सूखू का राजनीति कद इतना भी नहीं कि कहीं से भी चुनाव जीत जाएं

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सूखू का राजनीति कद वीरभद्र की तरह अभी इतना भी नहीं कि कहीं से भी चुनाव जीत जाएं या किसी को चुनाव जीता सकें।

डोल भटहेड़ – अमित शर्मा

पूर्व पंचायत समिति सदस्य एवं वर्तमान उपप्रधान पंचायत डोल भटहेड़ साधू राम राणा ने वर्तमान मुख्यमंत्री सूखबिंदर सूखु के राजनीति रुतबे को लेकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सुखविंदर सूखू राजा वीरभद्र के नक्शे कदमों पर आधारित राजनीति करने की सोच रखते हुए अपनी पैठ हिमाचल की राजनीति में ज़माने के साथ आगे बढ़ने के फैसले अपने दम पर लेने तो लग पड़े हैं।

लेकिन सुखविंदर सूखू या हिमाचल में पूर्व में रहे मुख्यमंत्रियों शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल में भी इतना दमखम दिखाया नहीं दिया कि वह स्वयं कहीं से भी चुनाव जीत जाएं या फिर किसी को भी कहीं से चुनाव जीता सकें।

शांता  की बात करें तो वह मुख्यमंत्री रहते हुए भी विधायक का चुनाव हार गए थे और धूमिल जी अपने ही जिले में सुजानपुर से मुख्यमंत्री के दावेदार होते हुए भी चुनाव हार गए थे और सुखविंदर सूखू का रिकॉर्ड भी नादौन सीट से हारने के साथ ही जीतने का रिकॉर्ड भी बहुत कम अंतर से ही देखने को मिला है।

इस बार लोकसभा चुनावों में भी अपने जिले की सीट जितना तो दूर की बात है, मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी अपनी विधानसभा से बढ़त भी नहीं दिला पाए हैं और इसके साथ ही अपने ही जिले से उप चुनाव और धर्मशाला में सुधीर शर्मा जिसे सूखू बागियों का सरगना मानते हुए हर हालत में हराना चाहते हुए भी नहीं हरा पाए हैं।

जो चार उप चुनाव जीते भी हैं, उनके जीतने के कारण सूखू नहीं बल्कि कुछ और ही रहे हैं, लेकिन फिर भी अपने जिले से बाहर कांगड़ा जिले में अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारने का जोखिम सूखू ने किस राजनीति गणित एवं सर्वे के आधार पर उठाया है, समझ से परे हैं।

जबकि सूखू की पत्नी को टिकट मिलते ही देहरा में कांग्रेस पार्टी के पूर्व में रहे प्रत्याशी एवं इस बार के प्रबल दावेदार डाक्टर राजेश शर्मा ने कांग्रेस की उमीदवार सूखू जी की पत्नी के खिलाफ खुली बगावत करते हुए चुनाव लड़ने का विगुल फूंक दिया है।

अतः सूखू के मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी पत्नी के खिलाफ कांग्रेस पार्टी के किसी दमदार नेता द्बारा खुलेआम विरोध करना सूखू की मज़बूत नहीं बल्कि कमजोर राजनीति पकड़ का होना दर्शाता है। जबकि राजा वीरभद्र, शांता कुमार और धूमल के सामने ऐसा घटनाक्रम कभी नहीं घटा कि जब उनकी अन्य क्षेत्र की दावेदारी पर भी कभी किसी अपने ही राजनीति दल के कार्यकर्ता द्वारा खुली बगावत का वाक्य सुखविंदर सूखू की तरह देखने को मिला है।

अतः सूखू को अपनी पत्नी को देहरा से जिताने केलिए हर हालत में डाक्टर राजेश शर्मा को शांत करना होगा अन्यथा सूखू की पत्नी का चुनावी गणित गड़बड़ा भी सकता है।

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