विघ्न हरता ही विदा हो गए, तो कौन हरेगा कष्ट!

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हिमखबर डेस्क

देश में इन दिनों गणेश उत्सव की धूम है। देश का कोना-कोना भगवान श्रीगणेश की पूजा कर रहा है। अधिकतर लोग एक दूसरे की देखा देखी कर गणपति जी की प्रतिमा स्थापित कर रहे हैं, जो कि भगवान के प्रति हमारी आस्था को दर्शाता है।

प्रतिमा की स्थापना कर 3, 5, 7 या 11 दिन की पूजा के बाद उनका विसर्जन किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हम गणपति जी का पूजा के बाद विसर्जन कर देते हैं, जो कि सबसे बड़ी गलती है। क्योंकि गणपति की स्थापना करने के बाद विसर्जन सिर्फ महाराष्ट्र में ही होता है।

महाराष्ट्र में इसलिए होता है विसर्जन

कहा जाता है कि एक बार गणपति जी महाराष्ट्र में मेहमान बनकर गए थे। उस दौरान महाराष्ट्र में भयंकर अकाल पड़ा और भीषण आर्थिक तंगी हो गई। तब कार्तिकेय जी ने गणेश जी को रिद्धि सिद्धि सहित आमंत्रित किया और कुछ दिन वहां रहने का आग्रह किया। गणेश जी वहां जितने दिन रहे, उतने दिन माता लक्ष्मी और उनकी पत्नी रिद्धि-सिद्धि वहीं रहीं।

इनके वहां रहने से लालबाग धन धान्य से परिपूर्ण हो गया, तब कार्तिकेय जी ने उतने दिन का गणेश जी को लालबाग का राजा मानकर सम्मान दिया और बाद में यही पूजन गणपति उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। हालांकि इसके पौराणिक साक्ष्य अभी मिल नहीं पाए हैं।

स्वतंत्रता आंदोलन से भी नाता

महाराष्ट्र में गणपित उत्सव मनाने का श्रेय पेशवाओं को जाता है। कहा जाता है कि पेशवा सवाई माधवराव के शासनकाल के दौरान पुणे के शनिवारवाड़ा महल में एक भव्य गणपति उत्सव का आयोजन किया था। हालांकि इसका ज्यादा श्रेय स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक को जाता है, क्योंकि उन्होंने 1893 में प्रथम सार्वजनिक गणेशोत्सव का आयोजन किया, जो धीरे-धीरे पूरे महाराष्ट्र क्षेत्र में लोकप्रिय हो गया।

उस वक्त अंग्रज भारतीयों को एक जगह इकट्ठा नहीं होने देते थे, जिसके चलते बाल गंगाधर तिलक को गणपति उत्सव के जरिए लोगों को एकत्रित किया और देश भक्ति का जागृत किया। गणेश उत्सव के माध्यम से ही स्वतंत्रता संग्राम को धार मिली थी। महाराष्ट्र में तभी से गणेश उत्सव मनाने की परंपरा शुरू हुई और आज इसने भव्य उत्सव का रूप धारण कर लिया है।

तो फिर कैसे होगा शुभ कार्य का आगाज

देश के अन्य स्थानों की बात करें, तो गणेश जी हमारे घर के मालिक हैं और घर के मालिक को कभी विदा नहीं किया जाता। अगर हम गणपति जी का विसर्जन करते हैं, तो उनके साथ लक्ष्मी जी व रिद्धि-सिद्धि भी चली जाएगी, तो जीवन में बचेगा ही क्या।

गणपति उत्सव के दौरान हम कहते हैं ‘गणपति बाप्पा मोरेया, अगले बरस तू जल्दी आ’ इसका मतलब हमने एक वर्ष के लिए गणेश जी, लक्ष्मी जी को जबरदस्ती पानी मे बहा दिया। ऐसे में हम फिर कैसे नवरात्रि पूजा करेंगे, दीपावली में कैसे पूजन करेंगे।

सभी जानते हैं कि किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए सबसे पहले भगवान गणेश जी की ही वंदना की जाती है, उसके बाद ही कोई शुभ कार्य शुरू होता है, लेकिन देखा-देखी में हम गणपति को विदा कर दे रहे हैं, तो फिर कैसे शुभ कार्य की शुरूआत करेंगे, क्योंकि हमने तो खुद ही गणपति जी को एक वर्ष के लिए भेज दिया है। इसलिए गणेश जी की स्थापना करें, न कि विसर्जन।

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