नारकीय जीवन जी रहे मां-बेटा, भूख मिटाने के लिए खा जाते हैं पत्ते और घास

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नारकीय जीवन जी रहे मां-बेटा, भूख मिटाने के लिए खा जाते हैं पत्ते और घास

ऊना – अमित शर्मा

नरक की स्थिति हालांकि किसी ने देखी तो नहीं, लेकिन यदि हकीकत में देखनी हो तो उस मां और बेटे से पूछिए जो साक्षात इसे भुगत रहे हैं। जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर कुटलैहड़ क्षेत्र के धमांदरी पंचायत के मंसोह मोहल्ला में एक महिला और उसका 27 वर्षीय बेटा जिस बदहाल स्थिति में गुजर-बसर कर रहे हैं।

वह जीवन जानवरों से भी बदतर है। स्थिति देखिए कि न घर के दरवाजे, न बिजली, न बर्तन और न कोई साधन है। हालत यह है कि रोजी-रोटी के लाले पड़े हुए हैं। मानसिक रूप से अस्वस्थ मां और बेटा दाने-दाने को मोहताज हैं। जब खाने को कुछ नहीं मिलता तो वे भूख मिटाने के लिए पत्ते और घास खाने को मजबूर हो जाते हैं।

कचरे से भरा पड़ा है पूरा घर

घर की छत पर तो लैंटर पड़ा हुआ है, दीवारों ईंटों से बनी हैं लेकिन न प्लस्तर और न फर्श है। पूरा घर कचरे से भरा पड़ा है। रसोई में चूल्हा है, एक परात है और उसके अतिरिक्त कोई बर्तन मौजूद नहीं है। मां और बेटे की दयनीय स्थिति को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि धरती पर इन दोनों के लिए नारकीय जीवन कैसा है। न जाने कौन से जन्म में किए किसी कर्म की सजा ये भुगत रहे हैं।

12 वर्ष पहले हो चुकी है घर के मुखिया की मौत

करीब 12 वर्ष पहले घर के मुखिया ओम प्रकाश की मौत हो चुकी है। उसके बाद सरोज देवी और उसका 27 वर्षीय पुत्र नवीन ही अब यहां मौजूद हैं। जमा 2 की पढ़ाई के बाद नवीन को न जाने मानसिक रूप से क्या झटका लगा कि वह घर के भीतर ही कैद होकर रह गया। बिजली का मीटर लगा था, बिल न चुकता होने पर विद्युत बोर्ड मीटर को काटकर ले गया। अब स्थिति यह है कि मां और बेटा जिस गंदगी में चारपाई पर पड़े होते हैं वही शरणस्थली कुत्तों की भी है।

संस्थाओं से लेकर प्रशासन तक लगाई गुहार, नहीं मिली मदद

पड़ोसी ज्योति सिंह कहते हैं कि उनके सहित आसपास के लोग इन असहाय मां-बेटे को भोजन देते हैं, लेकिन हर किसी की अपनी जिम्मेदारियां हैं। ऐसे में जब इनको खाना नहीं मिलता तो यह आसपास के पत्ते या घास को भी चबा जाते हैं। वह कहते हैं कि इन्हें मदद की बेहद जरूरत है। कई बार संस्थाओं से लेकर प्रशासन से भी गुहार लगाई गई, लेकिन न तो इनकी मदद को कोई आया और न ही किसी ने इनकी सुध ली। यहां तक कि पंचायत प्रतिनिधि भी इन्हें कभी देखने तक नहीं आए।

क्या कहते हैं दिवंगत ओम प्रकाश के भाई बलवीर सिंह

सरोज देवी के देवर बलवीर सिंह कहते हैं कि उनके भाई ओम प्रकाश की 12 वर्ष पहले मौत हो चुकी है। भतीजा नवीन प्लस टू तक पढ़ा, लेकिन उसके बाद में यह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गया। बलवीर सिंह कहते हैं कि वह जितनी संभव हो सके, मदद करते रहे, लेकिन अब उसका भी परिवार है। वह खुद अस्वस्थ रहते हैं, ऐसे में मदद करने में असहाय हैं। वह कहते हैं कि पंचायत भी इन्हें देखने नहीं आई।

ग्राम पंचायत की भूमिका पर भी सवाल

हालांकि प्रशासनिक अधिकारी संजीदगी के दावे करते हैं, कई विभाग हैं जो सामाजिक सरोकार के लिए खोले गए हैं, लेकिन पिछले कई वर्षों से किसी की नजर इस दयनीय, असहाय व पीड़ित परिवार पर नहीं पड़ी है। सवाल ग्राम पंचायत की भूमिका पर भी है जो मदद के लिए आगे नहीं आई है।

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