देहरा 03 जून, शीतल शर्मा
कोरोना के इस संकट काल में एक ही परिवार के सात लोागों ने एक साथ कोरोना को हराकर सबको एक प्रेरणा देने का कार्य किया है। देहरा उपमंडल की डाडासीबा तहसील के अंतर्गत पड़ने वाले सुदूर गांव अप्पर भलवाल में रहने वाला परिवार अपने हौसले, स्वास्थ्य विभाग की त्वरित सहायता और गांव वालों के सतत सहयोग के कारण महामारी को मात दे पाया।
परिवार से संबंध रखने वाली शिवानी राणा बताती है कि वह चंडिगढ़ में साॅफटवेयर इंजिनियर के तौर पर काम करती हैं और पिछले महिने अपने घर अप्पर भलवाल वापिस लौटीं थी। घर लौटने के बाद शुरुआती लक्ष्ण आने पर उन्होंने तुरंत अपनी कोरोना जांच कराई, जिसमें वह पासिटिव निकलीं। उसके तुरंत बाद स्वास्थ्य विभाग ने उन्हें दवाईयां उपलब्ध करवाई और परिवार के अन्य सभी सदस्यों को भी कोरोना जांच के लिए बुलाया।
दो दिन के बाद आई रिपोर्ट में उनके परिवार में 11 में से सात लोग संक्रमित पाए गए। जिनमें वह स्वयं, उनकी छोटी बहन शालिणी राणा, माॅं प्रीतो राणा, चाची वीना देवी, चचेरी बहनें अंजलि ठाकुर, रिया ठाकुर व 12 वर्ष का चचेरा भाई आरुष ठाकुर थे।
परिवार में 11 में से 7 लोगों के संक्रमित पाए जाने के बाद उन सबने अपने आप को घर के एक हिस्से में आईसोलेट कर दिया। उन्होंने बताया कि उनके पास दो विकल्प थे या तो सब हिम्मत हार के बैठ जाते या सभी एक-दूसरे की हिम्मत को बढ़ाते। उन्होंने दूसरा विकल्प चुना और सब एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते रहे।
जैसे ही किसी का स्वास्थ्य ज्यादा बिगढ़ता तो बाकि उन्हें कहते कि कल हमारे साथ भी ऐसा हो रहा था आज आराम है, आपको भी कल तक आराम आ जाएगा। उन्होंने बताया कि अगर उनमें से कोई भी व्यक्ति अकेला होता तो उस स्थिति से बाहर आना बहुत कठिन था। उन्होंने कहा कि संयुक्त परिवार का महत्व उन्हें ऐसे समय में पता चला।
डाक्टर दिन में दो बार करते थे बात
शिवानी राणा ने बताया कि संक्रमित होने के तुरंत बाद आशा कार्यकर्ताओं ने उनके घर सभी लोगों के लिए दवाईयों की किट पहुंचाई। उनका घर क्योंकि दूरस्थ क्षेत्र में पड़ता है इसलिए उन्हें हमेशा डर रहता था कि आपात समय में डाक्टर तक कैसे पहुंचेगे। उन्होंने कहा उनके परिवार को डाडासीबा अस्पताल से डाॅ. हिमांशु देख रहे थे।
डाॅ. हिमांशु से दिन में दो बार बात होती थी। वह सबकी पूरी विस्तृत जानकारी लेने के बाद सबके लिए दवाईयां एवं उपचार की विधियां बताते थे और जरूरत पड़ने पर आशा कार्यकर्ता दवाईयां घर पहुंचा जाती थीं। उन्होंने बताया कि इसके अतिरिक्त उन लोगों ने दिन में दो बार योग एवं प्राणायाम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया था, जिससे उन सबको सर्वाधिक लाभ मिला।
इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य विभाग द्वारा बताई गई हर उपचार विधि का वह पालन करते थे। उन्होंने बताया कि इसके अतिरिक्त नायब तहसीलदार डाडासीबा अभिराय सिंह ठाकुर भी इस दौरान उनके घर दो बार आए और समय-समय पर फोन पर संपर्क करत और सहायता के लिए पूछते रहते थे।
गांव वालों ने करवाया पूरे सप्ताह भोजन
कोरोना के इस काल में जहां बहुत से लोग संक्रमित होने पर अपने रिश्तेदारों और पढ़ोसियों से दूरी बना रहे हैं। वहीं अप्पर भलवाल के गांव वासियों ने भी ऐसे समय में एक मिसाल कायम की। शिवानी बताती हैं कि वह सात लोग होने की वजह से स्वयं भोजन बनाने में सक्षम थे।
लेकिन दो दिन बाद उनके शरीर में इतनी कमजोरी आने लगी कि वह लोग उठने में भी असमर्थ थे, जिस कारण उन्होंने दूसरे दिन सुबह केवल ब्रेड खाकर गुजारा किया। उन्होंने कहा कि पंचायत प्रतिनिधि हमेशा उनके संपर्क में रहते थे। जब उन्होंने पंचायत प्रधान बिरबल कुमार और सरपंच सतीश कुमार को इस बारे में बताया तो उन्होंने भोजन की चिंता छोड़ते हुए उन्हें केवल आराम करने की बात कही।
उसके बाद पूरे एक सप्ताह तक उन सात लोगों का तीन समय का भोजन गांव के लोगों ने बनाकर भेजा। शिवानी बताती है कि गांव के घरों से आया वह भोजन इतना पौष्टिक और स्वादिष्ट था जैसा वो आम दिनों में भी खाते थे।
शिवानी बताती हैं कि वो दिन बहुत कठिन थे। उनमें से बहुत से लोगों का स्वास्थ बिगड़ा भी, जिसमें उनकी चाची वीना देवी का बुखार और खांसी 20 दिन तक नहीं गया, उसके बावजूद वह सब लोग कोरोना से जंग जीत गए।
उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग, प्रशासन, गांव वालों के सहयोग और संयुक्त परिवार के महत्व को वह लोग कभी नहीं भूल सकते। उन्होंने कहा कि कोरोना से जीता जा सकता है बस लोग लक्षण आने पर समय से जांच कराएं और यदि संक्रमित हो जाए तो पूरी हिम्मत रखें और आस-पड़ोस के लोग हमारे गांव और परिवार की तरह संक्रमित व्यक्ति की पूरी चिंता करें।