हमारी भी सुन लो सरकार, टाट-बोरी के झोंपड़े में रहने को मजबूर 16 सदस्यों का परिवार

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हमारी भी सुन लो सरकार, टाट-बोरी के झोंपड़े में रहने को मजबूर 16 सदस्यों का परिवार

सिरमौर – नरेश कुमार राधे

गरीबों के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं का लाभ लोगों को कितना मिल पाता है। इन योजनाओं की हकीकत जमीनी स्तर पर उतर पाती है या नहीं, इसकी हकीकत का आईना दिखाने के लिए शिलाई तहसील के क्यारी गुंडाहां पंचायत के लायक राम का परिवार बेहतरीन उदाहरण है।

सरकार की किसी भी योजना का इस परिवार को आज दिन तक लाभ मिला नहीं है। गरीब के आशियाने की पहली तस्वीर दिल को झकझोर देगी। पहली बार देखकर आप इसे पशुओं का गौशाला कहेंगे तो यकीनन आप गलत नहीं हैं। ये वास्तव में पशुओं का बाड़ा ही है, जहां लायक राम का 16 सदस्यों का परिवार गुजर बसर कर रहा है।

क्यारी गुंडाहां पंचायत के लायक राम और उनके परिवार का जीवन संघर्ष की कहानी है। मौजूदा में 16 सदस्यों का यह परिवार आज भी अत्यंत दयनीय स्थिति में जीने को मजबूर है। उनके घर की पहली तस्वीर देखकर ऐसा लगता है जैसे यह पशुओं के लिए बना एक गौशाला हो, लेकिन यह गौशाला नहीं, एक इंसान का घर है।

जहां लायक राम, उनके आठ बच्चे, उनके बड़े बेटे दयाराम के आठ बच्चे हैं, जिनमें दो बेटियां व 6 बेटे हैं। बेटियां शादी के बाद ससुराल में हैं, जबकि 6 बेटे व उनके परिवार दिन-रात दिहाड़ी मजदूरी करके किसी तरह अपने परिवार का पेट पालते हैं।

बड़ा बेटा दयाराम राम और एक अन्य शिमला में मजदूरी करते हैं। मौजूदा में लायक राम की पत्नी, चार बेटे व उनका परिवार, तकरीबन 16 सदस्य  टाट-बोरी से बने झोंपड़े में रहने को विवश हैं। घर की दीवारों और छत में दरारें आ गई हैं, और बारिश के समय पानी अंदर आ जाता है, जबकि सर्दियों में ठंडी हवाओं से घर में सर्दी घुस जाती है।

कुछ समय पहले यह परिवार कच्चे मकान में रहता था, लेकिन कच्चा घर गिरने की कगार पर है, लिहाजा परिवार की सुरक्षा के मद्देनजर परिवार को पशुओं के लिए बनाए गौशाला में रहने को विवश होना पड़ रहा है। वर्तमान में लायक राम और उनके परिवार के पास कोई स्थाई ठिकाना नहीं है। रात में 16 सदस्यों को सोने और खाने-पीने की भी कोई जगह बची नहीं है। इस स्थिति से निपटने के लिए लायक राम ने अपने परिवार के लिए दो और झोपड़ियां तैयार की हैं।

नाममात्र पुश्तैनी जमीन….

लायक राम के परिवार को सरकारी योजना का फायदा आज तक नहीं मिल पाया। लायक राम के परिवार में से कोई सरकारी नौकरी में नहीं है, दिहाड़ी मजदूरी करने वाला परिवार बीपीएल श्रेणी तक में शामिल नहीं है। पुश्तैनी जमीन भी नाममात्र है, जिससे बमुश्किल परिवार का गुजर बसर होता है। ऐसे में यह गरीब और जरूरतमंदों के लिए बनी योजनाओं और धरातल पर उनके क्रियान्वयन को लेकर भी सवाल उठने लाजमी हैं।

सरकारी योजनाओं से वंचित ….

विडंबना यह है कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उनका मकान मंजूर हो चुका है, फिर भी पंचायत की राजनीति और सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण उन्हें इस योजना का कोई फायदा नहीं मिल पाया। अधिकारियों से लेकर नेताओं तक हर स्तर पर मदद की गुहार लगाई गई, लेकिन अब तक कोई असर नहीं हुआ। अब परिवार खुद मेहनत कर मिट्टी-पत्थर का घर बनाने की जद्दोजहद में लगा है, ताकि बच्चों को मौसम की मार न झेलनी पड़े।

आज भी लायक राम का परिवार एक ऐसी जिंदगी जीने को मजबूर है, जो न केवल समाज की कुव्यवस्था को दर्शाता है, बल्कि यह सरकारी योजनाओं की असलियत को भी उजागर करता है। हकीकत यह है कि गरीबों के लिए बनाई गई योजनाओं का लाभ जमीनी स्तर पर इन तक नहीं पहुंच पाता और उनके लिए बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता अब भी एक सपना बनकर रह जाती है।

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