हिमखबर डेस्क
आज, 2 अक्टूबर 2024 को हिमाचल पथ परिवहन निगम अपने 50 गौरवशाली वर्षों का जश्न मना रहा है। इस खास मौके पर हम सभी एचआरटीसी को “हैप्पी बर्थडे” कहकर उसकी इस लंबी और सफल यात्रा का स्वागत कर रहे हैं।
पूरे हिमाचल में इस अवसर को धूमधाम से मनाया जा रहा है। हर बस अड्डे को खासतौर पर सजाया गया है, ताकि HRTC के इस सुनहरे सफर का जश्न मनाया जा सके। हिमाचल पथ परिवहन निगम राज्य की परिवहन व्यवस्था की रीढ़ साबित हो रहा है।
वर्तमान में निगम के 31 डिपो हैं। हर दिन प्रदेश की लगभग 10% आबादी HRTC की बसों में सफर करती है। यानी निगम रोजाना करीब 6 लाख यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाता है।
निगम द्वारा संचालित 3600 रूट्स में से 90% रूट्स ऐसे हैं, जिन्हें आर्थिक दृष्टिकोण से घाटे का सौदा माना जा सकता है, लेकिन इसके बावजूद इसके निगम अपनी सेवाओं को बाधित नहीं करता और जनता की सेवा में तत्पर रहता है।
मौजूदा समय में निगम के पास 3142 बसों का बेडा है। बता दे कि निगम की बसें बॉलीवुड की दर्जनों फिल्मों की साक्षी भी है। निगम की बसें एक साल में लगभग 20 करोड़ किलोमीटर की दूरी तय करती हैं। लगभग 12,500 कर्मचारी दिन-रात मेहनत करके परिवहन सेवा को सुचारू बनाए रखने में जुटे रहते हैं।
आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि एचआरटीसी प्रतिदिन 45 से 50 लाख रुपए तक की सब्सिडी वाली यात्रा सेवाएं उपलब्ध कराता है। यह निगम का एक महत्वपूर्ण सामाजिक दायित्व है, जिसके तहत जरूरतमंद यात्रियों को रियायती दरों पर यात्रा की सुविधा दी जाती है। इसके अलावा भी सामाजिक सरोकार अलग रहता है।
निगम के प्रबंध निदेशक रोहन चंद ठाकुर ने बताया कि 12 अक्टूबर को 50वें वर्षगांठ समारोह के दौरान निगम के इतिहास पर आधारित एक ‘कॉफी टेबल बुक’ का विमोचन किया जाएगा। इसके अलावा निगम की यादों से जुड़ा 8 मिनट का एक विशेष वीडियो भी लॉन्च किया जाएगा। इस कार्यक्रम में निगम के 22 कर्मियों को 7-8 विभिन्न वर्गों में सम्मानित किया जाएगा।
रोहन चंद ठाकुर ने बताया कि एचआरटीसी न केवल राज्य में बल्कि पूरे देश में सबसे बेहतर भत्ते और वेतन देने वाली निगमों में से एक है। निगम के कर्मचारी निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं, और यह उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि देवभूमि की परिवहन सेवा अपनी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए पहचाना जाती है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम की 50वीं वर्षगांठ एक ऐसा उत्सव है, जो न केवल किसी एक स्थान तक सीमित है, बल्कि हिमाचल प्रदेश के हर दुर्गम गांव में भी मनाया जाएगा, जहां तक निगम की बसें पहुंचती हैं। यही नहीं, इस उत्सव का दायरा उन राज्यों तक भी फैला हुआ है, जहां निगम की बसें सेवाएं प्रदान करती हैं।
50 वर्षों के सफर में निगम की बसें करोड़ों यात्रियों का हमसफर बना है। हर हिमाचल वासी के जीवन में हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम की बसों का एक विशेष स्थान है। चाहे ऊंचे पहाड़ों की कठिन राहें हों या गांवों से शहरों तक का सफर, हरेक हिमाचली ने कभी न कभी एचआरटीसी की बस में सफर जरूर किया होगा। इन बसों न जाने कितने यात्रियों को सुरक्षित उनके गंतव्य तक ले गई होगी।
ये सिर्फ एक परिवहन सेवा नहीं, बल्कि हिमाचल की जीवन रेखा है, जिसने पिछले 50 वर्षों में यात्राओं को सुगम बनाया और राज्य के विकास को गति दी है।
खतरनाक सड़कों पर चालकों की क़ाबलियत का डंका पूरे देश में बजता है। कहा जाता है कि जहां तक सड़क जाती है, वहां तक निगम की बस पहुंचती है इसमें ऊंचे दर्रे व बर्फीले पहाड़ ही क्यों न लांघने पड़े।
प्रमुख बस अड्डों को भव्य तरीके से सजाया गया है, ताकि इस दिन को यादगार बनाया जा सके। बस अड्डों की खूबसूरती देखते ही बनती है। इसे खासतौर पर सजाया गया है जो बेहद आकर्षक नजर आ रहा है। बस अड्डे की सजावट में स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को दर्शाया गया है।
फूलों की सजावट, रंग-बिरंगी रोशनियाँ और अन्य साज-सज्जा ने बस अड्डे की खूबसूरती को और बढ़ा दिया है। ये नजारा न केवल स्थानीय यात्रियों बल्कि बाहर से आने वाले पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
चलिए,जानिए क्या है निगम का इतिहास
अब चलिए जरा आपको HRTC के इतिहास से रूबरू करवाते हैं। हिमाचल पथ परिवहन निगम की कहानी आजादी के बाद से शुरू होती है। 15 अप्रैल 1948 को हिमाचल की स्थापना एक “C” श्रेणी के राज्य के रूप में हुई, जिसमें उत्तर-पश्चिमी हिमालय के 33 पहाड़ी राज्यों का विलय हुआ।
प्रदेश में यात्री और माल सेवाओं का राष्ट्रीयकरण जुलाई 1949 में हुआ। 1958 में, “मंडी-कुल्लू रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन” की स्थापना पंजाब, हिमाचल और रेलवे द्वारा संयुक्त रूप से की गई थी, जो मुख्य रूप से पंजाब और हिमाचल में संयुक्त मार्गों पर संचालित होती थी।
1966 में पंजाब राज्य के पुनर्गठन के बाद, पंजाब के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों को हिमाचल में मिला दिया गया, और मंडी-कुल्लू रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन के संचालन क्षेत्र पूरी तरह से विस्तारित हिमाचल प्रदेश में आ गए।
2 अक्टूबर 1974 को हिमाचल सरकार की परिवहन सेवाओं का मंडी-कुल्लू रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन में विलय किया गया और इसका नाम बदलकर हिमाचल पथ परिवहन निगम कर दिया गया, जो आज भी इसी नाम से जाना जाता है।
निगम के कर्मचारियों और प्रदेशवासियों के लिए यह दिन गर्व और सम्मान का प्रतीक है। पिछले पांच दशकों में हिमाचल के कठिन पहाड़ी इलाकों में परिवहन सेवाओं के माध्यम से एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
हिमाचल के गठन के बाद 15 जुलाई 1948 को सड़क नेटवर्क को सरकार द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई। वर्तमान में हिमाचल में सड़क नेटवर्क व्यापक रूप से फैला हुआ है। 1974 में HRTC द्वारा संचालित कुल मार्गों की संख्या 379 थी, जो दिसंबर 2018 में बढ़कर 2850 हो गई, और बेड़े की क्षमता 733 से बढ़कर 3130 हो गई। फ़िलहाल सड़कों के नेटवर्क का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
राज्य में यात्री परिवहन का एकमात्र साधन बस ही बनी हुई है क्योंकि राज्य में रेल नेटवर्क का बेहद सीमित प्रभाव है। पठानकोट को जोगिंद्रनगर और कालका – शिमला से जोड़ने वाली नैरोगेज लाइन इतनी धीमी गति से चलती हैं कि वर्तमान में बहुत ही कम यात्री यातायात इनसे होता है। इस कारण यात्री यातायात का मुख्य बोझ बस परिवहन पर ही आ गया है।
हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक रोहन चंद ठाकुर ने यह भी कहा कि हिमाचल व इतिहास एक दूसरे से मिलता जुलता है। उन्होंने निगम के हरेक कर्मचारी खासकर चालकों व परिचालकों को इस मौके पर बधाई दी है।