नाहन, 15 नवंबर – नरेश कुमार राधे
हिमाचल प्रदेश के युवा अपनी काबिलियत के बूते न केवल अपने देश में बल्कि विदेशी धरती पर भी अपना परचम लहरा रहे है। सिरमौर जिला के युवा वैज्ञानिक ने भी कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है।
मूलतः नैनाटिक्कर के समीप मछाड़ी गांव के रहने वाले डॉ पंकज अत्रि ने जापान में एएपीपीएस-डीपीपी यंग रिसर्चर अवार्ड-2023 हासिल कर प्रदेश व देश का नाम रोशन किया है।
डॉ. पंकज की इस उपलब्धि से न केवल सिरमौर का गौरव बढ़ा है, बल्कि देश और दुनिया में हिमाचल का भी कद भी बढ़ गया है।
पच्छाद विधानसभा क्षेत्र से संबंध रखने वाले डॉ. पंकज अत्री जापान की क्यू शू यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है। उन्हें यह अवार्ड उन्हें एप्लाइड प्लाज्मा के क्षेत्र में रिसर्च कार्य के लिए प्रदान किया गया।
डॉ. पंकज अत्री अपने शोध के लिए वर्ल्ड साइंटिस्ट में एक जाना पहचाना नाम है। चार बार वह वर्ल्ड के टॉप दो फीसदी वैज्ञानिकों की सूची में आ चुके हैं। वर्ष 2017, 2020 से 2023 तक लगातार तीन वर्षों से वह इस सूची में हैं।
डॉ. अत्री का चयन 13 नवंबर 2023 को एएपीपी (एशिया पेसिफिक फिजिकल सोसायटी)-डीपीपी (डिवीजन ऑफ एप्लाइड प्लाजमा फिजिक्स) यंग रिसर्चर अवार्ड (अंडर-40) के लिए हुआ है।
डिवीजन ऑफ एप्लाइड प्लाज्मा फिजिक्स (DPP) में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें यह पुरस्कार 13 नवंबर को दिया गया। इससे पिता जगदीश शर्मा, छोटे भाई अंकित अत्री और बहन निताशा अत्री ने डॉ. पंकज को बधाई दी है।
नाहन में हुई शिक्षा
डॉ.पकंज अत्री का जन्म हरियाणा के कालका में 9 मार्च 1983 को जगदीश शर्मा के घर हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा डीएवी स्कूल नाहन से हुई। मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उनका दाखिला नाहन के बॉयज सीनियर सेकेंडरी स्कूल में हुआ।
वह नॉन मेडिकल विषय के छात्र थे। जमा दो के बाद डिग्री कॉलेज नाहन बीएससी की। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी में एसएससी में प्रवेश लिया। इसके बाद वर्ष 2023 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी की।
पंकज अत्री की पीएचडी (Ph.D) कंप्लीट होने के बाद उनका चयन साउथ कोरिया की कांगून यूनिवर्सिटी में सहायक प्राध्यापक के रूप में हुआ। यहां सेवाकाल के दौरान 2016 में उनका चयन जापान की सम्मानजनक फैलोशिप जेएसपीएस (JSPS) के लिए हुआ।
इसके बाद उनका जापान की टॉप 6 और विश्व की 120 से 130 रैंक वाली क्यूशू यूनिवर्सिटी के लिए हुआ। उनकी रिसर्च लगातार नए आयाम छू रही थी। एक साल बाद ही वर्ष 2017 में उन्हें बेल्जियम की प्रतिष्ठित “मैरी क्यूरी फैलोशिप फॉर यूरोपियन यूनिवर्सिटी” मिली। वहां से दो साल के लिए बेल्जियम चले गए।
उनकी शोध एप्लाइड प्लाज्मा का उपयोग कैंसर की लाइलाज बीमारी में भी होता है। दो साल की फैलोशिप कंप्लीट करने के बाद वह दोबारा जापान की क्यूशू यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए। वर्तमान में वह इसी यूनिवर्सिटी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।