं. त्रिपुंड को चंदन या भस्म से लगाया जाता है और त्रिपुंड में बहुत से देवी देवताओं की शक्तियां समाहित होती हैं.
त्रिपुंड की रेखाओं में समाहित देवी देवता
माथे पर बनी तीन रेखाओं वाले तिलक को त्रिपुंड कहा जाता है. माना जाता है कि त्रिपुंड लगाने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है. वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, त्रिपुंड में कुल 27 देवी-देवताओं का वास होता है. त्रिपुंड की प्रत्येक रेखा में 9 देवताओं का वास होता है.
त्रिपुंड की पहली रेखा में महादेव, पृथ्वी, ऋग्वेद, धर्म, गार्हपत्य, रजोगुण, आकार, प्रातः कालीन हवन और क्रियाशक्ति देव होते हैं. वहीं दूसरी रेखा में इच्छाशक्ति, अंतरात्मा, दक्षिणाग्नि, सत्वगुण, महेश्वर, ऊंकार, आकाश और मध्याह्न हवन देवता विराजमान होते हैं और तीसरी रेखा में शिव, आहवनीय अग्नि, सामवेद, ज्ञानशक्ति, तृतीय हवन स्वर्ग लोक, तमोगुण और परमात्मा का वास होता हैं.
शिवलिंग पर त्रिपुंड लगाने के विधि
शिवपुराण के अनुसार, शिवलिंग यानी भगवान शिव को त्रिपुंड विशेष रूप से चंदन, लाल चंदन या अष्टगंध से लगाना चाहिए. त्रिपुंड लगाने के लिए सबसे पहले दाएं हाथ की बीच की उंगली मध्यमा यानी अनामिका से ऊपर की दो रेखाएं बनाएं. उसके बाद नीचे तर्जनी उंगली से रेखा बना दें. त्रिपुंड लगाते समय इस बात का खास ध्यान रखें कि इसे बाएं नेत्र से दाएं नेत्र की ओर ही लगाएं.
त्रिपुंड लगाने के लाभ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माथे पर त्रिपुंड लगाने से व्यक्ति को उसमें समाहित समस्त 27 देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यही नहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसे लगाने से मन में बुरे विचार उत्पन्न नहीं होते, मानसिक शांति मिलती तथा व्यवहार में सौम्यता आती है. प्रतिदिन त्रिपुंड लगाने से व्यक्ति द्वारा किए गए जाने-अनजाने में हुए पापों से छुटकारा मिलता है.
शिव पुराण में वर्णन किया गया है कि जो शिव भक्त इसे शिव जी के प्रसाद के रूप में अपनी माथे पर धारण करता है, उस पर बुरी शक्तियों का अधिक प्रभाव नहीं हो पाता. बल्कि शरीर के साथ-साथ जीवन में भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है और व्यक्ति धर्म के प्रति अधिक अग्रसर रहने लगता है