जाने कांगड़ा के बाबा बैजनाथ धाम की रोचक कथा

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हिमखबर, डेस्क 

कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए झारखंड के देवघर में श्रावणी मेले का आयोजन इस साल भी स्थगित कर दिया गया है। इस दौरान 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर का दरवाजा नहीं खोला जाएगा।

श्रद्धालुओं को बाबा बैद्यनाथ धाम के दर्शन किए बिना ही रहना होगा। कोरोना संक्रमण को लेकर बीते दो साल से कांवड़ यात्रा बंद है। अलग-अलग राज्यों समेत नेपाल और अन्य देशों से कांवड़ यात्री यहां आते थे।

करीब 40 से 50 लाख कांवड़ यात्री हर साल यहां पहुंचकर पूजा करते थे, लेकिन कोरोना की तीसरी लहर की आहट को देखते हुए प्रशासन ने कांवड़ यात्रा रद्द करने का फैसला लिया है।

सावन के महीने में प्रत्येक शिवभक्त की यही कामना होती है कि एक बार बाबा बैद्यनाथ का दर्शन जरूर कर ले। कहते हैं सागर से मिलने का जो संकल्प गंगा का है वही दृढ़ निश्चय भगवान शिव से मिलने का कांवडि़यों में भी देखा जाता है।

तभी तो श्रावणी मेले के दौरान धूप, बारिश और भूख-प्यास भूलकर दुर्गम रास्तों पर दुख उठाकर अपने दुखों के नाश के लिए वे बाबा बैद्यनाथ की शरण में पहुंचते हैं। विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेले के समापन की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आती है वैसे-वैसे इस कांवड़ यात्रा में देश-विदेश से आने वाले शिव भक्तों की संख्या बढ़ती जाती है।

मान्यता है कि सावन महीने में सुल्तानगंज के अजगैबीनाथ धाम में प्रवाहित उत्तरवाहिनी गंगा से कांवड़ में जल भर कर पैदल 105 किलोमीटर की दूरी तय कर देवघर में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रसिद्ध बाबा बैद्यनाथ धाम और यहां से करीब 42 किलोमीटर दूर दुमका जिले में अवस्थित बाबा बासुकीनाथ धाम में जलार्पण और पूजा-अर्चना करने से श्रद्धालु शिवभक्तों की सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं।

इस कारण बैद्यनाथ धाम को दीवानी और बासुकीनाथ धाम को फौजदारी बाबा के नाम से जाना जाता है। बैद्यनाथ धाम की प्रसिद्धि रावणेश्वर धाम और हृदयपीठ रूप में भी है।

मान्यताओं के अनुसार एक समय राक्षसों के अभिमानी राजा एवं परम शिव भक्त रावण ने कैलाश पर्वत पर कठिन तपस्या कर तीनों लोक में विजय प्राप्त करने के लिए अपनी लंकानगरी में विराजमान होने के लिए औघड़दानी बाबा भोले शंकर को मना लिया।

लंका जाने के लिए अनमने भाव से तैयार हुए भगवान शंकर ने रावण को वरदान देते समय यह शर्त रखी कि लिंग स्वरूप को तुम भक्तिपूर्वक अपने साथ ले जाओ, लेकिन इसे धरती पर कहीं मत रखना। अन्यथा यह लिंग वहीं स्थापित हो जाएगा।

रावण की इस सफलता से इंद्र सहित देवतागण चिंतित हो गए और इसका उपाय निकालने में जुट गए। कहते हैं कि रावण लिंग स्वरूप बाबा भोलेनाथ को लंकानगरी में स्थापित करने के लिए जा रहा था कि रास्ते में पड़ने वाले झारखंड के वन प्रांत में अवस्थित देवघर में शिव माया से उसे भारी लघुशंका की इच्छा हुई, जिसे वह सहन नहीं कर पा रहा था।

रावण बैजू नाम के एक गोप को लिंग स्वरूप सौंप कर लघुशंका करने चला गया। बैजू लिंग स्वरूप के भार को सहन नहीं कर सका और उसे जमीन पर रख दिया। जिससे देवघर में भगवान भोलेनाथ स्थापित हो गए।

लघुशंका कर लौटे रावण ने देखा बाबा भोलेनाथ जमीन पर विराजमान हो गए हैं, तो वह परेशान हो गया और उन्हें जमीन से उठाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सका।

इससे गुस्से में आकर उसने लिंग स्वरूप भोलेनाथ को अंगूठे से जमीन में दबा दिया, जिसके निशान आज भी बैद्यनाथ धाम स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंग पर विराजमान हैं। उस लिंग में भगवान शिव को प्रत्यक्ष रूप में पाकर सभी देवताओं ने उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर उसका नाम बैद्यनाथ धाम रखा।

इस दिव्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन से सभी पापों का नाश और मुक्ति की प्राप्ति होती है। बैद्यनाथ धाम की गणना उन पवित्र तीर्थ स्थलों में की जाती है, जहां द्वादश ज्योतिर्लिंग के अलावा शक्ति पीठ भी स्थापित है।

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