सोलन- जीवन वर्मा
आजादी के 75 वर्षों बाद भी सुबाथू सैन्य छावनी में ब्रिटिश हुकूमत के स्मृति शेष स्थानीय लोगों को चैन से नहीं जीने नहीं दे रहे हैं। छावनी क्षेत्र के बाशिंदे आज भी खुद को अंग्रेजों का गुलाम समझने को मजबूर हैं। आजादी से पहले बनी छावनी में आज भी देश के कई कानून सुबाथू के लोगों पर लागू नहीं होते। मसलन, छावनी परिषद सुबाथू में गरीब होने के बावजूद कोई गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) नहीं माना जाता।
लोग अपने मताधिकार का प्रयोग तो करते हैं लेकिन उन्हें राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। आज भी लोगों के लिए यहां अपना एक घर बनाना सपना ही है। लोगों को अपने पुराने घर की मरम्मत करवाने के लिए भी छावनी से अनुमति लेनी पड़ती है। 77 वर्षीय हरि प्रसाद तनवर का कहना है कि आज छावनी के नियम सुबाथू के विकास में रुकावट बन रहे हैं। 65 वर्षीय गुलाब सिंह नेगी का कहना है कि सुबाथू का विकास तभी होगा, जब ब्रिटिश काल के कानून बदलेंगे।
1815 में सुबाथू में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने प्रथम गोरखा राइफल की स्थापना की थी। लोगों का कहना है कि अंग्रेजी सेना के सूबेदारों के ठहरने की जगह होने से इस जगह का नाम पहले सुभाठौर रखा था। बाद में यह दस्तावेजों में सुबाथू नाम चढ़ गया। सेना की जरूरतों के मद्देनजर सुबाथू बाजार का निर्माण किया गया। अंबाला से खच्चरों पर व्यापारी सामान लाते और सुबाथू के आढ़त बाजार से बिलासपुर, शिमला सहित प्रदेश के अन्य जगहों पर आपूर्ति करते।
इसके बाद समय के साथ पूरे प्रदेश का विकास हुआ। लेकिन सुबाथू में ब्रिटिश हुकुमत चलती रही। जिसके कारण पूरे प्रदेश को व्यापार देने वाला सुबाथू आज ग्रामीण क्षेत्रों से भी पिछड़ता जा रहा है। बीते दिनों कसौली में देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण भी छावनीवासियों का दुखड़ा सुन चुकी हैं। लेकिन ब्रिटिश हुकुमत से आजाद नहीं करवा पाई।
सुबाथू छावनी परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष दिनेश गुप्ता ने बताया कि कैंट में ब्रिटिश हुकूमत के दौर से चले आ रहे कानून अब तक लागू हैं। छावनी क्षेत्र में किसी भी निर्माण कार्य को लेकर नियम सख्त हैं। यहां केवल जर्जर हो चुके मकानों की आंशिक मरम्मत की अनुमति मिलती है। लोग कानून में बदलवा चाहते हैं।