बीसीसीआई टूर्नामेंट 2021 : क्या सलेक्शन के झोल में फंसी दिल्ली बचा पाऐगी अपनी साख।

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दिल्ली – नवीन चौहान

दिल्ली क्रिकेट में सलेक्शन का झोल हमेशा एक अहम् मुद्दा रहा है। हालांकि सेक्रेटरी विनोद तिहारा की हार के बाद उम्मीद की जा सकती है कि कुछ सुधार नजर आए। दिल्ली क्रिकेट में हमे हमेशा ही दोयम दर्जे के खिलाड़ियों का सलेक्शन होता रहा, आवाजें उठी पर सुधार कभी नजर नहीं आया। हालात ये रहे कि कुछ खिलाड़ी जो कि मणिपुर, अरूणाचल जैसी टीमें के लिए खेले दिल्ली क्रिकेट में वापिसी करते नजर आए। जो खिलाड़ी कभी 3-4 साल से दिल्ली क्रिकेट में दिखाई नहीं दिये वो भी वापिसी करते नजर आए।

सलेक्टर्स प्लेयर्स सलेक्ट कर रहे थे या फिर ऑफिसल या पत्रकार और नेता, क्रिकेट की समझ रखने वाले लोगों की समझ में यह एक ऐसी पहेली है जो कभी सुलझती नहीं दिख रही। सैयद् मुश्ताक ट्राफी स्टैंड बाई में दो प्लेयर्स ऐसे नजर आए जो मणिपुर और अरूणाचल प्रदेश से खेले, समझ से परे है ये अगर ये प्लेयर्स अरूणाचल और मणिपुर में अच्छा प्रदर्शन कर पाए तो और डीडीसीए को इनकी जरूरत थी तो ये प्लेयर्स स्टैंड बाई में क्यूं सीधे टीम में क्यों नहीं। क्या सलेक्टर्स ने इन प्लेयर्स के रिकार्डस को देखने का प्रयास किया।

यह बात समझने के लिए काफी है या तो सलेक्टर्स का मन टीम को जीताने का नहीं या बस क्रिकेट खेल नहीं डीडीसीए के लिए गलत कामों का का खेल बन गया। वैसे दिल्ली क्रिकेट में हमेशा गलत ही हुआ और गलत करने से ना ऑफिसल चूके ना नेता और न पत्रकार। सब के सब बस अपने मकसद को पूरा करने में लगे रहे और दिल्ली क्रिकेट को क्या नुकसान हुआ किसी को कोई मतलब नहीं। हालात ऐसे हैं कि एक बार फिर दोयम दर्जें के पलेयर्स टीमों में जगह बनाते नजर आ रहे। सलेक्टर्स अपना काम कर हर साल निकल जाते हैं कोई जबाबदेही उनसे नहीं जो जिम्मेदारी उनको दी गई क्या वो सही से निभा पाए।

अगर टीम इंडिया हारती है तो पूरे देश में आवाजें उठती हैं तो अगर दिल्ली क्रिकेट गर्त में जाती है तो आवाजें क्यूं नहीं उठती। करीब 120 से ज्यादा क्लब का काम क्या है क्या सिर्फ डीडीसीए सब्सिडी लेना और अपने एक-दो बच्चों को सलेक्ट करा अपना मकसद पूरा करना ना ये कोई समझ पाया ना कोई समझना चाहता है। बरहाल दिल्ली क्रिकेट सलेक्शन के झोल से निकल बीसीसीआई ट्राफी में अच्छा प्रदर्षन कर पाएगी संभव नहीं दिखता। क्यूंकि सलेक्शन में दोयम दर्जे के प्लेयर्स की भरमार दिख रही है।

हैरानी कि बात तो ये है बड़े अधिकारी भी दोयम दर्जे के इन प्लेयर्स की एक पारी को मीडिया में ऐसा दिखाती है कि ये खिलाड़ी इंडिया में सचिन तेदुलकर के रिकार्ड तोड़ सकता है। और मीडिया भी बिका हुआ दिखा है पूरा स्पोर्ट् करता है ऐसे अधिकारियों का। बरहाल मुद्दे डीडीसीए में काफी है पर देखना होगा कि सेक्रेटरी विनोद तिहारा के हारने के बाद क्या दिल्ली क्रिकेट सुधार दिखाई देगा और डीडीसीए एक बार भी बीसीसीआई ट्राफी जीतती नजर आएगी।

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