हिमखबर डेस्क
क्या आप विश्वास करेंगे की रियल लाइफ में एक अनाथ नन्हा बच्चा इस कदर स्वाभिमानी होगा कि भूख व प्यास लगने पर दूसरों के सामने हाथ फैलाने को तैयार न हो। हालांकि फिल्मों में इस तरह के किस्से देखने और सुनने को मिल जाते हैं। लेकिन असल लाइफ में ऐसा दुर्लभ ही होता है।
भीख मांग जीवन यापन की बजाय बच्चे ने नासमझ उम्र में ही रास्ता चुन लिया। इसका अब खुलासा हुआ तो हर किसी की आंखें भर आई। राजधानी दिल्ली में कोरोना काल के दौरान बच्चे पर उस समय दुखो का पहाड़ टूट पड़ा था, जब कोरोना ने उसे अनाथ कर दिया। ताउम्र न भूलने वाला दर्द मिला।
भीख मांगने की बजाए बच्चे ने कूड़ा बीनने का कार्य शुरू कर दिया। वो उस दिल्ली में नहीं रहना चाहता था,जहां उसके सिर से माता-पिता का साया उठ गया था। इतनी छोटी उम्र थी कि उसे यह भी शायद ठीक से याद नहीं है कि संसार में उसका कोई है या नहीं।
14 साल का हो चूका मोहम्मद सुल्तान माता-पिता के जाने के बाद अकेला पड़ गया था। न ही कोई पालन-पोषण करने वाला था और न नहीं कोई देख-रेख करने वाला था। इसके बाद वो दिल्ली से हरिद्वार आ पहुंचा। खेलने कूदने की उम्र में मासूम ने हार नहीं मानी।
बच्चे ने भीख मांगने की बजाय कूड़ा बीनने का काम शुरू किया। कुछ समय बिताने के बाद मासूम उत्तराखंड की सीमा पर सटे सिरमौर के पांवटा साहिब आ गया। उपमंडल के राजबन की गिरी बस्ती में मोहम्मद कूड़ा इकट्ठा कर रहा था। इसी दौरान स्थानीय लोगों ने इसकी सूचना पुलिस को दी।

सूचना मिलते ही पुलिस टीम ने बच्चे को रेस्क्यू किया। मासूम की पहचान 14 वर्षीय मोहम्मद सुल्तान पुत्र स्वर्गीय नदीम निवासी मंगल बाजार पूजा कॉलोनी हनुमान मंदिर पुस्ता, दिल्ली के तौर पर हुई है। 14 वर्षीय मोहम्मद सुल्तान ने बताया कि उसके माता-पिता की मौत कोरोना काल में हो चुकी है। इसके बाद कोई दूसरा पालन-पोषण करने वाला नहीं है।
घटना के बाद से उसने दिल्ली छोड़ने का निर्णय लिया था है। पुलिस ने मानवता की मिसाल पेश करते हुए बच्चे की पूरी इमदाद की इसके बाद उसे जिला बाल कल्याण समिति नाहन पेश किया गया। समिति ने उसे बाल आश्रम भेजने का आदेश दिया है।
उधर, पांवटा साहिब के डीएसपी मानवेन्द्र ठाकुर ने बताया कि राजबन पुलिस ने बेसहारा बच्चे को कूड़ा बिनते हुए रेस्क्यू किया है। जिसके बाद बच्चे को जिला बाल कल्याण समिति नाहन में पेश किया गया, जहां से बच्चे को बाल आश्रम में भेज दिया है।
हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कमान संभालते ही ऐसे ही बच्चों व एकल नारियों के लिए “सुख आश्रय कोष” बनाने की घोषणा भी की थी,इसके कोष के लिए 101 करोड़ की राशि भी मंजूर की गई थी, शायद किस्मत बालक को हिमाचल ले आई हो।