लाहुल स्पीति – हिमखबर डेस्क
1968 की एक सर्द और दुखदायी घटना ने भारतीय इतिहास में एक गहरा निशान छोड़ दिया था। 7 फरवरी 1968 को, भारतीय वायुसेना का AN-12 विमान ने 102 फौजियों को लेकर चंडीगढ़ से लेह की उड़ान भरी थी।
रास्ते में हिमाचल प्रदेश की सीमा में रोहतांग दर्रे की दुर्गम और बर्फीली चोटियों में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। त्रासदी के बाद सभी यात्री लापता हो गए और समय के साथ यह हादसा इतिहास के धुंधले पन्नों में खो गया। लेकिन भारत माता के वीर सपूतों की कुर्बानी को न तो देश भूल सका और न ही उनके परिवार।
56 साल बाद, भारतीय सेना की अथक मेहनत और बहादुरी के परिणामस्वरूप, उस हादसे में शहीद हुए चार जवानों के शवों के अवशेष बरामद किए गए हैं।
बर्फ के नीचे दबे इन जवानों के अवशेष जैसे यह बताने के लिए सामने आए हों कि शहीद कभी मरते नहीं, वे अमर होते हैं। सिपाही नारायण सिंह, मलखान सिंह, मुंशी राम और थॉमस चेरियन जैसे नाम फिर से जीवित हो गए हैं, जिनकी वीरता की चमक कभी फीकी नहीं पड़ी।
ये जवान उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और केरल के रहने वाले थे। इनके साथ मिले दस्तावेजों के आधार पर ही इनकी पहचान हो सकी। दशकों तक यह अवशेष बर्फ और तूफानों के बीच छिपे रहे।
2003 में अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग के पर्वतारोहियों ने विमान के मलबे को खोज निकाला था। इसके बाद भारतीय सेना, खासकर डोगरा स्काउट्स, ने कई सर्च ऑपरेशन चलाए।
2019 तक केवल पांच शव ही बरामद हो सके थे, लेकिन सेना ने हार नहीं मानी और अंततः चार और जवानों के अवशेष मिल गए। इस खोज अभियान, जिसे ‘चंद्र भागा’ नाम दिया गया, ने परिवारों के लिए उम्मीद की एक नई किरण जगाई।
ये रहे उपस्थित
लाहौल-स्पीति के एसपी मयंक चौधरी ने कहा कि बुधवार सुबह इन जवानों के अवशेषों को उनके परिवारों को विदा कर दिया गया। सेना का यह मिशन, जो 10 अक्टूबर तक चलेगा। उधर, उम्मीद की जा रही है कि यह ऑपरेशन अभी और भी कई कहानियों को उजागर करने वाला है, जो दशकों से बर्फ के नीचे छिपी हुई हैं।