पालमपुर – नितिश पठानियां
देश की सर्वोच्च अदालत में समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriages) को लेकर बहस चल रही है. जहां एक कोर्ट मामले पर सुनवाई कर रहा है. वहीं, देशभर में इस मुद्दे पर आम लोगों में भी चर्चा हो रही है. इसी कड़ी में हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे शांता कुमार ने सवाल उठाए हैं.
शांता कुमार समलैंगिक विवाह के विरोध में हैं. शांता ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह के सम्बन्ध में चल रही बहस एक रोचक और अत्यन्त चिन्ताजनक मोड़ पर पहुंच गई है. यदि सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दे दी तो लाखों वर्षों से बने हुए भारत के धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन को बहुत बड़ा धक्का लगेगा.
शांता कुमार ने कहा कि मुख्य न्यायधीश चन्द्रचूड जी ने एक टिप्पणी करते हुए कहा कि पुरुष और नारी का सम्बंध केवल शारीरिक ही नहीं है, बल्कि सम्बन्धों में परस्पर भावनात्मक प्रेम भी हो सकता है. एक पुरुष दूसरे पुरुष से केवल शरीर ही नहीं भावनाओं से भी जुड़ सकता है।. केन्द्र सरकार की ओर से समलैंगिक विवाह के विरुद्ध दलीलें की जा रही है.
शांता बोले कि मुख्य न्यायाधीश की इस टिप्पणी पर केन्द्र सरकार की ओर से तर्क दिया जाना चाहिए कि यदि पुरुष का पुरुष से और महिला का महिला से भावनात्मक सम्बंध है तो वे जीवन भर इक्ठठा रहें. एक जन्म नहीं कई जन्म इक्टठा रहे, परन्तु विवाह के नाम से मान्यता दे कर विवाह की संस्था को बदनाम करने की क्या जरूरत है.
लाखों साल से पूरी दुनिया में विवाह का मतलब एक पुरूष और नारी का साथ रहकर सन्तान उत्पन्न करना हैं. सदियों से चली आ रही पूरी दुनिया की विवाह की संस्था, जिसे भारत में एक धार्मिक रूप दिया गया था, को अब बर्बाद करने की जरूरत नहीं है.
और क्या बोले शांता कुमार
उन्होंने कहा कि भौतिकवाद और नशे में मस्त, जो समलैंगिक खुले आम जुलूस निकालते हैं, उन्हें विवाह को कानूनी मान्यता मिलने पर एक पुरुष द्वारा दूसरे पुरुष से विवाह के लिए बारात ले जाने से कौन रोकेगा, तब क्या बेहुदा नजारा बनेगा.
शांता कुमार ने कहा कि मुझे हैरानी है कि देश के सभी बुद्धिजीवी इस सवाल पर गम्भीरता से अपने विचार व्यक्त नहीं कर रहे हैं. बहुत से विद्वानों को सर्वोच्च न्यायालय तक अपनी बात पहुंचानी चाहिए.