डाक्टर राजेंद्र कंवर ने पत्नी के स्वर्गवास के बाद करोड़ो की प्रॉपर्टी हिमाचल सरकार को दी दान

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हमीरपुर – अनिल कपलेश

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‘देनहार कोउ और है, मेजत सो दिन रैन। लोग भरम हम पर घरें, याते नीचे नैन। महान संत कवि रहीम ने मध्यकालीन युग में यह बात कही थी। भले ही उसके बाद कई युग बीते लेकिन असली और सच्चे दानियों ने बाद में भी इस परंपरा को बनाए रखा। आज भी ऐसे दानी सज्जन हैं जिनके नेक कामों की भनक वर्षों बाद या फिर उनके इस दुनिया के चले जाने के बाद लोगों को लग पाती है।

ऐसे ही महान दानियों की लिस्ट में एक नाम आता है 70 वर्षीय डा. राजेंद्र कंवर का। डा. कंवर और उनकी धर्मपत्नी (जो अब इस दुनिया में नहीं है) ने कई साल पहले ही निश्चय कर लिया था कि उनकी जो भी चल-अचल संपत्ति है उसे वे ऐसे बुजुर्गों के नाम कर जाएंगे जिनका कोई सहारा नहीं होता।

छह दिसंबर 2020 को डा. कंवर की धर्मपत्नी का स्वर्गवास भी हो गया पर उनके इस दृढ़ निश्चय की भनक किसी को नहीं लगी, लेकिन सोशल मीडिया के इस जमाने में भला चीजें कहां छिपती हैं। कुछ समय पहले खुलासा हुआ कि डा. कंवर ने बहुत पहले अपनी चल-अचल संपत्ति का वारिस सरकार को बनाते हुए अपने आलीशान घर को वृद्धाश्रम बनाने की इच्छा जताई थी, जिसका नाम वे ‘कृष्णा राजेंद्र गवर्नमेंट ओल्ड ऐज होम रखना चाहते हैं। Ó रेवन्यू डिपार्टमेंट की ओर से इसे लेकर प्रक्रिया भी मुकम्मल कर ली गई है।

बताते हैं कि डा. कंवर और उनकी धर्मपत्नी कृष्णा कंवर (रि. प्रिंसीपल) की कोई संतान नहीं हुई। दोनों ने इच्छा जताई कि जिस सरकारी नौकरी ने उन्हें सारी सुख सविधाएं दी, इतना मान-सम्मान दिया तो क्यों न उसे सरकार को ही बाइज्जत लौटाया जाए। इसलिए दोनों ने जो कुछ भी नौकरी के दौरान अर्जित किया था उसकी वसीयत बनाकर सरकार के नाम कर दी।

जोलसप्पड़ में नेशनल हाई-वे के बिलकुल किनारे पांच कनाल पांच मरले जगह पर डा. कंवर का डबल स्टोरी आलीशान मकान है। इसके अलावा सर्वेंट क्वार्टर हैं, जहां एक दंपति उन्होंने अपनी देखभाल के लिए रखा हुआ है। साथ ही कुछ साल पहले खरीदी गई एक क्रेटा गाड़ी है। वह चाहते हैं कि उनके इस दुनिया के चले जाने के बाद इस गाड़ी का इस्तेमाल भी बतौर एंबुलेंस किया जाए।

क्या कहते हैं डा. कंवर

डा. कंवर के अनुसार जो सरकार-समाज ने दिया, उसे ससम्मान लौटाना चाहते है चल-अचल संपत्ति की वसीयत बनाकर सरकार के नाम। उन्हें सरकारी नौकरी से बहुत कुछ मिला चाहे वह पैसा हो या सम्मान। बकौल डा. कंवर मैं इसलिए सौभाग्याशाली हूं कि मेरा पेशा डाक्टरी रहा, जिसके चलते मैं आज भी मानवसेवा कर पा रहा हूं। मेरा मानना है कि जो व्यक्ति जिस भी फील्ड में होता है उसे अपनी जरूरतों के अलावा उससे संबंधित समाज के लिए भी कुछ कंट्रीब्यूट करना चाहिए, लेकिन यह सब इतनी खामोशी से होना चाहिए कि उसका पता इनसान के इस दुनिया से विदा होने के बाद ही दुनिया को पता चले।

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