हिमखबर डेस्क
धर्मशाला और मकलोडगंज, जो निर्वासित तिब्बती सरकार और दलाईलामा का निवास स्थान है, में भूकंप के बढ़ते खतरे ने सुरक्षा संबंधी गंभीर चिंताएं बढ़ा दी हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह क्षेत्र उच्च भूकंपीय जोन में आता है और भविष्य में सात से नौ तीव्रता तक के भूकंप आने की आशंका है, जिससे बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हो सकता है। ऐसे में तिब्बती इतिहास के संरक्षण को लेकर भी भविष्य के प्लान पर जोर दिया गया।
न्यूयॉर्क स्थित वास्तुकला और इंजीनियरिंग फर्म स्टूडियो न्यांदक ने तिब्बती वर्कर्स एंड आर्काइव्स लाइब्रेरी के सहयोग से मकलोडगंज में वास्तुशिल्प विरासत और धर्मशाला भूकंप प्रतिरोधक क्षमता विषय पर दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में धर्मशाला और इसके आसपास के क्षेत्रों में बढ़ते भूकंपीय जोखिमों और तिब्बती इतिहास व परंपराओं के संरक्षण की आवश्यकता पर गहन मंथन किया गया।
तिब्बती वर्क्स एंड आर्काइव्स लाइब्रेरी के निदेशक गेशे लखदोर ने उद्घाटन भाषण में पहाड़ी शहरों की संवेदनशीलता पर जोर दिया। स्टूडियो न्यांदक की संरचनात्मक इंजीनियर देचेन त्सोग्याल ने भूकंपीय जोखिम मूल्यांकन पर सत्र के निष्कर्ष प्रस्तुत किए। उनके शोध से पता चला है कि अगले 50-200 वर्षों में 7.5 या उससे अधिक तीव्रता का भूकंप आने की आशंका है।
स्टूडियो न्यांदक, जो न्यूयॉर्क में व्यावसायिक रूप से संचालित होता है, धर्मशाला में नेचुंग मठ के पास एक उप-कार्यालय भी चलाता है। यह स्थानीय कार्यालय निर्वासित तिब्बती सरकार, टीसीवी स्कूलों, मठों और धर्मार्थ संगठनों के लिए नि:शुल्क काम पर केंद्रित है।