शाहपुर – नितिश पठानियां
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से अभिनंदन पैलेस, शाहपुर, कागड़ा में पांच दिवसीय श्री कृष्ण कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन चल रहा है। कथा में श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्य कथा व्यास साध्वी सुश्री गरिमा भारती जी ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण जी का चरित्र अत्यंत उदार है। यदि मानव उनके द्वारा दी शिक्षाओं से प्रेरणा ग्रहण करें तो उसका जीवन स्वर्ग तुल्य बन सकता है
रसखान एक ऐसे अनन्य श्री कृष्णभक्त थे, इन्होने अपना सारा जीवन गोकुल की गलियों में भजन-कीर्तन में गुजार दिया।इनके कृष्णभक्ति से प्रभावित होकर गोस्वामी बिट्ठलदास जी ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया और दीक्षा लेने के बाद इनका लौकिक प्रेम अलौकिक प्रेम में बदल गया। भगवान श्री कृष्ण के प्रति इनका अलौकिक प्रेम इन्हें उनका अनन्य भक्त बनाता है । इनका अधिकांश जीवन ब्रजभूमि पर कृष्ण की प्रिय गो माता की सेवा करते व्यतीत हुआ।
जिस गाय माता की सेवा में हमारे प्रमु श्री कृष्ण को आंनद आता रहा। आज उसी गो माता का वध भारत भूमि पर दे रहा है। हमारी भारतीय संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है क्योंकि वह अपने दूध के द्वारा जीवन भर हमारा पोषण करती है। गो साक्षात् कामधेनु के समान है। उससे प्राप्त प्रत्येक वस्तु जैसे दूध, माखन, घी, गोबर, मूत्र आदि अनेक रोगों का नाश करते हैं।
गाय का दूध स्मरण शक्ति तीक्ष्ण करता है जबकि भैंस के दूध में वसा ज्यादा होने से यह कोलेस्ट्रॉल बनाता है जिससे हृदय रोग होते हैं। गाय के दूध में विटामिन ए और डी होता है जो आँखों की रोशनी के लिए लाभकारी है। यदि त्वचा जल जाए तो गाय का घी एक बढिया क्रीम या एंटीसेप्टिक दवा का काम करती है।
साध्वी जी ने बताया कि हमारे ऋषि मुनियों ने गोमूत्र को गंगा जल की तरह पवित्र माना है। गौमूत्र अर्क के सेवन से कैंसर, एड्स आदि रोग ठीक हो जाते हैं। गाय के ताजे गोबर से टी.बी. व मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं। देसी गाय के बहुत से लाभ हैं। परन्तु दुर्भाग्यवश आज हम उन्हें खोते जा रहे हैं। संस्थान ने देसी गायों के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए कामधेनु नामक एक प्रकल्प चलाया है।
कथा मे गणमाण्य अतिथि श्री जितेन्द्र सोंधी जी, श्री गोकुल सोंधी जी, श्री बादल कौशल जी, श्री मूल राज जी, श्री राजेश महाजन जी, श्री राकेश कथुरिया जी ने ज्योति प्रज्वलन किया।
अंत में साध्वी सर्व सुखी भारती जी, हीना भारती जी, परा भारती जी एवं साध्वी शीतल भारती जी, महात्मा गुरुबाज़ महात्मा सतनाम जी ने कथा का समापन विधिवत प्रभु की पावन आरती के साथ किया।