चम्बा – भूषण गुरुंग
“प्राकृतिक खेती से किसान उत्पादन लागत को शून्य तक कम कर सकते हैं और जहर मुक्त खाद्यान्न के माध्यम से समाज को स्वस्थ भोजन उपलब्ध करवा सकते हैं।
उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती में आवश्यक संसाधनों को खेत या गांव में ही तैयार किया जा सकता है, जिससे बाहरी निर्भरता समाप्त होती है। इसके अतिरिक्त, गाय के गोबर और दूध की उपयोगिता पर भी चर्चा की गई। उन्होंने गाय के गोबर से खाद बनाने की प्रक्रिया और उसके लाभ बताए। गाय के दूध को “अमृत तुल्य” बताते हुए इसे नियमित आहार में शामिल करने की सलाह दी।
विद्यार्थियों के साथ व्यावहारिक सत्र
वार्ता के बाद विद्यार्थियों को उन्नत कृषि तकनीकों के बारे में जानकारी दी गई और विद्यालय परिसर में विभिन्न बीजों का रोपण कार्य भी करवाया गया। इस सत्र का उद्देश्य विद्यार्थियों को पर्यावरण संरक्षण और हरित खेती के महत्व को व्यावहारिक रूप से समझाना था।
कार्यक्रम का संदेश
कार्यक्रम के माध्यम से विद्यार्थियों को “स्वस्थ भारत-समृद्ध परिवेश” के निर्माण में अपनी भूमिका निभाने की प्रेरणा दी गई। उन्हें यह समझाया गया कि सतत खेती और रसायन मुक्त भोजन उत्पादन न केवल परिवार की आर्थिकी को मजबूत करता है, बल्कि समाज को स्वस्थ और खुशहाल बनाने में भी योगदान देता है।
कार्यक्रम के अंत में प्राचार्या करमजीत कौर ने सभी विद्यार्थियों को प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता फैलाने और हरित पहल में सक्रिय भूमिका निभाने का संदेश दिया।”