चम्बा – भूषण गुरूंग
भाजपा विधायक हंस राज के खिलाफ चल रहे पॉक्सो मामले में नया मोड़ आ गया है और पीड़िता ने सोशल मीडिया पर एक नया वीडियो जारी कर हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार और भाजपा नेतृत्व दोनों पर ही आरोपी को बचाने का गंभीर आरोप लगाया है।
एक भावुक वीडियो में पीड़िता ने कहा कि उसे यह जानकर गहरा दुख हुआ कि आरोपी विधायक को मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) से कथित तौर पर फोन आया था। उसने सवाल उठाया कि जब आरोपी को राज्य के सर्वोच्च कार्यालय से इस तरह की पहुंच और संरक्षण प्राप्त हो, तो न्याय कैसे हो सकता है?
पीड़िता ने कहा कि जब उसे सबसे ज्यादा संस्थागत सहारे की जरूरत थी, तब राजनीतिक तंत्र ने उसे अकेला छोड़ दिया। इन आरोपों ने अभियोजन की स्वतंत्रता और मामले में संभावित राजनीतिक हस्तक्षेप को लेकर गंभीर चिंता बढ़ा दी है।
पीड़िता ने यह भी दावा किया कि सोशल मीडिया पर उसे लगातार धमकाया और बदनाम किया जा रहा है। कई लोग उसके चरित्र पर कीचड़ उछालकर मामले को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। उसने अधिकारियों से ऑनलाइन उत्पीड़न और धमकी देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की अपील की।
इधर, जांच की निगरानी कर रहे एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) के अचानक ट्रांसफर के बाद राज्य पुलिस और गृह विभाग की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। इससे प्रशासनिक दबाव की आशंका बढ़ गई है।
मजबूत हस्तक्षेप करते हुए अखिल भारतीय जनवादी महिला संघ (एडवा) ने भाजपा विधायक हंस राज की तुरंत गिरफ्तारी की मांग की है। एडवा का कहना है कि उनकी आजादी से जांच प्रभावित हो सकती है और पीड़िता पर दबाव बढ़ सकता है।
संगठन ने मांग की है कि जांच किसी स्वतंत्र आईपीएस अधिकारी को सौंप दी जाए, क्योंकि मौजूदा जांच तंत्र समझौता लग रहा है।
पीड़िता ने एडवा का आभार जताते हुए कहा कि जब सभी ने मुंह फेर लिया, तब इस संगठन ने उनका साथ दिया और राजनीतिक-सामाजिक प्रताड़ना के बीच सहारा दिया।
गौरतलब है कि पिछले साल एआईसीसी महिला कांग्रेस की नेता अल्का लांबा ने भी हंस राज के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी, जब पीड़िता के परिवार ने उन पर नाबालिग बेटी का यौन शोषण करने का आरोप लगाया था।
2024 में एफआईआर दर्ज हुई थी, लेकिन बाद में पीड़िता के अदालत में बयान वापस लेने पर पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी। सत्तारूढ़ सरकार और विपक्ष दोनों की चुप्पी से जनता में भारी आक्रोश है। इससे राज्य सरकार, भाजपा नेतृत्व और कानून प्रवर्तन एजेंसियां बढ़ते दबाव में हैं।

