रणदीप सिंह बने सहायक कमांडेंट, इंडियन नेवी में भी दे चुके हैं सेवाएं, पिता करते हैं खेती-बाड़ी
सिरमौर – नरेश कुमार राधे
होनहार बीरवान के होत चिकने पात अर्थात जिस व्यक्ति ने अपने मन में किसी कार्य करने के प्रति दृढ़ईच्छा से ठान ली हो उसके लिए जीवन में कोई भी चीज असंभव नहीं है। ऐसा ही उदाहरण राजगढ़ क्षेत्र के एक होनहार युवा रणदीप सिंह सरोल्टा ने कर दिखाया है जिसने हाल ही में राष्ट्रीय स्तर की सहायक कमांडेट की परीक्षा संघ लोक सेवा आयोग से उतीर्ण करके अपने माता पिता और क्षेत्र का नाम रोशन किया है।
राजगढ़ क्षेत्र के वह पहले ऐसे युवा है जिन्होने संघ लोक सेवा आयोग की बहुत की कठिन परीक्षा उतीर्ण की है । इससे पहले रणदीप सिंह इंडियन नेवी में विभिन्न पदों पर रहकर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। सेना में अधिकारी बनने के जनून में इनके द्वारा बीते वर्ष इंडियन नेवी से स्वैच्छिक रिटायमेंट ले ली थी।
बता दें कि सहायक कमांडेंट बनने के लिए संघ लोक सेवा आयोग द्वारा ली जाने वाली लिखित शारीरिक कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है। इन परीक्षाओं से गुजरने के उपरांत युवक को संघ के बोर्ड के समक्ष अपनी प्रतिभा दिखानी होती है।
रणदीप सिंह सरोल्टा का जन्म वर्ष 1989 में राजगढ़ के समीप डोहर गांव में हुआ है। साधारण परिवार में जन्में इस युवा ने सेना में अफसर बनकर अपने माता पिता के सपनों को साकार बनाया है। पिता जगदीश चंद सरोल्टा एक साधारण किसान है और माता निर्मला देवी एक सफल गृहिणी है। रणदीप की धर्मपत्नी प्रतिभा चौहान पंजाब नेशनल बैंक सोलन में सेवारत है। रणदीप के पास एक डेढ़ वर्षीय छोटी बिटिया तक्षवी सरोल्टा है।
गौर रहे कि रणदीप सिंह ने पांचवी तक की शिक्षा अपने पैतृक गांव में उत्तीर्ण की। तदोपरांत उन्होंने जवाहर नवोदय विद्यालय नाहन से 12वीं की परीक्षा पास की। होनहार बालक होने के चलते इनके द्वारा इंडियन नेवी में भर्ती हो गए। इन्होने द्वारा इंडियन नेवी में सेवा करने के दौरान अंग्रेजी और लोक प्रशासन विषय में मास्टर डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा पत्रकारिता एवं जनसंचार विषय में स्नातक डिप्लोमा (बीजेएमसी ) किया है।
रणदीप सिंह सरोल्टा ने एक साक्षात्कार में बताया कि उन्होने बिना किसी कोचिंग के राष्ट्रीय स्तर की यह कठिन परीक्षा क्रेक की है। उन्होने बताया कि बचपन से ही उन्हें सेना की वर्दी पहनने के शौक था जोकि इंडियन नेवी में पूरा हो गया था स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के उपरांत उन्होंने सहायक कमांडेंट बनने के लिए डटकर मेहनत की और उनका सेना अधिकारी बनने का सपना पूरा हुआ है।