शिमला – नितिश पठानियां
राजधानी शिमला के संजौली इलाके में स्थित प्रसिद्ध जोनांग टेकन फुत्सोक चोलिंग बौद्ध मठ से अचानक लापता हुए दो नाबालिग भिक्षु रविवार को ढली क्षेत्र में सुरक्षित मिल गए।
बता दें कि दोनों किशोर भिक्षु 10 अप्रैल की दोपहर मठ से बिना किसी को बताए निकल गए थे जिसके बाद मठ प्रशासन ने ढली थाना में उनकी गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करवाई थी।
शिकायत मिलते ही पुलिस हरकत में आ गई और तलाश अभियान शुरू किया गया। महज 12 घंटे के भीतर पुलिस ने सतर्कता दिखाते हुए दोनों बच्चों को ढली चौक से ढूंढ निकाला और सुरक्षित मठ प्रशासन को सौंप दिया।
प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि दोनों किशोर मठ से बाहर घूमने के उद्देश्य से निकले थे लेकिन रास्ता भटक गए और लौट नहीं पाए। दोनों किशोरों के पास मोबाइल फोन नहीं थे जिससे वे किसी से संपर्क नहीं कर सके।
मठ प्रबंधक पेमा फुंटसोक के बोल
मठ के प्रबंधक पेमा फुंटसोक ने पुलिस में दर्ज रिपोर्ट में बताया था कि दोनों की दिनचर्या सामान्य थी और उनके व्यवहार में किसी तरह की असामान्यता नहीं दिखी थी। ऐसे में अचानक उनके गायब होने से मठ प्रशासन चिंतित हो गया और तुरंत पुलिस से सहायता मांगी गई थी।
ढली थाना पुलिस ने गंभीरता से मामले को लेते हुए आस-पास के क्षेत्रों में तलाशी अभियान चलाया। सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई और मठ के अन्य भिक्षुओं तथा कर्मचारियों से पूछताछ की गई।
इसी दौरान सूचना मिली कि दो किशोर ढली चौक पर देखे गए हैं। मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने दोनों की पहचान की और उन्हें अपने साथ ले आई।
बरामद दोनों बच्चों में एक की उम्र 12 वर्ष है और वह अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर का निवासी है जबकि दूसरा 13 वर्षीय किशोर पश्चिम बंगाल से ताल्लुक रखता है। दोनों जोनांग मठ में तिब्बती बौद्ध परंपरा के अंतर्गत धार्मिक शिक्षा और साधना का प्रशिक्षण ले रहे थे।
शिमला पुलिस के एक अधिकारी ने दोनों बच्चों की बरामदगी की पुष्टि करते हुए कहा कि इन्हें मठ प्रबंधन के सुपुर्द कर दिया गया है। ढली पुलिस ने इस घटना को लेकर भारतीय न्याय संहिता की धारा 137(2) के तहत मामला दर्ज किया था।
बता दें कि जोनांग टेकन फुत्सोक चोलिंग मठ देश में जोनांग परंपरा का इकलौता केंद्र है जिसकी स्थापना 1963 में अमदो लामा जिनपा द्वारा की गई थी।
यह मठ पहले ‘सांगे चोलिंग’ के नाम से जाना जाता था और वर्तमान में इसमें लगभग 100 से अधिक भिक्षु निवास करते हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि तिब्बती संस्कृति और परंपरा के संरक्षण का भी केंद्र है।
मठ में रंग-बिरंगे प्रार्थना झंडे, ऊंची पहाड़ी पर स्थित संरचना और भिक्षुओं का साधनात्मक जीवन इसे विशेष पहचान दिलाते हैं। लापता हुए दोनों किशोर भी इसी परंपरा का हिस्सा बनकर यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।