रेत-बजरी न मिलने से निर्माण कार्य ठप, बिना वैकल्पिक व्यवस्था के क्रशर बन्द करना ग़लत – भूपेंद्र

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सरकारी मानकों के तहत लगे क्रशरों को शुरू करने की उठाई मांग।

मंडी – अजय सूर्या 

धर्मपुर विकास खण्ड में मनरेगा व अन्य विभागीय निर्माण कार्य तथा निजी रिहायशी मकानों सबंधित कार्य रेत, बजरी और अन्य सामग्री न मिलने के कारण ठप्प हो गये हैं। जिसकी मुख्य बजह सरकार द्धारा यहां पर बन्द किये गए स्टोन क्रशर हैं।

पूर्व ज़िला परिषद सदस्य भपेंद्र सिंह ने कहा कि जुलाई और अगस्त में हुई भारी बारिश और उसके कारण आयी बाढ़ के कारण हुए नुक़सान को इन क्रशरों को बन्द करने का कारण बताया गया है और इसके चलते सरकार ने प्रदेश में लगभग 130 स्टोन क्रशर बन्द कर दिये हैं।

लेकिन दूसरी तरफ बरसात के कारण जो नुक़सान हुआ है जिसमें सैंकड़ों रास्ते, डंगे, मकान, गौशालाएं इत्यादि ढह गये हैं। उनका पुनःनिर्माण कार्य करने में अब बहुत ज्यादा समस्या खड़ी हो गई है।

सरकार ने टूटे रास्ते बनाने के लिए मनरेगा के तहत कार्य करवाने का फ़ैसला किया है उसके लिए मनरेगा सेल्फ़ को संशोधित करके पंचायतों को जारी कर दिया है। लेकिन इसके निर्माण कार्य में जो रेत, बजरी, बोल्डर इत्यादि लगने हैं वे अब उपलब्ध नहीं हो रहे हैं कियूंकि स्टोन क्रशर बन्द कर दिए गए हैं।

इस कारण कोई भी निर्माण कार्य नहीं हो रहे हैं।यही नहीं सरकार ने प्रभावित परिवारों को अपने घरों के आसपास गिरे डंगे ख़ुद लगाने के लिए बोला जा रहा है लेकिन उन्हें ये सारी सामग्री दोगुने रेट पर मिल रही है कियूंकि ये सब बाहर से मंगवानी पड़ रही है।

यही नहीं जिन्होंने घर व अन्य निजी कार्य शुरू किए हैं और आमतौर पर बरसात के बाद ये काम ज़्यादा करवाये जाते हैं वे या तो रुक गए हैं या फिर लागत दोगुनी या इससे भी अधिक हो गई है।

ग्रामीण विकास व लोक निर्माण विभाग ने कंक्रीट के बजाए क्रेट वाल लगाने के लिए नीचे निर्देश दिए हैं लेकिन उसमें भी बड़े पैमाने पर बोल्डर इस्तेमाल होते हैं और क्रेट वाल मनरेगा मज़दूर लगाने के लिए सक्षम नहीं हैं और बोल्डर भी खड्डों, नालों से लाने होते हैं जिनपर रोक लगा दी गई है।

इस तरह सरकार ने ये फैसला जल्दबाजी और बिना विकल्प दिए ले लिया है जिससे सारे काम ठप्प हो गए हैं। यही नहीं स्टोन क्रशरों पर मजदूरी करने वाले और टेंपो, ट्रॉलियों औऱ टीपर वालों को जो ये सामग्री लोगों और पँचायतो को सप्लाई करते हैं उन्हें भी भारी नुक़सान हो रहा।

मजबूरी में लोगों को अपने मकानों का निर्माण कार्य रोकना पड़ रहा है। यही नहीं कई जगह अवैध रूप में खड्डों, नालों औऱ नदी किनारों से ये सामग्री रात के अंधेरे में निकली जा रही है जिससे सरकार को करोड़ों रुपये का नुक़सान भी उठाना पड़ रहा है।

भूपेंद्र सिंह ने कहा कि ये सभी क्रशर सरकार के नियमों के अनुसार लगे थे और अब उन्हें बाढ़ के जिम्मेदार ठहराया जा रहा है जो सही नहीं है। क्यूंकि वर्षा से नुकसान केवल इसके कारण ही नहीं हुआ है। बल्कि उसके कई अन्य कारण हैं लेकिन इसका हल क्रशरों को बन्द करने से नहीं होगा।

सरकार को जल्दी इसका मूल्यांकन करवा कर इन्हें जल्दी बहाल करने का निर्णय लेना चाहिए। ताकि पँचायतों व निजी मकानों के कार्य शुरू हो सके और जनता, मज़दूरों, गाड़ी वालों तथा क्रशर मालिकों को हो रही परेशानी से निजात मिल सके।

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