हिमखबर डेस्क
महादेव का प्रिय सावन का महीना अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच गया है। सावन मास में शिवनगरी काशी में शिवभक्तों का काफी उत्साह देखने को मिलता है। काशी में भोलेनाथ के कई मंदिर हैं, इनमें से एक खास मंदिर है, केदार घाट के समीप स्थित गौरी केदारेश्वर का, जहां शिवलिंग दो भागों में विभाजित है, जिसमें एक भाग में भगवान शिव और माता पार्वती विराजमान हैं, तो दूसरा भाग भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का प्रतीक है। मां गंगा आती है चौखट पर- यह मंदिर भगवान शिव की अनुपम कृपा का प्रतीक है।
यह स्वयंभू शिवलिंग की अनोखी संरचना और खिचड़ी के भोग की महिमा के लिए भी जाना जाता है। शिवरात्रि के साथ ही सावन, सोमवार और अन्य दिनों में भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है। भक्तों के अलावा सावन के महीने में माता गंगा भी बाबा की चौखट तक आती हैं। भक्त हर-हर महादेव के साथ ही गौरी केदारेश्वरभम नम: का जप करते हैं।
भोग लगाने की विशेष मान्यता-
गौरी केदारेश्वर मंदिर का शिवलिंग अपनी संरचना में अद्वितीय है। मान्यता है कि इस शिवलिंग के दर्शन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर की पूजन विधि भी अन्य शिव मंदिरों से भिन्न है। यहां ब्राह्मण बिना सिले वस्त्र पहनकर चार पहर की आरती करते हैं। स्वयंभू शिवलिंग पर दूध, बेलपत्र, गंगाजल चढ़ाने के साथ ही खिचड़ी का भोग लगाने की विशेष मान्यता है।
भगवान शिव का चमत्कार-
धार्मिक मान्यता के अनुसार स्वयं भोलेनाथ इस मंदिर में खिचड़ी का भोग ग्रहण करने पधारते हैं। इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा ऋषि मांधाता की भक्ति को जीवंत करती है। शिव पुराण के अनुसार ऋषि मांधाता प्रतिदिन हिमालय जाकर भगवान शिव और माता पार्वती को खिचड़ी का भोग अर्पित करते थे।
एक बार अस्वस्थ होने पर वे हिमालय नहीं जा सके और दुखी होकर भोलेनाथ से प्रार्थना की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर गौरी केदारेश्वर स्वयं काशी में प्रकट हुए। भगवान शिव ने स्वयं खिचड़ी का भोग ग्रहण किया और शेष भोग ऋषि के अतिथियों व स्वयं मांधाता को खिलाया। इसके बाद, भगवान शिव ने घोषणा की कि उनका यह स्वरूप काशी में वास करेगा। उन्होंने खिचड़ी को पत्थर से बने शिवलिंग में परिवर्तित कर दिया, जो दो भागों में विभक्त है।