हिमखबर डेस्क
भैयादूज का पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भैयादूज का पर्व मनाते हैं। यह पर्व दिवाली से दूसरी तिथि को मनाते हैं। यह दिवाली का भैयादूज है। इस दिन भाई अपनी बहन के घर जाता है और वहां पर बहन अपने भाई का आदर-सत्कार करती है और तिलक लगाती है।
उसके बाद भोजन कराकर उसकी खुशहाली के लिए प्रार्थना करती है। बदले में भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं। ज्वाली के ज्योतिषी आचार्य अमित कुमार शर्मा ने बताया कि भैयादूज पर्व का मुहूर्त 14 नवंबर से शुरू होकर 15 नवंबर तक जारी रहेगा। भैयादूज का समय दोपहर 1:10 पर शुरू होगा और दोपहर 03:19 पर समाप्त होगा।
भैयादूज पर्व कैसे मनाएं
भैयादूज का त्योहार पूरे देश में पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है। इस आयोजन के दौरान बहनें चावल के आटे का उपयोग करके अपने भाइयों के लिए आसन बनाती हैं। एक बार जब भाई सीट पर अपना स्थान ले लेते हैं, तो उनके माथे पर सिन्दूर, दही और चावल के पेस्ट से बना टीका या तिलक लगाया जाता है। बहनें मिठाई, रोली और नारियल से भरी एक जीवंत थाली पकडक़र आरती करती हैं।
क्यों मनाते हैं भैयादूज पर्व
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार मृत्यु के देवता यमराज को एक बार यमुना ने अपनी बहन कहा था। हालांकि यमराज उनसे मिलने नहीं आए। काफी कोशिशों के बाद आखिरकार वह अपनी बहन से मिलने में कामयाब हो गए। यमुना ने स्वादिष्ट व्यंजनों से यमराज का हार्दिक स्वागत किया। यमुना ने अपने भाई के माथे पर भी थोड़ा सा तिलक लगाया।
यमराज अपनी बहन के प्यार और गर्मजोशी से स्वागत से अभिभूत हो गए। उन्होंने यमुना से पूछा कि क्या वह कोई वरदान चाहती है। यमुना अपने भाई से इतना प्यार करती थी कि वह चाहती थी कि हर साल एक दिन निश्चित हो जिस दिन यमराज यमुना से मिलने आएं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन के बाद से हर साल भैयादूज मनाया जाता है और भाई अपनी बहनों के घर श्रद्धापूर्वक उपहार देने या आशीर्वाद लेने जाते हैं।