बेसहारा पशु घूम रहे सड़कों पर विभाग नहीं ले रहा इनकी सुध।
हिमख़बर डेस्क
हिमाचल प्रदेश पंचायती राज विभाग द्वारा बेसहारा पशुओं के विषय में सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत सूचना उपलब्ध करवाए जाने के बाद विभाग की अपनी ही कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लग गया है।
गौरतलब है कि प्रदेश की सड़कों पर जगह-जगह, भूख- प्यास से तड़पते व लंगड़ाते बेसहारा गौवंश की दुर्दशा से आहत होकर आरटीआई मामलों के वकील अनिल सरस्वती ने पशुओं को सड़कों पर बेसहारा फेंकने की रोकथाम के लिए करीबन अट्ठारह वर्ष पहले बनाए गए कानून के प्रभावों एवं उपलब्धियों की जानकारी जुटाने हेतु पंचायती राज विभाग में सूचना के अधिकार कानून के तहत इस वर्ष के जनवरी महीने में एक प्रार्थना पत्र दाखिल किया था।
राज्य सूचना आयोग के आदेशानुसार हिमाचल प्रदेश पंचायती राज विभाग द्वारा अनिल सरस्वती को उपलब्ध करवाई गई सूचना के मुताबिक पंचायती राज विभाग ने हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम 1994 के सेक्शन (11-क) के अंतर्गत अपना रोल ग्रामीण क्षेत्रों में होने की बात कबूल करते हुए बताया कि सेक्शन (11-क) को इंप्लीमेंट करवाना ग्राम पंचायतों की जिम्मेदारी है।
उपलब्ध करवाई गई सूचना में बेहद चौंकाने वाली यह जानकारी भी दी गई कि ग्राम पंचायतों में पशुओं के पंजीकरण का रिकॉर्ड त्यार करने के लिए उक्त कानून के अंतर्गत विभाग द्वारा कोई भी फार्म प्रेस्क्राइब नहीं किया गया है।
जबकि हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम 1994 के सेक्शन (11-क)(1) के अंतर्गत प्रत्येक परिवार के मुखिया द्वारा समय-समय पर अपने पशुओं की जानकारी संबंधित ग्राम पंचायत प्रधान अथवा पंचायत सचिव को देना अनिवार्य है व पंचायत कार्यालय में बाकायदा इसका रिकॉर्ड तैयार करने का भी प्रावधान है।
अब सवाल यह उठता है कि यदि उक्त फार्म समय रहते अधिसूचित हो गया होता तो यकीनन संबंधित ग्राम पंचायत कार्यालय में प्रत्येक पशुपालक के प्रत्येक गोजातीय पशु की नस्ल, लिंग, आयु, रंग, पशुपालन विभाग द्वारा लगाए गए टैग का नंबर व पशु के क्रय विक्रय व मृत्यु संबंधी विवरण मौजूद रहता व इस रिकॉर्ड की मदद से गोजातीय पालतू पशुओं को सड़कों पर फेंकने वाले पश पालकों की पहचान करना भी बहुत सरल हो जाता।
पकड़े जाने व कानूनी कार्यवाही के डर से पशुपालक आसानी से अपने गोजातीय पशुओं को सड़कों पर नहीं फेंक पाते व आज बेसहारा पशुओं की समस्या भी इस कदर बद से बद्तर ना हुई होती।
आखिर पिछले अठारह वर्षों में उक्त कानूनी प्रावधानों को दरकिनार करते हुए ग्राम पंचायत स्तर पर गोजातीय पशुओं का पंजीकरण संबंधी रिकॉर्ड तैयार करने के लिए उक्त फार्म को अधिसूचित क्यों नहीं किया गया, इस बात का जवाब तो पंचायती राज विभाग ही बेहतर दे सकता है।
हिमाचल प्रदेश देव भूमि है व हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अनेक देवी -देवता पशुओं को सड़कों पर लावारिस फेंकने से नाराज़ होकर लोगों को अपने गूरों के माध्यम से कई बार परिणाम भुगतने की चेतावनी दे चुके हैं।