छोटे से हिमाचल का बड़ा कमाल, दुनिया की सांसों में जान फूंक रहा साल दर साल

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हिमखबर डेस्क 

लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण जहां पूरी दुनिया आज ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से जूझ रही है, वहीं पहाड़ी राज्य हिमाचल ने उदाहरण सैट करते हुए सबको बताया है कि कैसे प्रकृति और विकास को एक साथ चलाया जा सकता है। शायद यही वजह है कि हिमाचल की गिनती सबसे स्वच्छ राज्य में होती है।

ऐसे में कहा जा सकता है कि हिमाचल की हरियाली दुनिया को कहीं न कहीं स्वच्छ सांसें दे रही है। फोरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट जो कि सेटेलाइट आधार पर बनाई जाती है, उसके अनुसार 556673 वर्ग किलोमीटर एरिया (जिओग्राफिकल एरिया) वाले प्रदेश का 15580 वर्ग किलोमीटर एरिया, जो कि 28 प्रतिशत बनता है, वनों से कवर हुआ है।

2021 की रिपोर्ट के मुताबिक यह 15443 वर्ग किलोमीटर यानी 27.73 प्रतिशत बनता है। फोरेस्ट डिपार्टमेंट की मानें, तो उनका लक्ष्य इसे 30 प्रतिशत तक पहुंचाना है। बता दें कि सबसे अधिक वन घनत्व वाला एरिया 3118 वर्ग किलोमीटर, मध्यम घनत्व वाला 7280 और ओपन फोरेस्ट एरिया 5182 वर्ग किलोमीटर है।

प्रदेश में सबसे अधिक वन घनत्व वाला एरिया जिला शिमला है, जिसमें 5131 में से 779 वर्ग किलोमीटर में जंगल हैं, उसके बाद कुल्लू और उसके बाद चंबा है। सबसे कम वन घनत्व वाला जिला लाहुल-स्पीति है। यहां 13841 में से मात्र 11.95 वर्ग किलोमीटर में सबसे अधिक जंगल हैं, उसके बाद ऊना और फिर हमीरपुर है।

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर हिमाचल को पूरे देश में इसलिए भी याद किया जाता है कि पोलिथिन पर प्रतिबंध लगाने वाला यह देश में पहला राज्य बना था। 10 दिसंबर 1998 को तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार के मार्गदर्शन में इसकी शुरुआत की गई थी।

उधर, फोरेस्ट हमीरपुर सर्किल कंजरवेटर निशांत मंढोत्रा ने बताया कि डिवेलमेंट के कामों में यदि पेड़ कटते हैं, तो उससे दोगुने लगाए भी जाते हैं। हर साल प्लांटेंशन का काम होता है, जिससे रिजल्ट भी देखने में आ रहे हैं।

सरकार ने लांच की दो योजनाएं

हिमाचल को ग्रीन स्टेट बनाने का सपना लेकर आगे बढ़ रही प्रदेश सरकार ने दो दिन पूर्व हमीरपुर से दो बड़ी योजनाएं लांच कीं।

इनमें एक राजीव गांधी वन संवर्धन योजना है, जिसमें महिला मंडल व युवक मंडल दो-दो हेक्टेयर वन भूमि पर पौधारोपण करेंगे और पांच वर्षों तक इनकी देखभाल भी सुनिश्चित करेंगे।

दूसरी ग्रीन एडॉप्शन योजना शुरू की गई जिसमें निजी उद्यम, कंपनियां और गैर-सरकारी संगठन बंजर वन भूमि को गोद लेकर पौधरोपण करेंगे।

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