किसी का जीवन बचाने के लिए डॉक्टर होना जरूरी नहीं है, मृत्यु के बाद अंगदान करके जरूरतमंद का बचा सकते हैं जीवन

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शिमला – जसपाल ठाकुर

शिमला के आईजीएमसी के कमेटी हॉल में शुक्रवार को स्टेट ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (सोटो) हिमाचल प्रदेश की ओर से अंगदान के विषय पर पत्रकार वार्ता आयोजित की गई।

सोटो के चेयरमैन व आईजीएमसी के प्रधानाचार्य डॉ सुरेंद्र सिंह ने बताया कि अंगदान के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सामान्य तौर पर लोगों में अंगदान के प्रति जानकारी का अभाव रहता है इसी कारण भारत अंगदान करने में पीछे है।

हर साल लाखों लोग अंगदान के इंतजार में रहते हैं लेकिन महज कुछ लोग ही अंग दान करते हैं। आईजीएमसी शिमला में अभी तक पांच लाइव किडनी ट्रांसप्लांट हुए हैं। वही सोटो के शुरू होने के बाद लोगों में ब्रेन डेड की स्थिति में अंगदान करने को लेकर जागरूकता फैलाई जा रही है।

सोटो के नोडल अधिकारी डॉ पुनीत महाजन ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति का जीवन बचाने के लिए डॉक्टर होना ही जरूरी नहीं है बल्कि लोग मृत्यु के बाद भी अपने अंगदान करके जरूरतमंद का जीवन बचा सकते हैं।

अंगदान करने वाला व्यक्ति ऑर्गन के जरिए 8 लोगों का जीवन बचा सकते हैं। जीवित अंगदाता किडनी, फेफड़े का भाग और बोन मैरो दान दे सकते हैं, वहीं मृत्युदाता यकृत, गुर्दे, फेफड़े, पेनक्रियाज, कॉर्निया और त्वचा दान कर सकते हैं।

उन्होंने बताया कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीजों और दुर्घटनाग्रस्त मरीजों के ब्रेन डेड होने के बाद यह प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। अस्पताल में मरीज को निगरानी में रखा जाता है और विशेष कमेटी मरीज को ब्रेन डेड घोषित करती है। मृतक  के अंग लेने के लिए पारिवारिक जनों की सहमति बेहद जरूरी रहती है।

उन्होंने बताया कि देश भर में प्रतिदिन 6000 मरीज समय पर ऑर्गन ना मिलने के कारण मरते हैं जोकि  बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। समाज में अंगदान को लेकर अलग-अलग भ्रांतियां फैली हुई है। भ्रांतियों को समय रहते दूर किया जाना चाहिए और अधिक से अधिक लोगों को इसके महत्व के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। उन्होंने बताया कि अंगों की तस्करी के अपराध को रोकने के लिए सरकार की ओर से विशेष कदम उठाए जा रहे हैं।

कार्यक्रम में यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष व विशेषज्ञ डॉक्टर पंपोष रैना, सोटो के संयुक्त निदेशक डॉ शोमिन धीमान, नेफ्रोलॉजी के विशेषज्ञ डॉक्टर आशीष कुमार, आई बैंक के इंचार्ज डॉक्टर यशपाल रांटा, सोटो  की  आईईसी कंसलटेंट रामेश्वरी, ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर नरेश कुमार मौजूद रहे।

समाज का हर वर्ग अंगदान की मुहिम से जुड़े – जनक राज

लोगों में भ्रांति रहती है कि अंगदान करने के बाद अंगों को बेच दिया जाता है या फिर तस्करी की जाती है।  ट्रांसप्लांट ऑफ ह्यूमन एक्ट 1994 जीवित दाता एवं ब्रेन डेड डोनर को अंगदान करने की स्वीकृति प्रदान करता है।

यह अधिनियम चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए अंगों को निकालने, भंडारण करने और प्रत्यारोपण को नियंत्रित कर मानव अंगों को तस्करी से बचाता है। कोई भी व्यक्ति अंग को खरीद या बेच नहीं सकते हैं।

उन्होंने मीडिया कर्मियों से अपील करते हुए कहा कि सोटो हिमाचल की इस मुहिम को आगे बढ़ाने में सहयोग करें ताकि जरूरतमंद मरीजों का जीवन समय रहते बचाया जा सके।

नेत्रदान से सैकड़ों की जिंदगी हुई रोशन

कार्यक्रम में नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ रामलाल शर्मा ने बताया कि आईजीएमसी में साल 2010 से आई बैंक खोला गया है। मौजूदा समय तक 366 नेत्र दान किए जा चुके हैं जिनमें 294 ट्रांसप्लांट किए जा चुके हैं।

उन्होंने बताया कि नेत्रदान में 60 से 70 फीसद कामयाबी की दर रहती है। देशभर में हर साल लाखों लोगों को नेत्रदान की जरूरत रहती है लेकिन महज 40 से 50000 आई डोनेशन हो पाती है।

उन्होंने अपील करते हुए कहा कि नेत्रदान और अंगदान करने के लिए लोग अपनी इच्छा जाहिर करें और अपने रिश्तेदारों को भी इस पुनीत कार्य में जोड़ें।

क्या है ब्रेन स्टेम डेथ

ब्रेन जीवन को बनाए रखने के लिए मस्तिष्क का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ब्रेनडेड व्यक्ति स्वयं सांस नहीं ले सकता सांस लेने के लिए वह वेंटिलेटर पर निर्भर होता है हालांकि उसकी नब्ज, रक्तचाप व जीवन के अन्य लक्षण महसूस किए जा सकते हैं। ब्रेन का कार्य ना करना मृत्यु का लक्षण है, मस्तिष्क में क्षति पहुंचने का कारण ऐसी स्थिति होती है।

इस प्रकार के रोगी को ब्रेन डेड घोषित किया जाता है। कोमा रोगियों और ब्रेन डेड रोगियों के बीच अंतर है। कोमा में मरीज मृत नहीं होता जबकि ब्रेनडेड व्यक्ति की स्थिति इससे अलग है।

इसमें व्यक्ति चेतना और सांस लेने की क्षमता हासिल नहीं कर पाता है। ह्रदय कुछ घंटों या  कुछ दिनों के लिए वेंटिलेटर की वजह से कार्य कर सकता है। इस अवधि के दौरान करीबी रिश्तेदारों की सहमति से अंग लिए जा सकते हैं।

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