बहुचर्चित लिम्बरा प्रकरण में पहली गिरफ्तारी, अग्रिम जमानत खारिज के बाद महिला गिरफ्तार

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शिमला – नितिश पठानियां

जिला शिमला के रोहड़ू उपमंडल के चिड़गांव क्षेत्र के लिम्बरा गांव में 12 वर्षीय अनुसूचित जाति के बालक की आत्महत्या के मामले में पहली गिरफ्तारी हुई है। पुलिस ने इस प्रकरण में एक महिला को गिरफ्तार किया है। आरोपी महिला की अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद चिड़गांव पुलिस ने बीती रात उसे हिरासत में लिया। आरोपी को वीरवार को अदालत में पेश किया जाएगा। इसकी पुष्टि डीएसपी रोहड़ू प्रणव चौहान ने की है।

गौरतलब है कि 16 सितंबर को लिम्बरा गांव के 12 वर्षीय बालक ने कथित तौर पर जातिगत भेदभाव और प्रताड़ना से आहत होकर जहरीला पदार्थ निगल लिया था। परिजनों का आरोप है कि गांव की कुछ महिलाओं ने, जो अनुसूचित जाति से नहीं थीं, बच्चे को जातिगत आधार पर पीटा, उसे गौशाला में बंद किया और घर की ‘शुद्धि’ के नाम पर बकरे की मांग की। गंभीर हालत में बच्चे को आईजीएमसी शिमला ले जाया गया, जहां 17 सितंबर की रात उसने दम तोड़ दिया।

शुरुआत में पुलिस ने मामला सामान्य धाराओं के तहत दर्ज किया था, लेकिन बाद में जातिगत उत्पीड़न के आरोप सामने आने पर 26 सितंबर को इसमें अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धाराएं भी जोड़ी गईं।

इस बीच, हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति आयोग ने मामले में सख्त रुख अपनाते हुए जांच अधिकारी एएसआई मंजीत को निलंबित करने और पीड़ित परिवार को सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश दिए हैं। आयोग के अध्यक्ष कुलदीप कुमार बुधवार को स्वयं रोहड़ू पहुंचे और स्थानीय प्रशासन व पुलिस अधिकारियों से पूरे मामले की विस्तृत रिपोर्ट तलब की।

उन्होंने कहा कि पुलिस की प्रारंभिक जांच बेहद लापरवाही पूर्ण रही, जिससे मामला कमजोर हुआ। 20 सितंबर को दर्ज एफआईआर में एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम की धाराएं शामिल नहीं की गईं, जबकि शिकायत में स्पष्ट तौर पर जातिगत अपमान और भेदभाव का उल्लेख था।

कुलदीप कुमार ने बताया कि आयोग ने 1 अक्तूबर को एसडीपीओ रोहड़ू से तीन दिन के भीतर रिपोर्ट मांगी थी, लेकिन समय सीमा बीतने के बाद भी रिपोर्ट नहीं दी गई। आयोग को यह रिपोर्ट 14 अक्तूबर को डीजीपी कार्यालय से प्राप्त हुई, जिस पर कड़ा एतराज जताते हुए एसडीपीओ से स्पष्टीकरण मांगा गया है।

आयोग अध्यक्ष ने मौके पर जांच अधिकारियों से पूछताछ की और पीड़ित परिवार से मुलाकात की। उन्होंने बताया कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से पीड़ित परिवार को 4 लाख 12 हजार 500 रुपए की वित्तीय सहायता पहले ही प्रदान की जा चुकी है।

कुलदीप कुमार ने कहा कि आयोग का उद्देश्य दलित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें न्याय दिलाना है। उन्होंने कहा कि लिम्बरा की यह घटना पूरे देश में चर्चा का विषय बन चुकी है, इसलिए आयोग इस मामले की निष्पक्ष और त्वरित जांच सुनिश्चित करने के लिए लगातार निगरानी कर रहा है।

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