नैना देवी, सुभाष चंदेल
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य, पूर्व मंत्री व विधायक श्री नयना देवी जी विधानसभा क्षेत्र राम लाल ठाकुर ने कहा कि महामारी के इस दौर में सरकार की अपरिपक्वता शिक्षा के क्षेत्र में भी साफ़ झलकी है।
महामारी को आए लगभग डेढ़ साल हो चुका है लेकिन अभी भी सरकार व विभाग सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए कोई ठोस नीति बनाने में पूर्णत नाकाम रही है। हर घर पाठशाला का एक पोर्टल मात्र बना कर गरीब विद्यार्थियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है ।
अगर विशेषज्ञों की राय देखी जाए तो भारत में कारोना की तीसरी लहर आ सकती है जिसमे बच्चों पर ज्यादा खतरा होगा। ऐसे में अभी पाठशालाएं खुलना असम्भव है। दूसरी तरफ वंचित वर्ग के छात्रों को मुख्य धारा में जोड़ने के बजाय सरकार झूठे आंकड़ों की जादूगरी में लगी हुई है।
सरकारी पाठशालाओं में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चों के अभिभावक मजदूरी, किसानी करके आजीविका कमाते हैं जिनके लिए स्मार्ट फोन रखना और इंटरनेट का खर्च वहन करना लगभग नामुमकिन है। अगर किसी के पास स्मार्ट फोन है भी तो दो या तीन बच्चे उस एक फोन पर से ही अपना गृहकार्य करने का असफल से प्रयास कर रहे हैं। अध्यापकों द्वारा पोर्टल पर से लिंक प्रतिदिन विद्यार्थियों को भेज दिया जाता है जिसे सिर्फ वही बच्चे देख पाते हैं जिनके पास स्मार्ट फोन व इंटरनेट की सुविधा है।
स्कूल मुखियाओं को बार बार ये अव्यावहारिक से आदेश दिए जाते हैं कि वे इस बात को सुनिश्चित करें कि कोई भी विद्यार्थी पढ़ाई से वंचित न रहे । लेकिन सुविधाओं के अभाव में वे किस प्रकार करेंगे इस बात को जवाब शायद उनके पास भी नहीं है। मज़ाक का आलम यह है पांचवीं छठी कक्षा के विद्यार्थियों को नोट्स पहुंचाने तक के आदेश आए दिन अखबारों के माध्यम से पढ़ने को मिलते हैं ।
सरकार में बैठे नुमाइंदों को ये समझना पड़ेगा कि बच्चे स्कूलों में पढ़ रहे हैं न कि किसी विश्वविदयालय से डॉक्ट्रेट की उपाधि लेने जा रहे हैं। नासमझी की पराकाष्ठा ही है कि बंद पड़े स्कूलों को सेनेटाइज़ेशन के नाम पर करोड़ों रुपए जारी किए गए हैं। कोरोना काल में पानी की बोतलें बच्चों को बांटी जा रही हैं।
अगर सरकार दूरदर्शिता का परिचय देती तो इसी धनराशि से उन सभी विद्यार्थियों को फोन उपलब्ध करवाए जा सकते थे जो लगभग डेढ़ साल से साधन विहीनता के कारण पढ़ाई से वंचित हैं। सरकार से मांग है कि इन झूठे आंकड़ों से खेलना बंद करे और मुद्दे की संवेदनशीलता को समझते हुए उचित पहचान करके हर पात्र विद्यार्थी को फोन व इंटरनेट की सुविधा प्रदान की जाए।
इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के अंतर्गत मिलने वाली करोड़ों रुपए की राशि को भी महामारी के दौरान हर वंचित विद्यार्थी की पढ़ाई सुनिश्चित करने के लिए प्रयोग किया जा सकता था जो नहीं किया गया।
हालत यह हो चुके हैं एक तो बच्चों के साधन नहीं है और ऊपर से अध्यापकों पर ऑनलाइन पढ़ाने का बेतरतीब ढंग का बोझ, जिसके कारण अध्यापक भी पढ़ाई के मामले में सहज नही हो पा रहे और बच्चों में सुविधाओं का अभाव, दोनों ही विपरीत दिशा में जा रहे है अध्यापक भी और छात्र भी। लग यह रहा है कि पिछले डेढ़ वर्ष के कोरोना काल मे कुशल शिक्षा नीति बनाने में असफल रही है।
जारीकर्ता
संदीप सांख्यान
महासचिव, जिला कांग्रेस
बिलासपुर (हि.प्र)