हाई कोर्ट ने दी व्यवस्था, बिना ठोस कारण चार-छह महीने में तबादला गलत, जल शक्ति विभाग में तैनात कार्यकारी अभियंता के तबादला आदेश खारिज
शिमला – नितिश पठानियां
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने महत्त्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है कि क्लास वन अधिकारियों को भी किसी एक स्थान पर सामान्य कार्यकाल पूरा करने का हक है। कोर्ट ने कहा कि क्लास वन अधिकारियों का सामान्य कार्यकाल क्या होना चाहिए, यह सरकार का काम है और सरकार को इस बारे में विचार करना चाहिए।
न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने जल शक्ति विभाग में तैनात क्लास वन अधिकारी कार्यकारी अभियंता के तबादला आदेश को खारिज करते हुए कहा कि सभी पदधारी, चाहे वे प्रथम श्रेणी के हों या किसी अन्य श्रेणी के, उन्हें किसी एक स्टेशन पर कुछ उचित समय तक बने रहने का हक मिलना चाहिए। प्रथम श्रेणी के कर्मचारी के लिए वह उचित समय क्या हो सकता है, यह निश्चित रूप से राज्य सरकार का विशेषाधिकार है तथा इस संबंध में निर्णय लेना राज्य सरकार का काम है।
यदि प्रथम श्रेणी के कर्मचारी का स्थानांतरण किसी स्टेशन पर उसकी तैनाती के लगभग चार-पांच महीने बाद किया जा रहा है, तो इस बात के बहुत ही ठोस कारण होने चाहिए कि ऐसा स्थानांतरण क्यों किया जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि कोई कर्मचारी चाहे प्रथम श्रेणी का कर्मचारी हो या चतुर्थ श्रेणी का, स्थानांतरण से प्रत्येक कर्मचारी का विस्थापन होता है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि चूंकि कोई पदधारी प्रथम श्रेणी का कर्मचारी है, इसलिए वह स्थानांतरण से व्यथित नहीं हो सकता अथवा किसी प्रथम श्रेणी के अधिकारी का किसी विशेष स्टेशन पर बने रहने का समय निर्धारित नहीं होना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि न्यायालय इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं है कि याचिकाकर्ता प्रथम श्रेणी का कर्मचारी है तथा स्थानांतरण नीति की शर्तें प्रथम श्रेणी के कर्मचारी पर लागू नहीं होती हैं। फिर भी प्रथम श्रेणी के कर्मचारी की भी वैध अपेक्षा होती है कि उसे किसी स्टेशन पर कुछ उचित समय तक सेवा करने की अनुमति दी जाएगी तथा उसे एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पर तब तक नहीं भेजा जा सकता, जब तक कि उसके स्थानांतरण के लिए कोई ठोस कारण न हों।
कोर्ट ने याचिका को स्वीकारते हुए कहा कि यह विवाद का विषय नहीं है कि याचिकाकर्ता अगस्त, 2023 के महीने में इंदौरा में तैनात था और मार्च, 2024 के महीने में उसे इंदौरा से शिमला स्थानांतरित कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी कोई ठोस कारण प्रस्तुत नहीं कर पाए कि याचिकाकर्ता को पांच-छह महीने बाद ही इंदौरा से शिमला स्थानांतरित क्यों किया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि याचिकाकर्ता का इंदौरा से शिमला स्थानांतरण जनहित में नहीं था, बल्कि शक्ति का दुरुपयोग था।