जाने काठगढ़ शिव मंदिर का इतिहास?

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हिमखबर, डेस्क 

देवभूमि हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के इंदौरा उपमंडल मुख्यालय से महज 6 किमी. की दूरी पर स्थित शिव मंदिर काठगढ़ का विशेष महत्त्व है।

शिवरात्रि पर इस मंदिर में प्रदेश के अलावा पंजाब एवं हरियाणा से भी श्रद्धालु आते हैं। वर्ष 1986 से पहले यहां केवल शिवरात्रि महोत्सव ही मनाया जाता था।

अब शिवरात्रि के साथ रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, श्रावण मास महोत्सव, शरद नवरात्र व अन्य समारोह मनाए जाते हैं। इसीके चलते काठगढ़ महादेव लाखों ही शिवभक्तों की आस्था का मुख्य केंद्र बना है, जहां पर प्रति वर्ष सैकड़ों शिव भक्त नतमस्तक होते हैं।

मंदिर का इतिहास

शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार ब्रह्मा व विष्णु भगवान के मध्य बड़प्पन को लेकर युद्ध हुआ था। भगवान शिव इस युद्ध को देख रहे थे। युद्ध को शांत करने के लिए भगवान शिव महाग्नि तुल्य स्तंभ के रूप में प्रकट हुए।

इसी महाग्नि तुल्य स्तंभ को काठगढ़ में विराजमान महादेव का शिवलिंग स्वरूप माना जाता है। इसे अर्द्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है। आदिकाल से स्वयंभू प्रकट सात फुट से अधिक ऊंचा, छह फुट तीन इंच की परिधि में भूरे रंग के रेतीले पाषाण रूप में यह शिवलिंग ब्यास व छौंछ खड्ड के संगम के नजदीक टीले पर विराजमान है। यह शिवलिंग दो भागों में विभाजित है।

छोटे भाग को मां पार्वती तथा ऊंचे भाग को भगवान शिव के रूप में माना जाता है। मान्यता अनुसार मां पार्वती और भगवान शिव के इस अर्द्धनारीश्वर के मध्य का हिस्सा नक्षत्रों के अनुरूप घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर दोनों का मिलन हो जाता है।

कहते हैं कि भगवान श्री राम के भाई भरत जब भी अपने ननिहाल कश्मीर जाते थे, तब वह हमेशा इसी स्थान पर पूजा-अर्चना करते थे। एक अन्य कथा के अनुसार कहते हैं कि विश्व विजेता सिकंदर अपनी सेना का उत्साह कम जानकर इसी स्थान से वापस चला गया था। कहा जाता है कि तत्कालीन राजा के राज्य में गुज्जरों के द्वारा इस शिवलिंग का पता चला था।

वर्तमान में इस मंदिर में पूजा का जिम्मा महंत काली दास तथा उनके परिवार के पास है। वर्ष 1998 से पूर्व उनके पिता महंत माधो नाथ के पास इस मंदिर की पूजा का उत्तरदायित्व था। इस प्राचीन मंदिर का समस्त चढ़ावा वंश परंपरा के अनुसार मंदिर के पुजारी परिवार को ही जाता है।

मंदिर परिसर के अंदर पूजा-अर्चना और रखरखाव की वर्तमान में सारी जिम्मेदारी महंत काली दास का परिवार बखूबी निभा रहा है। मंदिर के उत्थान के लिए वर्ष 1984 में प्राचीन शिव मंदिर प्रबंधकारिणी सभा काठगढ़ का गठन किया गया। वर्ष 1986 में इस सभा का पंजीकरण होने के बाद मंदिर में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कई विकास कार्य किए गए।

सभा ने वर्ष 1995 में प्राचीन शिव मंदिर के दायीं ओर श्रीराम दरबार मंदिर का निर्माण करवाया। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए कमेटी ने दो लंगर हाल, दो सराय, पेयजल तथा प्रतिदिन लंगर की व्यवस्था भी करवाई है।

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