हिमखबर डेस्क
जब बात मां के ममता की हो तो वह अपने बच्चे के लिए यमराज से भी लड़ जाती है। आज हम आपको ऐसी ही बहादुर मां की कहानी बताते हैं। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र से संबंध रखने वाली अलका शर्मा उन लोगों के लिए हिम्मत और प्रेरणा स्रोत हैं, जो जीवन में कठिनाई देखकर हार मान लेते हैं।
अलका का बेटा न सुन सकता था, न बोल सकता था। 11 साल तक उसके इलाज के लिए वह प्रयास करती रहीं पर कोई असर नहीं हुआ। फिर 2017 में अलका ने अपने घर को ही आश्रम बना दिया, जिसका नाम ‘एंजेल डिसेबिलिटी एंड ऑर्फनेज होम’ रखा, ताकि उनके बच्चे के साथ अन्य बच्चे खेलें और एक साथ रहें।
वहां आने वाले अनाथ व दिव्यांग बच्चों की देखभाल का जिम्मा अलका ने उठाया लेकिन, फिर उनके जीवन में एक दुखद घटना घटी। उनकी मेहनत पर पानी फिर गया, लेकिन एक रास्ता उनको मिला। अलका ने एक लंबी लड़ाई लड़ी और बेटे के इलाज के लिए मीलों तक गईं।
फिजियोथैरेपिस्ट जैसी सुविधा के लिए उन्हें लंबा सफ़र तय करना पड़ता था। लाख कोशिशों और इलाज के बावजूद कुछ महीने पहले उनका बेटा उन्हें छोड़ कर चला गया, लेकिन एक मां का हौसला टूटा नहीं बल्कि और मजबूत हुआ।
उन्होंने दिव्यांग अनाथ बच्चों के लिए शेल्टर होम बनवाने वाले उस सपने को साकार कर लिया, जिसे वह कई सालों से देख रही थीं। इस पूरे संघर्ष में उन्हें सरकार से कोई मदद नहीं मिली हालांकि, उन्होंने हमेशा सरकार-प्रशासन से गुहार लगाई कि उन्हें कहीं सरकारी भूमि उपलब्ध करवा दी जाए।
154 स्पेशल बच्चों की यशोदा मैया
आज शेल्टर होम में 154 बच्चे हैं, जिनकी देखरेख के लिए 10 अध्यापक हैं। पूरा दिन इन बच्चों का ख्याल रखा जाता है व फिर वह अपने घर चले जाते हैं। अलका बताती हैं कि अब नया शेल्टर होम बन जाने से हम अपने पास अनाथ बच्चों को रख पाएंगे, जिनका कोई नहीं उनका सहारा बन पाएंगे।
अलका ने बताया कि जब किसी मां के घर एक दिव्यांग बच्चा होता है तो वह मां दिन-रात उसकी जिंदगी के लिए लड़ती है। सोचती है कि कैसे इस बच्चे के जीवन को संवारा जाए। ये बच्चे भी भगवान का ही अंश हैं, जो समाज से थोड़ा अलग हैं लेकिन प्रभु का इन पर विशेष आशीर्वाद होता है। कई कमियों के बाद भी ये निपुण होते हैं।