बैजनाथ, व्यूरो
क्षेत्र के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर में दुर्लभ सिक्के मिले हैं। ये सिक्के काफी वर्ष पुराने हैं, इनमें कुछ सिक्के तांबे के हैं तथा कुछ पुराने राजा महाराजाओं के समय मुहरे लगे हुए हैं। मंदिर में कुछ दिन से जलहरी बदलने का कार्य चल रहा है। इस दौरान शिवलिंग के आसपास खोदाई की गई, यह सभी सिक्के यहां मिले।
इन सिक्कों को लोगों ने कभी बाबा महाकाल के दरबार में अर्पित किया होगा। इनमें कुछ सिक्के सैकड़ो वर्ष पुराने हैं। मंदिर पुजारी राम मिश्रा ने बताया यह सिक्के काफी प्राचीन हैं। मौके पर खोदाई में लगे स्थानीय निवासी विक्रमजीत उर्फ सोनी ने बताया यह सिक्के बेहद पुराने हैं। पुरातत्वविद इन सिक्कों के बारे में सही स्थिति बता सकते हैं। इन सिक्कों को फिलहाल मंदिर के संग्रहालय में रखा जाएगा। महाकाल मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है।
मंदिर का इतिहास
महाकाल मंदिर का इतिहास जालंधर राक्षस से जुड़ा है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने जालंधर राक्षस की तपस्या से खुश होकर वरदान दिया था कि काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। वरदान प्राप्ति के बाद जब जालंधर राक्षस देवी-देवताओं और लोगों को परेशान करने लगा तो देवताओं ने भगवान शिव की शरण ली थी।
जालंधर राक्षस की मौत का रहस्य उसकी पत्नी वृंदा के पतिव्रत धर्म में है। इसके लिए भगवान शिव ने विष्णु से माया रचने के लिए कहा था। भगवान विष्णु की माया से उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया। इसके बाद जब भगवान शिव जालंधर राक्षस को मारने लगे तो जालंधर ने कहा कि आपने मुझे वरदान दिया था कि मुझे काल नहीं मार सकेगा।
इस पर भगवान शिव ने महाकाल का रूप धारण कर जालंधर राक्षस का वध किया। जालंधर राक्षस ने कहा कि मेरा वध जहां भी हो वह पीठ मेरे नाम से विख्यात हो और महाकाल के रूप में भगवान शिव वहां विराजमान हों। इसके बाद इस क्षेत्र को जालंधर पीठ के नाम से भी जाना जाता है।
कोई नहीं जानता, कहां जाता है जल
महाकाल के शिवलिंग पर चढऩे वाला जल और दूध बाहर निकलने के बजाय शिवलिंग में ही समा जाता है। यह रहस्य आज भी बरकरार है कि यह जल और दूध कहां जाता है। हालांकि पहले के मुकाबले इसके समाने में कुछ कमी आई है लेकिन आज तक कोई इस रहस्य को नहीं जान पाया है। शिवलिंग के आस पास धोती बांधी जाती है ताकि फूल या अन्य पदार्थ ऊपर ही रह जाएं।