पौंग बांध विस्थापितों की अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी उम्मीदें 

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राजा का तालाब- अनिल शर्मा 

प्रदेश पौंग बांध विस्थापित समिति की राजा का तालाब के निजी पैलेस में रविवार को आयोजित हुई बैठक सुप्रीम कोर्ट के वकील विनोद शर्मा विशेष रूप से विस्थापितों से रूबरू हुए।

प्रदेश भर से आए विस्थापितों की भारी भीड़ की वजह से पैलेस में जगह काफी कम पड़ गई। जिससे विस्थापितों को खड़े होकर अपनी बात रखनी और सुननी पड़ी।

पौंग बांध विस्थापितों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की पांच अप्रैल को हुई पहली सुनवाई के बाद प्रदेश पौंग बांध समिति की यह पहली बैठक थी।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा पौंग बांध विस्थापितों के मामले में केंद्र, राजस्थान व प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करके आठ मई से पहले जबाव तलब किया है।

इसी बात को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वकील विनोद शर्मा व उनके सहयोगी रविवार को विस्थापितों से रूबरू हुए। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के वकील विनोद शर्मा ने विस्थापितों से रूबरू होते हुए बताया कि विभिन्न मामलों में अलग अलग याचिकाएं दायर हैं।

जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई को होने वाली दूसरी सुनवाई से पहले केंद्र, हिमाचल व राजस्थान सरकार से विस्थापितों के मामले में नोटिस जारी करके जबाब तलब किया है।

वहीं मीडिया से रूबरू होते वकील विनोद शर्मा ने बताया कि कई पौंग बांध विस्थापितों का आज तक राजस्थान में पुनर्वास नहीं हो पाया है। कई मामले में विस्थापितों का राजस्थान में भू आबंटन निरस्त हुआ है।

कुछ विस्थापितों को समझौते के अनुरूप वहां भू आबंटन नहीं हुआ है। जबकि कुछ मामलों में वहां का भू माफिया पौंग बांध को छ्ल बल से बसने नहीं दे रहा।

द्वितीय चरण बिना मूलभूत के भू आबंटन किया गया है। मिली भगत से फ्रॉड के कई मामले हैं। ऐसी कुछ और याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। जिनको लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राजस्थान व प्रदेश सरकार से 8 मई से पहले जबाब तलब किया है।

इस मौके पर प्रदेश पौंग बांध समिति प्रधान हंस राज चौधरी ने कहा कि हिमाचल के लोगों ने पौंग बांध निर्माण में भूमि को जलमग्न करवाया। इस हिसाब से उस समय का समझौता ही गलत था।

विस्थापितों को भूमि के बदले हिमाचल में ही भूमि मिलनी चाहिए थी।परंतु तीन हजार किलोमीटर दूर तपते रेगिस्तान में भोले भाले अनपढ़ लोगों को राजस्थान में बसने के लिए मजबूर किया गया।

समझौते के अनुरूप जिला श्रीगंगानगर में 2लाख 20 हजार एकड़ भूमि पर बसाना मंजूर हुआ। परंतु राजस्थान सरकार की मिली भगत और प्रदेश सरकार के उदासीन रवैय्ये ने विस्थापितों की भावनाओं को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

किसी सरकार ने उन्हें समझौते के अनुरूप राजस्थान में भूमि दिलवाने की प्रक्रिया नहीं अपनाई। वहीं मूलभूत सुविधाओं से वंचित तपते रेगिस्तान के बॉर्डर एरिया में उन्हें भूखों मरने के छोड़ दिया।

इनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट से ही उन्हें आशा की किरण नजर आती है। ऐसे में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने की प्रक्रिया अपनाई।

समिति वरिष्ठ सचिव एचसी गुलेरी ने कहा उत्पीड़न का दंश झेलते कभी प्रदेश मुख्यमंत्री, कभी मंत्रियों, कभी केंद्रीय नेतृत्व से न्याय की गुहार लगाई। परंतु सरकारों का रवैय्ये विस्थापितों के प्रति पचास वर्षों से ही उदासीन रहा है।

विस्थापितों के हितों की रक्षा के लिए गठित हाई पावर कमेटी की 27 बैठकें बेनतीजा रहीं। जोकि दर्शाती हैं कि यह खानापूर्ति ही रही।

वरिष्ठ उपाध्यक्ष एम एल कौंडल ने कहा कि विस्थापितों के साथ सभी सरकारों के अन्यायपूर्ण व्यवहार ने उन्हें मजबूर कर दिया की सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएं। ऐसे में विस्थापितों को सुप्रीम कोर्ट से जल्द ही न्याय मिलेगा।

ये रहे उपस्थित 

इस मौके पर बीएस पगड़ोत्रा, प्यारे लाल, कुलदीप शर्मा, रघुवीर लालिया, संजीव कुमार सहित हजारों विस्थापित शामिल रहे।

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