हिमखबर डेस्क
हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सरकार नई पर्यटन नीति के तहत राज्य में ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है। इससे न सिर्फ प्रदेश में नए पर्यटन स्थल विकसित होंगे। बल्कि पर्यटकों को भी जंगलों के बीच शांत वादियों में रहने का सुकुन मिलेगा।
साथ ही स्थानीय युवाओं को भी उनके घर द्वार पर रोजगार मिलेगा। ईको टूरिज्म के तहत प्रदेश में 78 साइट्स का चयन किया गया है। जिससे प्रदेश के गांवों में पर्यटन के द्वार खुलेंगे। वहीं, लोकल लोगों को रोजगार में हिस्सेदारी मिलने के साथ-साथ स्थानीय उत्पादों और हिमाचली संस्कृति को भी बढ़ावा मिलेगा।
सरकार का ईको टूरिज्म पर जोर
हिमाचल प्रदेश अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। वहीं, प्रदेश में आज भी कई ऐसे जगह हैं, जो पर्यटकों की पहुंच से दूर है। ऐसे में हिमाचल के पहाड़ियों के बीच सरकार उन जगहों को विकसित करने पर जोर दे रही है, जो पर्यटन स्थल के लिहाज से टूरिस्टों के लिए एक यादगार डेस्टिनेशन के रूप में उभर सकती है। इन खूबसूरत जगहों को निखारने के लिए जहां प्रदेश सरकार द्वारा कार्य किया जा रहा है।
78 ईको टूरिज्म साइट्स चिन्हित
वहीं, इन प्राकृतिक सुंदरता वाले साइट्स के माध्यम से सरकार को भी आमदनी होगी। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा ईको टूरिज्म के तहत विभिन्न इलाकों में 78 साइट्स को चिन्हित किए गए हैं। इन साइट्स को निजी कंपनियों को लीज पर दी जाएगी। जिसे कंपनियां पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करेगी। ऐसे में हिमाचल प्रदेश आने वाले सैलानियों को जंगलों में रहने का मौका मिलेगा और प्रकृति के बीच वह अपने दिन गुजार सकेंगे।
ईको फ्रेंडली स्ट्रक्चर बनाए जाएंगे
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, शिमला, चंबा, मंडी कांगड़ा, और सिरमौर जिले में इन साइटों का चयन किया गया है। ऐसे में कुल्लू जिला में भी वन विभाग के द्वारा 8 साइट्स चिन्हित की गई है और इन साइटों को अब वन विभाग के द्वारा निजी कंपनी को सौंपने की तैयारी की जा रही है। पर्यटकों को जंगलों में होटल जैसी सुविधाएं मिलेंगी। यानी जो साइट बनेगी उसमें पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना हट्स व अन्य कमरे इत्यादि (ईको फ्रेंडली स्ट्रक्चर) तैयार किए जाएंगे।
नई ईको पर्यटन साइट्स होंगे विकसित
इस साल शिमला, कांगड़ा, चंबा, कुल्लू, सिरमौर सहित कुछ अन्य स्थानों पर नई ईको पर्यटन साइटों को विकसित करने की योजना है। हिमाचल में सरकार ने ईको पर्यटन साइट विकसित करने के लिए नियमों में भी छूट दी है। जिसके तहत अगर कोई फर्म एक हेक्टेयर वन भूमि पर यदि ईको पर्यटन साइट विकसित करना चाहता है तो विभागीय स्तर पर ही ये मंजूरी मिल जाएगी और इस स्वीकृति के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। इसके अलावा अगर एक हेक्टेयर से अधिक भूमि पर ईको पर्यटन साइट बन रही है तो यह मामला कैबिनेट को भेजा जाएगा।
स्थानीय युवाओं को मिलेगा रोजगार
हिमाचल प्रदेश सरकार की यह नीति स्वरोजगार के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। नई पर्यटन नीति को बनाने का मकसद प्रदेश में नए पर्यटन स्थल विकसित करना और स्थानीय युवाओं को रोजगार मुहैया करवाना है। ईको टूरिज्म साइट को 10 वर्ष के लिए किसी फर्म या व्यक्ति को देगी। उसके बाद भी इस लीज को पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है।
नई नीति के तहत जंगलों में पक्के स्ट्रक्चर नहीं बनाए जा सकेंगे और स्थानीय लोगों को इन साइट पर अनिवार्य रूप से रोजगार देना होगा। सरकार का तर्क है कि इससे एक तरफ जहां पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. वहीं, दूसरी तरफ स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
ईको टूरिज्म से गांव में खुलेंगे पर्यटन के द्वार
हिमाचल प्रदेश सरकार की नई ईको टूरिज्म नीति से गांव में पर्यटन के द्वार खुलेंगे। जिससे विकास भी होगा, इससे स्थानीय स्तर पर उत्पादित सामान और सेवाओं का इस्तेमाल होगा। इससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा। ईको टूरिज्म के लिए चिह्नित साइटों में जिला कुल्लू के मनाली में कोठी और गुलाबा शामिल हैं।
कुल्लू विधानसभा में लगवैली की गोरूडुग साइट को शामिल किया है। बंजार विस क्षेत्र की सोझा के अलावा सैंज घाटी की पुंडरीक ऋषि झील और आनी के जलोड़ीपास, रघुपुर गढ़ और निरमंड क्षेत्र के बागा सरौहन को चिह्नित किया गया है।हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में जंगल के बीच ईको टूरिज्म के तहत अस्थाई ढांचों का निर्माण किया जाएगा ताकि पर्यावरण को कोई नुकसान न हो।
पर्यावरण को नहीं पहुंचेगा कोई नुकसान
हिमालय नीति अभियान के संयोजक एवं पर्यावरणविद् गुमान सिंह ने कहा कि ईको टूरिज्म का संबंध घाटी के पर्यावरण से भी होता है। इन रास्तों से जहां लोगों को पैदल आवागमन की सुविधा मिलेगी। वहीं, पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए यहां पर किसी भी प्रकार के प्रदूषण वाले वाहनों का चलना भी वर्जित होता है। ईको ट्रेल जहां बनाई जाती हैं तो वहां पर सैलानियों को या तो पैदल या फिर इलेक्ट्रिक वाहनों को गुजारा जाता है ताकि हरे-भरे पहाड़ और पेड़ों को किसी प्रकार का नुकसान ना हो सके”।
काईस धार में ईको ट्रेल का निर्माण
उन्होंने बताया कि जिला कुल्लू के काईस धार में ईको ट्रेल का निर्माण किया गया है। इसके अलावा बंजार उपमंडल के बशलेयू जोत में भी ब्राइडल पाथ का निर्माण वन विभाग के द्वारा किया जा रहा है। इससे स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय लोगों को भी घर द्वार पर रोजगार मिलेगा। ईको टूरिज्म से घाटी के पर्यावरण को भी सरंक्षण मिलता हैं और सैलानी पहाड़ों के बीच प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।
शहर से दूर सैलानियों को प्रकृति के बीच लाने का उद्देश्य
भारत में साल 1990 में ईको टूरिज्म के तहत वन विभाग ने काम करना शुरू किया और हिमाचल प्रदेश में वन विभाग के द्वारा साल 2001 में ईको टूरिज्म समिति का गठन किया गया था। साल 2005, साल 2017 में भी ईको टूरिज्म नीति में बदलाव किए गए थे। हाल ही में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा भी इस योजना में संशोधन किया गया है।
ईको टूरिज्म को हिमाचल प्रदेश में लाने का सरकार का मुख्य उद्देश्य था कि शहरों में सैलानियों की भीड़ को कम किया जा सके और अधिक से अधिक सैलानियों को प्रकृति के बीच लाया जा सके। इसी नीति के तहत प्रदेश सरकार और वन विभाग के द्वारा हिमाचल प्रदेश के विभिन्न इलाकों में अब 78 ईको टूरिज्म साइट को विकसित किया जा रहा है।
सरकार ने इस साल 5 करोड़ सैलानी आने का रखा लक्ष्य
हिमाचल प्रदेश के अगर बात करें तो बीते साल यहां पर करीब 2 करोड़ सैलानियों ने हिमाचल प्रदेश के विभिन्न इलाकों का रुख किया था। वहीं, इस साल हिमाचल प्रदेश सरकार को उम्मीद है कि 5 करोड़ सैलानी हिमाचल प्रदेश के विभिन्न इलाकों का रुख करेंगे।
ऐसे में हिमाचल प्रदेश के विभिन्न पर्यटन स्थलों पर बढ़ रही भीड़ को देखते हुए ईको टूरिज्म पॉलिसी के तहत इन साइटों को नीलाम करने की प्रक्रिया पूरी की जा रही है ताकि सैलानी शहरों के साथ-साथ जंगलों में जाकर भी यहां की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सके। ईको टूरिज्म से जहां घाटी के पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होगा। वहीं, स्थानीय युवक मंडल, महिला मंडल और ग्रामीणों को अपने उत्पाद बेचने में भी सहायता मिलेगी।
सैलानियों को जंगलों में रहने का मिलेगा मौका
बंजार घाटी के पर्यटन कारोबारी नरेश चौहान, करण भारती और संपदा भारती ने कहा कि अब सैलानी भी जंगलों में रहना पसंद कर रहे हैं। ऐसे में ईको टूरिज्म साइट्स पर उन्हें रहने और खाने-पीने की भी सुविधा मिलेगी। इससे शहरों में जहां प्रदूषण कम होगा।
वहीं, सैलानियों का ध्यान भी बड़े शहरों से हटकर पहाड़ी इलाकों की ओर होगा। ईको टूरिज्म के तहत जो साइट चिन्हित की गई है। सरकार उसका भी हिमाचल के साथ-साथ बाहरी राज्यों में प्रचार करें ताकि काफी संख्या में सैलानी हिमाचल की इन साइटों में रहकर प्राकृतिक सुंदरता का मजा ले सके।
डीसी कुल्लू तोरूल एस रवीश के बोल
डीसी कुल्लू तोरूल एस रवीश का कहना है कि जिला कुल्लू में सैलानी ग्रामीण इलाकों का भी रख कर रहे हैं। ऐसे में ईको टूरिज्म साइट को विकसित करने की दिशा में भी काम चल रहा है। ईको साइट विकसित होने से जहां सैलानियों को नए पर्यटन स्थलों का दीदार होगा तो वहीं इसके माध्यम से स्थानीय लोगों को भी घर द्वार पर रोजगार मिलेगा।
एंजल चौहान, वन मंडलाधिकारी, कुल्लू के बोल
“इन ईको टूरिज्म साइटों में किसी तरह का पक्का निर्माण नहीं किया जाएगा। साइटों को संचालित करने वाली कंपनियों को अस्थायी ढांचा बनाकर पर्यटन गतिविधियां चलानी होंगी। इन साइटों में पर्यावरण और वन संपदा से किसी प्रकार की छेड़छाड़ करने की अनुमति नहीं होगी। वन विभाग के द्वारा ईको टूरिज्म साइटों को संचालित करने के लिए नीलामी प्रक्रिया चल रही है। इन साइटों को नीलाम कर ईको टूरिज्म गतिविधियों का संचालन किया जाएगा।इससे पर्यटकों को नई साइटें भ्रमण के लिए उपलब्ध होंगी”