काले महीने की सच्चाई, एक महीने की जुदाई, क्यों अमंगल माना जाता है यह माह, जानिए

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हिमखबर – डेस्क

देवभूमि हिमाचल प्रदेश वैसे तो सुंदर और अद्भुत है। यहां की सुंदरता सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है। यहां की भूमि जितनी अनूठी है, वैसे ही यहां के रीति रिवाज भी सबसे अनूठे हैं।

हिमाचल प्रदेश की संस्कृति प्रसिद्ध है। बरसात के दिनों में सावन महीने के अंत के बाद जब भाद्र पद महीना शुरू होता है, तो रिवाज के अनुसार नवविवाहिताएं अपने मायके आती हैं। नई नवेली दुल्हनों की छुट्टी एक महीने से ज्यादा की होगी, तो इस जुदाई से नए नवेले दूल्हों के चेहरे भी लटके हुए हैं, क्योंकि अब उन्हें अपनी संगिनी के दीदार भी लंबे अंतराल के बाद ही होंगे।

लोगों की मान्यता व रीति रिवाजों के मुताबिक इन दिनों में सास-बहू और दामाद-सास का एक दूसरे का देखना वर्जित होता है। इस रिवाज का अभी भी पूरे चाव से पालन होता है। इस बार यह महीना 17 अगस्त से शुरू हो गया है।

बता दें कि जब पुराने ज़माने में काला महीना आता था, तो उस महीने को तेहरवां महीना माना जाता था। अधिकतर लोगों के घरों में इन दिनों अनाज की कमी रहती थी और कमाई का साधन व काम धंधा भी शून्य के बराबर होता था।

तो नई नवेली दुल्हन को किसी चीज की कमी का एहसास न हो, तो ससुराल पक्ष अपनी गरीबी छिपाने को उसे उसके मायके भेज देते थे, वहीं दामाद को भी इसलिए उसकी सास से नहीं मिलने देते थे कि कहीं उनकी बेटी दामाद के सामने अपने ससुराल की बुराई ओर कमियां न निकाल सके।

हालांकि यह कोई अपवाद हो सकता है, लेकिन ऐसा भी माना जाता है कि इस महीने में कोई भी शुभ कार्य नहीं होते। बेशक काले महीने की मान्यताएं हर क्षेत्र में अलग-अलग हों, लेकिन हिमाचल में आज भी इस प्रथा का पालन होता है।

अब इसे एक अंधविश्वास कहें या फिर एक बहाना या कुछ और, लेकिन इसी बहाने नवविवाहिताएं अपने मायके में पूरा एक महीना बिता पाती हैं। इस पूरे एक महीने वे अपने मायके में रहती हंै।

इस महीने को कांगड़ा या यूं कहें कि पूरे हिमाचल में शुरु से ही मनहूस माना जाता है। हिमाचल प्रदेश के दूसरे जि़लों में भी नई नवेली दुल्हनों को मायके भेजने का रिवाज़ चला आ रहा है। इस रिवाज़ को मंडी, बिलासपुर, ऊना, चंबा सहित अन्य क्षेत्रों में भी मनाया जाता है।

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