शिमला – नितिश पठानियां
“हर हाथ को काम” पहल के साथ हिमाचल प्रदेश के कारागारों में कैदियों को तराश कर समाज से जोड़ने का मौका दिया रहा है। कैदियों को कारागार के भीतर लकड़ी की कारीगरी, बेकरी के उत्पाद, शॉल-टोपी बनाने सहित अन्य काम सिखाया जा रहा है ताकि सजायाफ्ता कैदी मानसिक तनाव से बचने के साथ-साथ आत्मनिर्भर हो सके।
यह बात महानिदेशक प्रदेश कारागार एवं सुधारात्मक सेवाएं विभाग संजीव रंजन ओझा ने शिमला में कैदियों द्वारा कारगार में निर्मित उत्पादों की चार दिवसीय प्रदर्शनी व बिक्री के शुभारंभ के मौके पर कही।
प्रदेश कारागार एवं सुधारात्मक सेवाएं विभाग के महानिदेशक संजीव रंजन ओझा ने कहा कि प्रदेश की जेलों में लगभग 2800 के लगभग कैदी हैं, जो कुछ अंडर ट्रायल हैं, जबकि कुछ सजायाफ्ता हैं। जेल में आने के बाद कई बार कैदी मानसिक तनाव से ग्रस्त हो जाता है और आजकल NDPS मामले में युवा जेल में आ रहे हैं। ऐसे में मानसिक तनाव के शिकार हो जाते हैं।
कैदियों को तनाव से दूर रखने और रोजगार देने के मकसद से प्रदेश की जेलों में उन्हें कुशल बनाया जा रहा है। शिमला के गेयटी में 6 से 9 फरवरी तक कैदियों के उत्पादों की प्रदर्शनी व बिक्री लगाई गई है। स्थानीय लोग और पर्यटक कैदियों के उत्पादों को खरीदकर इनका मनोबल बढ़ा सकते हैं। उत्पाद गुणवत्ता में अच्छे हैं और बाजार से अच्छे दामों में मिल रहे हैं।
वहीं कैदियों कहना है कि कारागार एवं सुधारात्मक सेवाएं विभाग द्वारा उन्हें रोजगार दिया जा रहा है, जिससे जेल में रहते भी वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर पा रहे हैं। साथ ही समाज से जुड़ने का मौका मिल रहा है और गलती का पश्चाताप भी कर रहे हैं।