पंचायत चुनाव को लेकर नए आदेश लागू, पुनर्गठन-सीमांकन पर तत्काल रोक, रोस्टर जारी करने में सरकार फेल

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हिमखबर डेस्क

हिमाचल प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग ने आज बड़ा फैसला लेते हुए प्रदेशभर में ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों, जिला परिषदों और सभी शहरी स्थानीय निकायों (नगर परिषद, नगर निगम, नगर पंचायत) की सीमाओं, संरचना, वर्गीकरण या किसी भी तरह के पुनर्गठन पर तत्काल प्रभाव से पूर्ण रोक लगा दी है। यह रोक चुनाव आचार संहिता के प्रावधानों को लागू करते हुए लगाई गई है। इस बारे में राज्य चुनाव आयुक्त अनिल कुमार खाची द्वारा अधिसूचना भी जारी कर दी गई है।

आयोग का कहना है कि पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकायों का कार्यकाल जनवरी-अप्रैल 2026 में समाप्त हो रहा है। संविधान के अनुच्छेद 243E और 243U के तहत इनका चुनाव कार्यकाल खत्म होने से कम से कम छह माह पहले शुरू करना अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने भी पंजाब मामले (SLP 22468-22469/2024) में इसी बात को दोहराया है, जिसे हिमाचल में सख्ती से लागू किया जा रहा है।

आयोग ने सपष्ट किया है कि 3577 ग्राम पंचायतों, 90 पंचायत समितियों, 11 जिला परिषदों और 71 शहरी निकायों का सीमांकन पूरा कर नोटिफाई कर दिया गया है। इसके अलावा 3548 ग्राम पंचायतों और 70 ULBs की मतदाता सूचियां अंतिम रूप ले चुकी हैं। जबकि 29 ग्राम पंचायतों की वोटर लिस्ट 1 दिसंबर 2025 को तथा एक ULB की 7 दिसंबर 2025 को अंतिम होगी।

आयोग ने यह भी स्पष्टीकरण दिया है कि अब PRIs की गठन प्रक्रिया के लिए 75 दिन से कम और अधिकतर शहरी निकायों के लिए लगभग 60 दिन बचे हैं। ऐसे में आयोग ने आचार संहिता के तहत यह कदम उठाया है। आयुक्त ने मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट–2020 की धारा 12.1 लागू करते हुए आदेश दिया है।

आदेश कि है “पंचायतों और नगर निकायों की संरचना, वर्गीकरण या क्षेत्र में किसी भी तरह का परिवर्तन इस आदेश के बाद चुनाव समाप्त होने तक नहीं किया जाएगा। यह आदेश मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट–2020 की धारा 12.1 के तहत लागू किए गए हालांकि चुनाव आचार संहिता पूरी तरह तब लागू होगी जब चुनाव तारीखों का ऐलान होगा।

रोस्टर जारी करने में सरकार फेल, आरक्षण पर अभी संशय कायम

उल्लेखनीय है कि मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट–2020 की धारा 12.1 लागू होने से हिमाचल प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं के आगामी चुनावों को लेकर सियासी तापमान तेज हो गया है। राज्य निर्वाचन आयोग ने भी तैयारियां और तेज कर दी हैं, लेकिन राज्य सरकार की ओर से पंचायतों, पंचायत समितियों और जिला परिषदों के वार्डों का आरक्षण रोस्टर (OBC, SC, ST, महिलाएं आदि के लिए) अब तक जारी नहीं किया गया है।

विपक्षी दल भाजपा ने इसे ‘सरकार की पूर्ण फेल्योर’ बताते हुए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखू पर टालमटोल का आरोप लगाया है। सूत्रों के अनुसार, रोस्टर कैबिनेट की 24 नवंबर की बैठक में अंतिम रूप ले सकता है, लेकिन इसमें देरी से नामांकन प्रक्रिया प्रभावित होने का खतरा मंडरा रहा है।

बता दें कि पंचायती राज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने अक्टूबर में दावा किया था कि रोस्टर 15 अक्टूबर तक जारी हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पंचायती राज सचिव ने 15 सितंबर को उपायुक्तों को 25 सितंबर तक रोस्टर जारी करने के निर्देश दिए थे, लेकिन अफसरशाही के आगे सरकार बेबस नजर आ रही है।” नियमों के मुताबिक रोस्टर कम से कम तीन महीने पहले जारी होना चाहिए ताकि आपत्तियां दर्ज हो सकें, लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ।

हाईकोर्ट भी पहुंचा पंचायती राज चुनाव में देरी का मामला

उधर, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में पंचायती राज चुनावों को समय पर आयोजित न करने के आरोपों से जुड़ी जनहित याचिका पर शुक्रवार को महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और जस्टिस जिया लाल भारद्वाज की बेंच ने राज्य सरकार व राज्य निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी कर 21 दिसंबर तक अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है।

याचिका में दावा किया गया कि प्रशासन का इरादा चुनाव प्रक्रिया को समयबद्ध तरीके से पूरा करने का बिल्कुल नहीं है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि चुनाव से संबंधित कोई आधिकारिक घोषणा अब तक नहीं हुई और प्रशासन जान-बूझकर इसमें बाधा डाल रहा है, जिसका असर ग्रामीण शासन व्यवस्था पर पड़ रहा है।

याचिकाकर्ता के वकील मनदीप चंदेल ने बताया कि अदालत ने पक्षकारों से विस्तृत उत्तर की मांग की है। दूसरी ओर, सुनवाई के क्रम में सरकार के महाधिवक्ता ने कोर्ट को सूचित किया कि 21 जनवरी तक पूर्ण चुनावी प्रक्रिया आरंभ कर दी जाएगी। मामले की अगली कार्यवाही 22 दिसंबर को तय की गई है। यह याचिका मॉनसून आपदा के बहाने चुनाव स्थगित करने के सरकारी प्रयासों के खिलाफ दायर की गई है, जहां विपक्ष लगातार देरी का मुद्दा उठा रहा है।

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