गंभीर बिमारी ने जकड़ लिए बच्चे, रोग से निपटने के लिए स्कूलों में शुरू होगा नया बोर्ड

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हिमखबर डेस्क

लाड़प्यार में हम अपने ही बच्चों के दुश्मन बन गए हैं और अब उन्हें एक ऐसी बिमारी ने घेर लिया है, जो 40 की उम्र के बाद शुरू होती है। कहने को तो यह प्यार है, लेकिन यह एक मीठा जहर है, जो बच्चों को धीरे-धीरे एक गंभीर बिमारी की ओर ले जा रहा है।

डब्ल्यूएचओ का मानना है कि एक बच्चा दिन में जितीन कैलोरी लेता है, उससे तीन गुना ज्यादा वह चीनी खा रहा है। जिस तरह जूस, कोल्डड्रिंक्स, पिज्जा-बर्गर, चाउमिन-मोमो और तरह-तरह के पैक्ड फूड, चिप्स बच्चों के जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं, उसी तरह मोटापे और शुगर की बिमारी भी उनके शरीर का हिस्सा बन गए हैं।

इसी बीच बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के उद्देश्य से एक अग्रणी कदम उठाते हुए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने 24,000 से ज़्यादा संबद्ध स्कूलों को स्कूल शुगर बोर्ड लागू करने का निर्देश दिया है। यह एक स्वास्थ्य जागरूकता पहल है, जिसका उद्देश्य छात्रों में चीनी के अत्यधिक सेवन को रोकना है।इस पहल को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) का पुरज़ोर समर्थन प्राप्त है, जो इसके राष्ट्रीय महत्व को और भी रेखांकित करता है।

प्रसिद्ध बाल विशेषज्ञ डॉ. वीके आहूजा ने मंगलवार को फिल्लौर के गांव झनेरही स्थित सत्य भारती आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में इस अभियान का उद्घाटन किया तथा 1,000 से अधिक विद्यार्थियों और 50 शिक्षकों को संबोधित किया।उन्होंने बचपन में मोटापे, मधुमेह और अनियमित चीनी सेवन से उत्पन्न अन्य जीवनशैली संबंधी विकारों की मूक महामारी से निपटने की तत्काल आवश्यकता पर एक व्यावहारिक व्याख्यान दिया।

डॉ. आहूजा ने अपने संबोधन में कहा कि हम बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज़ के मामलों में चिंताजनक वृद्धि देख रहे हैं। एक ऐसी स्थिति जो पहले केवल वयस्कों को ही होती थी। इसका मुख्य कारण मीठे खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों का अत्यधिक सेवन है, जिनमें से कई को हानिरहित बताकर बेचा जाता है।

उन्होंने स्कूल कैंटीन और घरों में कोल्ड ड्रिंक्स, पैकेज्ड फ्रूट जूस और प्रोसेस्ड स्नैक्स की आम मौजूदगी को इस समस्या का एक बड़ा कारण बताया। उन्होंने कहा कि शुगर बोर्ड, लोकप्रिय खाद्य पदार्थों में चीनी की मात्रा के बारे में रोज़ाना दृश्य अनुस्मारक के रूप में काम करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।

ये बोर्ड तुलनाओं को उजागर करेंगे—जैसे कोल्ड ड्रिंक बनाम छाछ—और अनुशंसित चीनी सेवन सीमा, चीनी के अत्यधिक सेवन के स्वास्थ्य परिणामों और स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों के बारे में तथ्य साझा करेंगे। डा. आहूजा ने ज़ोर देकर कहा कि बच्चे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित कुल दैनिक कैलोरी सेवन के पांच प्रतिशत की सीमा से तीन गुना ज़्यादा चीनी का सेवन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सिर्फ़ एक 300 मिलीलीटर कोल्ड ड्रिंक में 8 छोटे चम्मच चीनी हो सकती है।

उन्होंने स्कूलों से बच्चों के दिमाग़ को स्वस्थ विकल्पों के प्रति ढालने की जिम्मेदारी लेने का आग्रह किया। यह पहल पोस्टर और जागरूकता बोर्डों से कहीं आगे जाती है। इसमें कैंटीन ऑडिट, पोषण साक्षरता को बढ़ावा देना और अच्छी आदतों को बढ़ावा देने में शिक्षकों और अभिभावकों की सक्रिय भागीदारी शामिल है।

स्कूलों को उच्च वसा, चीनी, नमक (एचएफएसएस) और अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने और ताज़े फल, सब्जय़िाँ और पौष्टिक नाश्ते को बढ़ावा देने का भी निर्देश दिया गया है। डा. आहूजा ने जीवनशैली से जुड़े व्यावहारिक सुझाव भी दिए, जिनमें स्क्रीन टाइम सीमित करना, 8-9 घंटे की नींद सुनिश्चित करना, रोज़ाना शारीरिक गतिविधि को प्रोत्साहित करना और सोच-समझकर खाने की संस्कृति को बढ़ावा देना शामिल है।

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