अदालत ने सुनाया फैसला, आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में 2 आरोपी बरी

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व्यूरो रिपोर्ट

आत्महत्या के लिए उकसाने का अभियोग साबित न होने पर अदालत ने 2 आरोपियों को बरी करने का फैसला सुनाया है। सत्र न्यायाधीश राजेश तोमर के न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 306 और 34 के तहत अभियोग साबित न होने पर थुनाग तहसील के बजाईहाल (शिवा थाना) निवासी टुन्ना सिंह और तारा सिंह पुत्र तवारसु राम को बरी करने का फैसला सुनाया है।

अभियोजन पक्ष की ओर से आरोपियों पर चलाए गए अभियोग के अनुसार इस मामले की सूचना देने वाले तिमर सिंह और उसके भाई हेम राज को आरोपियों का भाई परम देव 17 जनवरी, 2013 को चेरा खड्ड में मिला था। इसके बाद से परम देव गायब हो गया था जिस पर आरोपियों ने अपने भाई परम देव की गुमशुदगी की रपट पुलिस में दर्ज करवाई थी।

पुलिस ने तिमर सिंह, हेम राज, हेत राम और लाल सिंह को पूछताछ के लिए जंजैहली पुलिस चौकी में बुलाया था। तिमर सिंह, हेत राम और लाल सिंह से पूछताछ हो रही थी जबकि हेम राज पुलिस चौकी के बाहर था।

इसी दौरान रैस्ट हाऊस के कर्मी हंस राज ने तिमर सिंह को बताया कि हेम राज रैस्ट हाऊस में है और वह बीमार है जिस पर तिमर सिंह और लाल सिंह रैस्ट हाऊस पहुंचे तो हेम राज ने बताया कि उसने कीटनाशक निगल लिया है।

इसके बाद हेम राज को उपचार के लिए जंजैहली अस्पताल ले जाया गया लेकिन चिकित्सकों ने उसकी हालत को देखते हुए उसे क्षेत्रीय अस्पताल मंडी रैफर कर दिया जहां पर उसकी मृत्यु हो गई।

पुलिस ने मृतक के भाई तिमर सिंह के बयान के आधार पर आरोपियों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कर अदालत में अभियोग चलाया था।

अभियोजन पक्ष की ओर से इस मामले में 15 गवाहों के बयान दर्ज किए गए। बचाव पक्ष का कहना था कि अपने भाई की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में करवाना किसी तरह का उकसाना नहीं कहा जा सकता।

इसके अलावा जिस प्रार्थना पत्र के साथ मृतक के सुसाइड नोट की लिखावट मेल करवाई गई थी उसे आधिकारिक स्रोत से हासिल नहीं किया था बल्कि इसे शिकायतकर्ता तिमर सिंह ने पुलिस को दिया था। ऐसी परिस्थितियां नहीं थीं जिनमें आत्महत्या के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था।

अदालत ने दोनों पक्षों की विस्तार से सुनवाई के बाद अपने फैसले में कहा कि अभियोजन की ओर से सुसाइड नोट पर बहुत जोर दिया गया लेकिन जिस प्रार्थना पत्र के साथ सुसाइड नोट की लिखावट का मिलान किया गया था उसे लोक निर्माण विभाग के सहायक अभियंता कार्यालय से हासिल नहीं किया गया था।

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ अभियोग साबित करने में असफल रहा है जिसके चलते अदालत ने आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी करने का फैसला सुनाया है।

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