हारचकियाँ – अमित शर्मा
पूर्व पंचायत समिति सदस्य एवं वर्तमान उपप्रधान साधू राम राणा ने प्रेस वार्ता में कहा कि पूर्व में विधायकों सांसदों और पंचायती राज संस्थाओं के जनप्रतिनिधियों को वेतन एवं पैंशन जैसी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता था । केवल सीमित मात्रा में विशेष बैठकों के एवज में वस किराए सहित भत्ते की अदायगी की जाती थी।
विधायकों को 1972के उपरांत पैंशन का लाभ और 1980के उपरांत विधायकों को वेतनभोगी कर्मचारियों की तर्ज पर वेतन भत्तों का लाभ और पंचायती राज संस्थाओं के जनप्रतिनिधियों को नाम मात्र मानदेय के रूप में प्रतिमाह राशि का भुगतान किया जाने लगा।
जबकि जनप्रतिनिधि के रूप में चुना जाने का आधार सबका एक जैसा ही है लेकिन फिर भी विधायकों और सांसदों को पैंशन योजना का लाभ और पंचायती राज संस्थाओं के जनप्रतिनिधियों जिनके ऊपर आम जनता की निजी समस्याओं को सुलझाने के साथ साथ विकास की योजनाओं का प्रारुप तैयार करके सरकार एवं प्रशासन तक पहुंचाने का जिम्मा भी निभाना पड़ता है पैंशन योजना से वंचित रखा गया है।
अतः सरकार से मांग की जाती है या तो विधायकों एवं सांसदों की तर्ज पर पंचायती राज संस्थाओं के जनप्रतिनिधियों को भी पैंशन योजना का लाभ दिया जाए या फिर विधायक और सांसदों की पैंशन भी बंद की जाए ताकि एक ही चुनावी प्रणाली के अंतर्गत चुनें जाने वाले जनप्रतिनिधियों के साथ पैंशन योजना को लेकर दोहरा मापदंड बन्द किया जा सके।
साधू राम राणा ने कहा कि यदि सरकार द्वारा इस मांग को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई तो इस मुद्दे को सभी पंचायत प्रतिनिधियों के साथ मिलकर एक प्रारुप तैयार करके कानूनी विशेषज्ञों से मशवरा करने उपरांत माननीय न्यायालय में एक याचिका दायर की जाएगी ताकि हर स्तर के जनप्रतिनिधियों को एक समान वित्तिय लाभ देने का प्रावधान लागू किया जाए।