सिरमौर – नरेश कुमार राधे
देवभूमि हिमाचल प्रदेश अपनी अलग संस्कृति व रीति रिवाजों के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर जिला में अपनी अलग व खास तरह की संस्कृति है। हाल ही में जिला सिरमौर के शिलाई में एक विवाह भी इसी कारण देशभर में चर्चाओं में है। यहां जोड़ीदारी प्रथा के अनुसार, दो सगे भाइयों ने एक ही दुल्हन से सात फेरे लिए हैं। हालांकि क्षेत्र में चार प्रकार के विवाह और प्रचलित हैं।
- इसमें पहली प्रथा ‘बाला विवाह’ है। इस प्रथा में लड़की के गर्भ में होने या दूध पीती बच्ची होने पर ही विवाह की बात पक्की कर ली जाती थी। बड़े होने पर दोनों पक्षों की सहमति के बाद उनकी शादी करवाई जाती थी। इस विवाह में सात फेरों का चलन नहीं था और दहेज के रूप में पीतल के बर्तन दिए जाते थे। लड़की को इस बात की स्वतंत्रता थी कि वह किसी कारणवश अपने ससुराल में या पति से संतुष्ट नहीं होने पर खीत-रीत पूरी होने पर संबंध विच्छेद कर सकती थी। इसमें तय की गई राशि पति को देने का प्रावधान था।
- दूसरी तरह का है जाजड़ा विवाह। इस प्रथा में, शादी का प्रस्ताव वर पक्ष की तरफ से होता है। लड़की और उसके परिजनों की स्वीकृति के बाद विवाह की रस्में पूरी की जाती हैं। वर पक्ष द्वारा निर्धारित एक व्यक्ति दुल्हन के घर जाता है और दूसरे दिन परिवार के सदस्यों और ग्रामवासियों के साथ दुल्हन को लेकर दूल्हे के घर आता है। ब्राह्मण द्वारा दुल्हन और दूल्हे को सीज लगाकर यानी मंत्रोच्चारण के साथ विवाह सूत्र में बांध दिया जाता है।
- तीसरी प्रथा में खिताइयो विवाह शामिल है। इस प्रथा में विवाह कर चुकी लड़की ससुराल से संबंध विच्छेद करना चाहे और दूसरी शादी करना चाहती है तो लड़की पसंद करने वाले लड़के पक्ष को लड़की के घर रिश्ते के लिए जाना पड़ता है। इसके बाद लड़की पक्ष के लोग लड़के के घर जाते हैं, जिन्हें खितारु कहा जाता है। विवाहिता के पिता के माध्यम से खीत की राशि निर्धारित की जाती है, जो प्रस्तावित पति पक्ष को उस औरत के पहले पति को देनी होती है।
- चौथी प्रथा हार विवाह है। इस प्रथा में जब कोई महिला दूसरे विवाह की इच्छा से अपने पिता या पति के घर से किसी अन्य व्यक्ति के साथ फरार हो जाती है, तो वह हार विवाह कहलाता है। ऐसे विवाह में खीत-रीत राशि बाद में तय की जाती है और महिला को भगा कर ले जाने वाले व्यक्ति को अर्थदंड अलग से देना पड़ता है, जिसे हरोंग कहते हैं। इन विवाह प्रथाओं में कुछ विशेषताएं और नियम हैं, जो इनके प्रचलन को विशिष्ट बनाते हैं। इनमें से कुछ प्रथाएं आज भी प्रचलित हैं, जबकि कुछ का प्रचलन कम हो गया है।
नवविवाहित दूल्हा-दुल्हन लगातार आ रहे फोन और मीडिया से तंग
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के ट्रांस-गिरी क्षेत्र के शिलाई में हुए एक विवाह की चर्चा पूरे देश में हो रही है। जिसमें दो सगे भाइयों ने एक ही महिला से सार्वजनिक रूप से शादी की। यानि बहुपति विवाह हुआ। यह विवाह न केवल चर्चा में है, बल्कि सोशल मीडिया पर इससे जुड़ी प्राचीन परंपरा और सामाजिक स्वीकृति को लेकर भी नए सिरे से सवाल उठाए जा रहे हैं।
शिलाई के दो भाई, प्रदीप नेगी और कपिल नेगी ने पास के कुंहाट गांव की रहने वाली सुनीता चौहान से एक साथ विवाह किया। इस विवाह की खास बात यह रही कि तीनों ने इसे कैमरों के सामने, सार्वजनिक रूप से समाज के सामने स्वीकार किया। दोनों भाइयों ने मिलकर विवाह की सभी रस्में निभाईं और दुल्हन को समान रूप से अपनी जीवन संगिनी के रूप में स्वीकार किया।
दुल्हन सुनीता ने भी इस फैसले को खुद का चुनाव बताया। उन्होंने कहा,“यह मेरा निर्णय था। मैंने इस परंपरा को जाना, समझा और इसे पूरी समझदारी से अपनाया। मुझ पर किसी तरह का दबाव नहीं था।” कपिल वर्तमान में विदेश में कार्यरत हैं, जबकि प्रदीप स्थानीय व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। दोनों का कहना है कि यह रिश्ता उनकी आपसी सहमति और समझदारी का परिणाम है।
आपको बता दें कि यह पहली बार नहीं है। हिमाचल की ये एक पुरानी परंपरा है जिसका चलन हिमाचल के कई क्षेत्रों में आज भी है। हालांकि यह विवाह सुर्खियों में इसलिए आया क्योंकि यह खुले मंच पर हुआ। दरअसल, यह विवाह एक प्राचीन परंपरा “बहुपति प्रथा” की पुनरावृत्ति है, जो हिमाचल प्रदेश के खासकर ट्रांस-गिरी, किन्नौर, लाहौल-स्पीति और चंबा जैसे क्षेत्रों में अतीत में प्रचलित रही है।
बहुपति विवाह वह प्रथा है जिसमें एक महिला के एक से अधिक पति होते हैं। इस प्रथा का सबसे पुराना उदाहरण महाभारत में मिलता है, जहाँ द्रौपदी का विवाह पांच पांडवों से हुआ था। किन्नौर जैसे क्षेत्रों में लोग मानते हैं कि यह परंपरा पांडवों से उन्हें विरासत में मिली है। इस प्रथा के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि इससे भाइयों में भाईचारा बना रहता है, प्रॉपर्टी का बंटवारा नहीं होता और जनसंख्या भी नियंत्रित रहती है।
सिरमौर के ट्रांस-गिरी क्षेत्र में खासकर भ्रातृ-बहुपति विवाह की परंपरा सबसे अधिक प्रचलित रही है, लेकिन समय के साथ यह परंपरा विलुप्तप्राय हो चली थी या यूं कहें कि केवल घर की चारदीवारी में सीमित होकर रह गई थी।
सोशल मीडिया पर इसकी मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आई। जैसे ही इस विवाह की तस्वीरें और वीडियो सामने आए, सोशल मीडिया पर इस पर बहस छिड़ गई। कुछ लोगों ने इसे “परंपरा की पुनरावृत्ति” कहा, तो कुछ ने आलोचना करते हुए इसे “अनुचित” बताया। वहीं कई लोग इस विवाह को “तीनों व्यक्तियों की स्वतंत्र इच्छा का सम्मान” बताते हुए समर्थन में भी दिखे।
अंत में आपसे यह जरूर कहेंगे कि बोलने या अपने विचारों की अभिव्यक्ति का अधिकार सबको है, लेकिन आपकी स्वतंत्रता वहीं खत्म हो जाती है जहाँ आपकी बातों से किसी दूसरे को नुकसान पहुंचे। कहने का मतलब यह है कि आप अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दें, लेकिन कुछ ऐसा न लिखें या कहें जिससे किसी के निजी जीवन को ठेस पहुंचे।